जफराबाद का इतिहास और वहाँ के प्राचीन भवन |
जाड़े का मौसम और उसके बाद जफराबाद जैसे प्राचीन शहर को क़रीब से देखने का अवसर मिले तो पूछना ही क्या है । बाइक से जफराबाद जाना अधिक सुविधाजनक रहता है यदि आपका इरादा वहाँ के प्राचीन इमारतों और स्थानो को देखने का ही तो ।
जफराबाद पहुँचने पे वहाँ के गांव वालो का सहयोग भी मिला और वो कहानिया किव्दंदियां भी सुनने को मिली जो इतिहास की किताबो में नहीं मिला करती ।
सबसे पहले तो जफराबाद का तार्रुफ़ आपको इतिहास के आइने में करवाता हूँ ।
कन्नौज के राजाओं की राजधानी रहा जफराबाद का पुराना नाम मनहेच भी है । मनहेच संस्कृत का शब्द है और इसका का मतलब होता है ऐसा भू भाग जहां से विद्या के स्त्रोत प्रस्फुटित होते है । जब यहां पे गयासुद्दीन तुगलक के पुत्र जफरशाह का अधिकार हो गया तो उसने इसका नाम जफराबाद रखा और इसे नए सिरे से आबाद करवाया । इतिहासकारो के अनुसार जफराबाद ७२१ हिजरी या १३२१ इ में आबाद हुआ । जफराबाद बहुत ही प्राचीन बस्ती है और यह जौनपुर शहर से ४-५ मील की दूरी पे स्थित है ।
आज जफराबाद उजड़ा हुआ लगता है जहां चारो ओर महलो के खंडहर और मक़बरे बने हुए है । किसी शायर ने भी क्या खूब कहा है की
उगे हैं सब्ज़े वहाँ जे जगह थी नर्गिस की
खबर नहीं की इसे खा गयी नज़र किसकी
जफराबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन के बाहर जैसे ही आप आएंगे आपको शाहज़ादा ज़फर की बनवाई हुयी ईदगाह और उसी के पास सय्यद मुर्तज़ा का मक़बरा , मिलेगा और जब आप सीधे आबादी की तरफ जाने में शहज़ादा ज़फर की बनवाए जाम मस्जिद मिलेगी और उसी के बाए तरफ मुल्ला बहराम की बारादरी है । गोमती नदी के किनारे जाने में आपको मखदूम चिराग़ ए हिन्द का रौज़ा मिलेगा जहां आस पास उनके बहुत से शिष्यों की समाधियाँ भी मजूद है ।
जामा मस्जिद ज़फर खा जफराबाद
इस मस्जिद को ज़फर खान तुग़लक़ ने अपने शासन काल में बनवाया । पृथ्वी के धरातल से २० फ़ीट की ऊंचाई पे बानी इस मस्जिद में चौरासी स्तम्भ है । बाद में शेख बडन जो शाह कबीर के शिष्य थे उन्होंने इस मस्जिद की पूरी तरह से मरम्मत करवाई और तब से नाम शेख बडन की मस्जिद पड़ गया । इस मस्जिद का निर्माण ७२१ हिजरी या १३२१ इ में हुआ ।
मक़बरा सय्यद मुर्तज़ा
या मक़बरा जाफराबाद के मोहल्ला रसूलाबाद में स्थित है । यह वही पे कुतुब्बुद्दीन ऐबक और उदयपाल का युद्ध हुआ था और इसे सहन ऐ शहीद के नाम से भी जाना जाता है क्यों की यहां पे इस जंग में जो शहीद हुए उनकी क़ब्रें है ।
मक़बरा शेख सदरुद्दीन चिराग़ ऐ हिन्द
क़दम इ रसूल स अ व |
कोट आसनी से उत्तर पश्चिम में स्थित ये रौज़ा बहुत ही मसहूर है और इसके आँगन में हज़रत मक़दूम के घराने वालो की समाधियाँ है । इन समाधीयों में शहज़ादा ज़फर तुग़लक़ की भी है जिसके सिरहाने संग मूसा का एक पध्धर लगा हुआ है ।
यहां अंदर जाने पे एक मस्जिद है जहां बकरा ईद के दिन नमाज़ ऐ सालतुततारीफ पढ़ाई जाती है और यह नमाज़ पूरे भारतवर्ष में और कहीं नहीं पढ़ाई जाती ।
रौज़ा मक़दूम आफताब ऐ हिन्द
आपका रौज़ा मस्जिद, खानकाह ,लंगर खाना तथा निकास स्थान सय्येदवाड़ा में गोमती किनारे स्थित है । इसी से सत्ता हुयी एक मस्जिद है जहां शेख सदरुद्दीन चिराग़ ऐ हिन्द इबादत किया करते थे । यहां उनके खानदान वालों की और बहुत से समाधियाँ भी है ।
कोट असनी
बाजार के मुख्य भाग के बाहर एक बड़ा सा तिल दखता है जो किसी समय में मशहूर कोट आसनी के नाम से जाना जाता था । जब जाफराबाद राजा जयचंद और विजयचन्द के अधीन हुआ तो यहां पे यह कोट बनवाए गयी जो कच्ची थी लेकिन महत्वपूर्ण की शहबुद्दीन गौरी और कतुबुद्दीन ऐबक ने इसी कोट में हमला किया था और इसी कोट में राजा साकेत सिंह के शासन काल में चिराग़ ऐ और आफताब ऐ हिन्द ने धार्मिक तर्क वितर्क के माध्यम से वियज फहराई थी ।
रौज़ा मखदूम मुल्ला कयामुद्दीन
गोमती नदी के किनारे मोहल्ला अहद में स्थित है और उसी रौज़े के अंदर आपकी पत्नी की समाधी भी है । इस रौसे में एक मस्जिद और एक इमामबाड़ा है जिसमे मुहर्रम और चेहल्लुम में ताज़िया दफन किया जाता है ।
इसके अलावा राजा जयचंद में महलो के खंडहर अनगिनत मक़बरे और गोमती किनारे सबसे पुराने कागज़ की फैक्ट्री के भी निशाँ है । जहां कागज़ की फैक्ट्री थी उस इलाक़े को काज़ियाना कहा जाता है । वही से वापस लौटते समय आपको पुराने टूटे शहर पे पुल्ल भी मिलते हैं ।रास्ते में एक झझरी मस्जिद भी मसहूर था के समय रौशनी निकलती थी जो अब नहीं निकलती ।
जाफराबाद घुमते घूमते सुबह शाम हो चुकी थी लेकिन कुछ महत्वूर्ण महत्वपूर्ण स्थान छूट भी गए जिन्हे अगली बार तलाशने की कोशिश करूँगा
तब तक आप सभी जाफराबाद के इन वीडियो देखें ।
जाफराबाद घुमते घूमते सुबह शाम हो चुकी थी लेकिन कुछ महत्वूर्ण महत्वपूर्ण स्थान छूट भी गए जिन्हे अगली बार तलाशने की कोशिश करूँगा
तब तक आप सभी जाफराबाद के इन वीडियो देखें ।
अंत में इस पूरी टीम का धन्यवाद |
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