मख़दूम ख्व़ाजा ईसा ताज चिशती
कहते हैं कि आप ने 12 वर्ष तक पृथ्वी से पीठ नहीं लगाई. प्रार्थना और नमाज़ का समय जब आप को बताया जाता तब आप अपने हुज्रे से बाहर निकलते थे . ईश्वर के अ’लावा कुछ नहीं जानते थे कि मैं कौन हूँ, कहाँ हूँ. आप कभी अपना सर तक नहीं उठाते थे .एक दिन आप के बैठने के स्थान पर कुछ पत्तियां गिरी हुई थीं.आप ने अपने मुरीद से पूछा यह पत्तियां कहाँ से आयीं? मुरीद ने उत्तर दिया – उस पेड़ से जो आप के पास है . उस दिन आप को ज्ञात हुआ कि आप के निकट कोई पेड़ भी है .आप ने 40 वर्षों तक एकांत जीवन व्यतीत किया . आप बादशाहों से कोई उपहार स्वीकार नहीं करते थे. एक बार इब्राहीम शाह शर्क़ी ने आप के लिए कुछ रूपये और कपड़े भेजे. आप ने उन्हें अस्वीकार कर दिया और उत्तर में यह फ़रमाया
मन दल्क़-ए-ख़ुद ब-अतलस-ए- शाहाँ नमी-देहम
मन फ़क़्र –ए- ख़ुद ब -मुल्क ए सुलैमाँ नमी-देहम
अज़ रंज-ए- फ़क़्र दर दिलम गंजे कि याफ़्तम
ईं रंज रा ब-राहत-ए- शाहाँ नमी-देहम
अर्थात – मैं अपनी गुदड़ी शाहों के अतलसी लिबास के बदले नहीं दे सकता और अपनी फ़क़ीरी को सुलैमान के राज्य के बदले भी नहीं दे सकता.मैंने अपने ह्रदय के भीतर जो दुःख और फ़क़ीरी का ख़ज़ाना एकत्र किया है उसे बादशाही भोग विलास के बदले नहीं दे सकता.
आप की फ़क़ीरी का आ’लम यह था कि आप की ख़ानक़ाह में दीप तक न जलता था, जो कुछ आता था उसपर आप नज़र तक न डालते थे और संध्या तक उसे मुरीदों द्वारा ग़रीबों में बाँट दिया जाना अनिवार्य था .
आपके बारे में आस पास के लोग बताते हैं की आप एक बार बीमार पड़े तो बादशाह इब्राहिम शर्क़ी आपको इतना चाहता था की उसने दुआ की की ऐ अल्लाह इनको मेरी ज़िन्दगी दे दे और नतीजा यह हुआ की इब्राहिम शर्क़ी बीमार हुआ और इससे ईसा ताज ठीक हो गए |
शैख़ अ’ब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी ने आप के देहांत का वर्ष 1468 ई. लिखा है. जौनपुर के प्रशासक जुनैद बिरलास ने बाबर के शासन काल में आप की दरगाह मोहल्ला अरजन में बनवाई|
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