चंदामामा का नाम आते ही ९० के दशक में मशहूर विक्रम बेताल की कहानियां और गर्मी की छुट्टियों में चंदामामा पत्रिका का बेसब्री से इंतज़ार करते बच्चे ज़रूर याद आते हैं | एक लम्बे समय तब बच्चों के मस्तिष्क पे राज करने वाली इस पत्रिका जो कभी हिंदी, इंग्लिश, मराठी, तमिल, तेलुगू, सिंधी, सिंहली और संस्कृत जैसी 13 भाषाओं में छपती थी आज ख़बरों के अनुसार बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मैगजीन के बौद्धिक संपदा अधिकार बेचने का आदेश दिया है जो चंदामामा के लिए एक युग के अंत के रूप में देखा जा सकता है |
वैसे तो बच्चों के दिलों पे राज करने वाली इस पत्रिका के बुरे दिन उस समय से शुरू हो चुके थे जब २००६ के आते आते इसकी आर्थिक हालत बिगड़ने लगी और 2007 में मुंबई की एक सॉफ्टवेयर कंपनी जियोडेसिक लिमिटेड ने इस मैगजीन को करीब 10 करोड़ रुपए में खरीद लिया | चंदामामा के संस्थापक नागीरेड्डी के बेटे विश्वनाथ और मॉर्गन स्टेनली इनवेस्टमेंट मैनेजमेंट के एमडी विनोद सेठी ने 94 फीसदी हिस्सा जियोडेसिक को बेच दिया| साल, 2014 में जियोडेसिक लिमिटेड का नया मैनेजमेंट व्यापारिक मुसीबत में फंस गया और २०१९ आते आते इसका शिकार चंदामामा पत्रिका भी हो गयी जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मैगजीन के बौद्धिक संपदा अधिकार बेचने का आदेश दिया जिसके चलते इस पत्रिका का भविष्य अनिश्चित हो गया |
बच्चों की जान रही ीा पत्रिका का प्रकाशन आजादी के वक्त यानी साल 1947 में शुरू हुआ था| इस पत्रिका की स्थापना दक्षिण भारत के फैमस फिल्म प्रोड्यूसर बी नागी रेड्डी ने की थी| रेड्डी ने अपने करीबी दोस्त चक्रपाणि को इसका संपादन सौंपा और चंदामामा का पहला अंक जुलाई, 1947 में तेलुगू और तमिल में प्रकाशित हुआ| 1975 में इसके संपादक नागीरेड्डी के बेटे बी विश्वनाथ बनाए गए| उन्होंने कई साल तक इस पत्रिका का संपादन और प्रकाशन किया और यह इतनी पसंद की जाने लगी की साल 1990 तक ये पत्रिका हिंदी, इंग्लिश, मराठी, तमिल, तेलुगू, सिंधी, सिंहली और संस्कृत जैसी 13 भाषाओं में आने लगी| २००६ आते आते इसकी बिक्री काम होने लगी और यही से इस पत्रिका के बुरे दिन शुरू हो गए जो बहुत कोशिशों के बाद भी आज तक वापस नहीं आये |
चंदमामा का भविष्य क्या होगा यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उनके ज़हनो से इसकी यादें कभी नहीं जाएंगी जिन्होंने इसके स्वर्णिम दौर में इसके साथ अपना बचपन गुज़ारा है |
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S.M.Masoom
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