1999 में पड़ोसी देश पाकिस्तान ने जब कारगिल में धोखे से घुसपैठ कर कई इलाकों पर अपना कब्जा जमा लिया था तो भारतीय फौज ने आपरेशन रक्षक चलाकर दुश्मनों से जमकर लोहा लिया और अपनी जान को न्यौछावर कर न सिर्फ अपने इलाकों पर तिरंगा फहराया, बल्कि पूरी दुनिया में अपनी जाबाजी का किस्सा फैलाया। देश के सैकड़ों जवानों ने अपनी जान गवां कर कारगिल पर तिरंगा लहराया। उन्हीं जवानों में से 7 जवान जौनपुर जिले के थे जिनमें अकेले केराकत तहसील के 5 जवान थे जिन्होंने अपनी बहादुरी से न सिर्फ दुश्मनों के दांत खट्टे किये, बल्कि अपने बलिदान से पूरे केराकत तहसील का नाम रोशन कर दिया। अकबरपुर खान के लांस जगदीश सिंह, कुसरना गांव के धीरेन्द्र यादव तो नरहन के सेफर जावेद खान, नरकटा गांव के नायक शकील अहमद व मणिगांव के ग्रेनेडियर मनीष सिंह रघुवंशी ने दुश्मनों से जमकर लोहा लिया और सीने पर गोलियां खाकर न सिर्फ कारगिल पर तिरंगा लहराय, बल्कि अपनी शहादत देकर पूरे परिवार व गांव के लोगों का सम्मान बढ़ाया।
कारगिल युद्ध मे जौनपुर का योगदान |
1999 में पड़ोसी देश पाकिस्तान ने जब कारगिल में धोखे से घुसपैठ कर कई इलाकों पर अपना कब्जा जमा लिया था तो भारतीय फौज ने आपरेशन रक्षक चलाकर दुश्मनों से जमकर लोहा लिया और अपनी जान को न्यौछावर कर न सिर्फ अपने इलाकों पर तिरंगा फहराया, बल्कि पूरी दुनिया में अपनी जाबाजी का किस्सा फैलाया। देश के सैकड़ों जवानों ने अपनी जान गवां कर कारगिल पर तिरंगा लहराया। उन्हीं जवानों में से 7 जवान जौनपुर जिले के थे जिनमें अकेले केराकत तहसील के 5 जवान थे जिन्होंने अपनी बहादुरी से न सिर्फ दुश्मनों के दांत खट्टे किये, बल्कि अपने बलिदान से पूरे केराकत तहसील का नाम रोशन कर दिया। अकबरपुर खान के लांस जगदीश सिंह, कुसरना गांव के धीरेन्द्र यादव तो नरहन के सेफर जावेद खान, नरकटा गांव के नायक शकील अहमद व मणिगांव के ग्रेनेडियर मनीष सिंह रघुवंशी ने दुश्मनों से जमकर लोहा लिया और सीने पर गोलियां खाकर न सिर्फ कारगिल पर तिरंगा लहराय, बल्कि अपनी शहादत देकर पूरे परिवार व गांव के लोगों का सम्मान बढ़ाया।
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