जौनपुर में तुग़लक़ और शर्क़ी काल की जितनी भी मस्जिदें आज जौनपुर में मौजूद हैं उनमें सबसे प्राचीन अटाला मस्जिद है। इसका रख रखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के हाथों में है लेकिन कमेटी वाले ही इसकी देखरेख किया करते हैं । मस्जिद की ऐतिहासिकता का आधुनिकीकरण करने में कोई रोक टोक नहीं है। यह मस्जिद जौनपुर किले के पूर्वोत्तर में थोड़ी ही दूर पर स्थित है जिसे जौनपुर का ह्मदय स्थल भी कहा जाता है।
अटाला मस्जिद की नीव फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के समय में १३६३ ईस्वी में डाली गयी लेकिन शासकीय कामो में विद्रोह के कारण इसका काम रुक गया और सं १३९० ईस्वी में फ़िरोज़ शाह के देहांत और तुग़लक़ राजकुमारों के आपसी झगड़ों के कारण इस मस्जिद को बनवाने का समय नहीं मिला | इसके बाद जब शर्क़ी राज्य की स्थापना हुयी तो १४०८ में इस मस्जिद का काम पूरा किया गया | इस प्रकार कह सकते हैं की यह मस्जिद दो चरणों में बन के पूरी हुयी |
इस मस्जिद के निर्माण और नाम से संबधित बहुत से बातें इतिहासकारों ने दर्ज की है जैसे जौनपुरनामा में बताया गया है की इस मस्जिद का निर्माण सैनिकों के मोहल्ले "अटाला " में किया गया इसलिए इसका नाम अटाला मस्जिद पड़ा लेकिन बहुत से इतिहासकारों ने इस बात को भी लिखा की यह अटाला देवी का मंदिर था जिसे तोड़ के फ़िरोज़ शाह ने मस्जिद बनवायी लेकिन यह सभी बातें किवदंतियों पे आधारित थी इसलिए आज तक कोई सही निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका और यह आज भी एक रहस्य ही बना हुआ है | कारीगरों के बनाय निशानात प्रतीक और चिन्हो को देखते हुए यह अवश्य निष्कर्ष निकलता है की इसको बनाने में हिन्दू कारीगरों का इस्तेमाल हुआ है |
इतिहास के पन्नो को पलटने पे यह बात अवश्य सामने आती है की जब तुग़लक़ ने जफराबाद के बाद जौनपुर में प्रवेश किया तो यह शहर बड़े बड़े आलिशान टूटे फूटे पथ्थरों का खंडहर था जहां चारों तरफ यह पथ्थर बिखरे पड़े थे जो शायद बौद्ध स्थल या उनके मठ थे या करार बीर के महल के खंडहर थे | इस से इस बात का नतीजा निकाला जा सकता है की केवल अटाला मस्जिद ही नहीं बल्कि जौनपुर शहर की उस दौर में बनी अन्य मस्जिदें यहां तक की शाही क़िले तक का निर्माण मिर्ज़ापुर से लाये पथ्थरों और जौनपुर में खंडहर की तरह बिखरे हुए पथ्थरों को जोड़ के हुआ है | जैसा की मैंने कहा की इन मस्जिदों में बने कारीगरों के निशानात को देखते हुए यह कहा जा सकता है की इन भवनों में हिन्दू कारीगरों ने भी अपना योगदान दिया है |
अटाला मस्जिद के मेहराब के पास बहुत से निशाँ कारीगरों के बनाय पाय जाते हैं और कुछ जगहों में हिंदी में लिखे शब्द भी देखे गए जो हकीकत में कारीगरों के हस्ताछर है और इसका नमूने पूरे भारत में तुग़लक़ ,शर्क़ी और मुगलों के बनवाये स्थलों पे देखा जा सकता है |
अटाला मस्जिद में कारीगरों के बनाय चिन्ह और प्रतीक |
अटाला मस्जिद के छोटे मेहराब में एक ख़ास क़िस्म की शिल्पकला देखने को मिलती है जिसका प्रयोग झंझरी मस्जिद,बड़ी मस्जिद , मुग़ल काल के बने क़िले के फाटक और यहाँ तक की ज़फराबाद में बनी क़ब्रों तक पे किया गया है | जिसके बारे में विस्तार से आगे बताऊंगा |
मस्जिदों के मेहराब और क़िले के फाटक पे इसका इस्तेमाल हुआ है | |
मस्जिद के क़िब्ला वाले मेहराब के पच्छिम दिशा की तरफ अरबिक में क़ुरआन की आयात लिखी है और उसी के पास अरबिक में इस मस्जिद के पूरे होने की तिथि १४०८ ईस्वी लिखी हुयी है | इस मस्जिद में तुग़लक़ समय की शिल्पकला को देखा जा सकता जैसे मस्जिद में मीनारों का इस्तेमाल ना किया जाना इत्यादि |
इस मस्जिद को शर्क़ी शिल्पलकला प्रथम चमत्कार कहा जाता है और इस मस्जिद में महिलाओं के नमाज़ पढ़ने और आने जाने का विशेष इंतज़ाम किया गया है और महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश के लिए त्तरी दच्छिनी द्वारा अलग से बना हुआ है | इस मस्जिद की ऊंचाई १०० फ़ीट हैं और इसमें एक चबूतरा है जिसमें तीन दालाने जय जो दो खंड में बनी हैं प्रत्येक दिशा में तीन फाटक है |
इसकी छत का मध्यवर्ती भाग्य गोलाकार और मिश्री निर्माणकला का बेहतरीन नमूना है | मस्जिद के चौकोर आँगन के तीन तरफ दालान और कमरे हैं और पश्चिम में उपासना गृह बना हुआ है जिसमे तीन बड़े बड़े गुम्बद ंमिश्री नक्काशियों वाले गुम्बद है |
यह मस्जिद हिन्दू मुस्लिम निर्माण कला का बेहतरीन नमूना है जिसे परसी ब्राउन ने इस प्रकार लिखा की जिस शिल्पकार ने इस मस्जिद ने निर्माण और आकार का चित्रण किया होगा वह अपनी कला में अद्वितीय है |
इस मस्जिद का निर्माण उस समय खास करके जुमा की नमाज़ को ध्यान में रखते हुए हुआ था और यह मस्जिद जामा मस्जिद की हैसियत रखती थी |
आज इस मस्जिद की देख रेख पुरातत्व विभाग के हाथ में हैं और जौनपुर के वे लोग जो इसका इंतज़ाम देखते है वे भी इसकी समय समय पे मरम्मत करवाते रहते हैं | आज यह मस्जिद गिनती भारत के केन्द्रीय संरक्षित इमारतों में होती है |
लेखक
एस एम् मासूम
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"बोलते पथ्थरों के शहर जौनपुर का इतिहास " लेखक एस एम मासूम
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