मेरे पडोसी वर्मा जी
मेरी जन्म भूमि कालनपुर जौनपुर है और कर्मभूमि फरीदाबाद इधर उधर जवानी के दिनों में भटकने के बाद बनी यू तो मेरा फरीदाबाद से नाता काफी पुराना है मै १९८५ के दरमियाँ फरीदाबाद शिफ्ट हुआ तब मेरी शादी नहीं हुई थी फिर १९८७ के अन्त तक बीवी आ गयी और फिर बच्चे और फिर इस तरह से हम हरियाणा के मूल निवासी बन गये। शुरुआती दिनों में फरीदाबाद के विभिन्न सेक्टर में बतौर किरायदार रहा और फिर खुदा की मेहरबानी से २००४ के मद्य में मै अपने घर का मालिक बन गया। सालो इस बात का यकीं नहीं होता था की यह मेरा घर है और मै उसका मालिक। घर के खरीदने में मेरे दोस्त सक्सेना साहेब का बहुत सहयोग रहा और या यू कहे की मै मकान ले पाया उसका सारा श्रेय डॉक्टर सक्सेना को जाता है।
मेरा नया मकान एक ऐसी जगह था जहाँ सारे सम्प्रदाय के लोग सारी ज़ात के लोग आपस में मिल-जुल के रहते है और साल भर सारे तीज-त्यौहार का आनन्द लिया जा सकता है। मेरे फ्लैट के ठीक ऊपर श्री जगदीश लाल वर्मा अपने परिवार के साथ रहते है हम सब से उम्र में बड़े और आदरणीय उनके पोते उन्हें दादा जी कहते है सो हम भी उन्हें दादा जी से ही सम्बोधित करते है और वह मुस्कुरा के मेरे अभिवादन का जवाब सरल और सहज तरीके से पिछले १०-११ साल से देते आ रहे है। उनके अलावा उनके परिवार में उनकी पत्नी श्रीमती बिमला देवी, बेटा जुगेश जो एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में बड़ा ओहदेदार है उसकी पत्नी पुनम और दो बेटे जो अब १०-११ सालो में माशाल्लाह दाढ़ी मुछ वाले हो चले है साथ रहते है।
श्री जगदीश वर्मा जी ने अपने बच्चो को बहुत ही अच्छे संस्कार दिये है जिसे देख कर ख़ुशी होती है और किसी ने सच ही कहा है "मनुष्य के संस्कार उसके कुल को परिभाषित करता है" मनुष्य के आचरण और संस्कार से यह प्रमाणित होता है की वह किस कुल किस समाज और किस प्रकार से परिवार से सम्बन्ध रखता है। आज वर्मा जी की शादी की पचासवीं सालगिरह है और बच्चो ने यह तय किया की इस अवसर को ऐतिहासिक अवसर में तब्दील किया जाये। वर्मा जी हरियाणा बिजली बोर्ड से सेवा निर्वित है और पिछले १० सालो से मेरे पड़ोसी पिछले कुछ दोनों पहले मै यु ही वर्मा जी को सलाम करने की नियत उनके घर जा पंहुचा और उनसे पूछ बैठा वर्मा जी अपने शादी कब की और कैसे क्या आप श्रीमती बिमला देवी को पहले से जानते थे। उनका चेहरा ख़ुशी से लाल हो गया और सारी पुरानी यादे एक बार फिर से ताज़ा हो गयी जो उन्हों ने बताया वह बेहद दिलचस्प था जो शायद आज के ज़माने के लोगो के लिए एक उदहारण भी।
वह बताते है की वह १९६२ में हरियाणा बिजली बोर्ड में नौकरी मिली और १९६४ के आस पास उनकी बिमला देवी जी से मांगनी हो गयी। यह रिश्ता उनके सगे-सम्बन्धियों के मार्फ़त आया था, वर्मा जी ने बिमला देवी जी को नहीं देखा था न ही उनकी तस्वीर देखी थी। ज़िन्दगी अपने मामूल पर चल रही थी। उनको अपने दफ़्तर के काम के सिलसिले से शिमला जाना हुआ सो उन्हों ने कालका से शिमला जानेवाली रेल गाड़ी से अपना टिकट बुक कराया और शिमला के लिए रवाना हो गये। शिमला के स्टेशन पर वर्मा जी की मुलाक़ात श्री चाँद शाह चोपड़ा से हुई जो उनके भावी ससुर थे और रेलवे में गार्ड की नौकरी करते थे दिलचस्प बात यह है की कालका-शिमला ट्रैन के प्रभारी भी और जब उन्हें यह पता चला की वर्मा जी शिमला अपने ऑफिस के काम से जा रहे है तो चोपड़ा जी ने वर्मा जी को प्रथम श्रेणी के डिब्बे में समायोजित करवा दिया। यहाँ से कहानी में मोड़ आता है वर्मा जी श्रेणी के डिब्बे के जिस कुपे में बैठे थे उसी कुपे में पहले से एक लड़की मौजूद थी। वर्मा जी इस उम्मीद से की अभी और यात्री आये गे और अपना स्थान ग्रहण करेंगे यह सोच कर वर्मा जी ने भी अपना स्थान ग्रहण कर किया। गाड़ी अपने निश्चित समय पर प्रस्थान कर गयी और कुपे में इन दोनों के अलावा कोई अन्य यात्री नहीं सवार हुआ और न ही रास्ते में कोई आया और सफर अपनी मंज़िल पर तमाम हुआ।
वर्मा जी बताते है की कुपे के अन्दर का नज़र यह था की मैंने एक खिड़की की और रूख किया और उस लड़की ने दूसरी खिड़की का और पांच घण्टे दोनों मुसाफ़िर खिड़की से बहार खुदरत के नज़ारे का लुत्फ़ लेते रहे और कभी कभार कनखियों से एक दूसरे को देख लेते थे लड़की को नहीं मालूम लड़का कौन है और लड़के को नहीं मालूम लड़की कौन है और न हीं दोनों का एक दूसरे से किसी तरह का कोई संवाद हुआ। रास्ता रफ्ता रफ्ता तमाम हुआ और गाड़ी शिमला पहुंच गयी।
शिमला स्टेशन पर लड़की के स्वागत के किये काफी लोग मौजुद थे जिनमे से अधिकांश मेहमान लड़की के रिश्तेदार थे। लड़की की चाची भी अपनी भतीजी को लेने आयी थी और वर्मा जी शर्माते हुए बताते है कि जब उन्हों ने लड़के और लड़की को एक डिब्बे से एक साथ निकलते देखा तो चाची ने एक शरारत भरी मुस्कुराहट के साथ बोल पड़ी "वाह भावी पति पत्नी एक साथ यात्रा कर रहे है" वर्मा जी कहते है उनकी बाते सुनने के बाद यह एहसास हुआ की जो लड़की के उनके साथ पिछले ५ घण्टो से थी वह लड़की उनकी भावी पत्नी बिमला देवी थी। मेरे विचारो से वर्मा जी इस बात का मलाल ज़रूर रहा होगा की यदि पूर्व में मालूम होता की सामने बैठी लड़की उनकी भावी पत्नी है तो कम से कम ठीक से निहार ही लेता मगर ऐसा न कर के वर्मा जी ने जो मिसाल कायम की वह सरहनीय है।
इस घटना के कुछ महीनो के उपरांत वर्मा जी की शादी धूम-धाम से बिमला देवी से सम्पन हुई और बिमला देवी जो अब उनकी धर्म पत्नी है बताती है की मेरे पिता यह अक्सर कहते थे की मैंने लड़के की माली हालत नहीं देखी, उसकी नौकरी नहीं देखी, देखा तो सिर्फ लड़के की शराफ़त। उनकी परख सराहनीय है और उनकी सोच को सलाम आज उसी का नतीजा है की वर्मा जी का दंपत्य जीवन औरो के किये मिसाल है।
मेरी ईश्वर से प्रार्थना है हे ईश्वर इस जोड़ी को ताउम्र बरकार रखना और स्वस्थ रखना ताकि आने वाले नस्लों के लिये मार्ग दर्शन देते रहे।
लेखक -असद जाफर
लेखक -असद जाफर
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