फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के पुत्र शहजादे ज़फर ने इसका नाम जाफराबाद रखा |
जौनपुर शहर से लगभग ६ किलोमीटर दूर ज़फ़राबाद है जो जौनपुर से पहले बसा था | एक समय था जब यह एक बहुत बड़ा नगर था और इसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी | इतिहास में मिलता है की यहाँ कन्नौज के राजा जयचंद और विजयचंद की सैनिक छावनियाँ थीं और उस काल में इसका नाम मनहेच था जिसका संस्थापक कन्नौज का राजा विजय चंद राठौड़ था | . उसने अपने बेटे जयचंद को मनहेच जागीर के रूप में दिया था| जब मुसलमानों का आगमन हुआ और क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने बनारस और मनहेच पर आक्रमण किया, साथ ही साथ मख़्दूम चिराग़-ए-हिन्द और मख़्दूम आफ़्ताब-ए-हिन्द की मदद से फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के पुत्र शहजादे ज़फर ने इस पर विजय प्राप्त की तब इस शहर का नाम ज़फ़राबाद रखा गया |
इस के बाद आफ़ताब-ए-हिन्द और चिराग़-ए-हिन्द ने यहीं निवास किया जिस के कारण कुछ ही समय में ज़फ़राबाद सूफ़ी संतों का गढ़ बन गया. ज़फ़र ख़ान ने यहाँ अनेक भवनों का निर्माण कराया और ज़फ़राबाद को सफलता के शीर्ष पर पहुंचाने के लिए बड़ा श्रम किया. ज़फ़र ख़ान ने थोड़े दिन शासन किया और उसके बाद संतो से प्रभावित हो गया.उसने अपना राज पाट त्याग दिया और एकांत वास करने लगा. यहाँ तक कि इसी दशा में उसकी मृत्यु हुई.|
मख़्दूम चिराग़-ए-हिन्द के रौज़े के पास ही उसकी क़ब्र है .फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ की सूफ़ियों में श्रद्धा थी इसलिए जब वह ज़फ़राबाद गया तो इसका नाम शहर अनवर रखा.मगर यह नाम लोकप्रिय न हो पाया.यहाँ बहुत पहले से उच्च कोटि का काग़ज़ बनता था और यह स्थान कागज के लिए प्रसिद्ध था इसलिए इस शहर को काग़ज़ का नगर भी कहा जाता था लेकिन ज़फ़राबाद के आगे सारे नाम मद्धिम पड़ गए .यहाँ के भग्न भवन चिन्हों को देख कर आभास होता है कि यह स्थान आरम्भ में बड़ा रमणीक तथा आबाद था. मीलों तक इसकी आबादी फैली हुई हैं .प्राचीन इतिहास का अध्ययन करने से पता चलता है हिन्दू तथा मुसलमान दोनों के शासनकाल में इस शहर को केन्द्रीय महत्ता प्राप्त थी .जौनपुर के आबाद होने के बाद इसका का पतन हो गया और इसका वैभव समाप्त हो गया |
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें
हमारा जौनपुर में आपके सुझाव का स्वागत है | सुझाव दे के अपने वतन जौनपुर को विश्वपटल पे उसका सही स्थान दिलाने में हमारी मदद करें |
संचालक
एस एम् मासूम