१८५७ की आज़ादी की लड़ाई मे जौनपुर का बड़ा योगदान रहा है |इस लड़ाई के जौनपुर से पहले क्रांतिकारी राजा इदारत जहाँ थे | आज गणतंत्र दिवस के अवसर पे राजा इदारत जहाँ के घराने वालों ने मुबारकपुर जा के उनकी कब्र पे फूल और तिरंगे की चादर चढ़ाई और राष्ट्रगान गाया जिसमे मुबारकपुर और आस पास के गाँव वालों ने शिरकत की | उसके बाद वे लोग शाही किले पे आये और आज़ादी की लड़ाई में शहीद हुए सफ़दर जहा और मेहदी जहाँ की क़ब्रों पे तिरंगे की चादर और फूल चढ़ाय |
आइये जानते हैं यह कौन लोग थे |
१८५७ की आज़ादी की लड़ाई का जौनपुर से पहला क्रांतिकारी थे राजा इदारत जहा जो १८५७ में जौनपुर ,आज़मगढ़ ,बनारस, बलिया, तथा मिर्ज़ापुर प्रबंधक थे । जब अंग्रेज़ों ने राजा इदारत जहां से मालग़ुज़ारी मांगी तो उन्हने इंकार कर दिया और कहा हमने दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह ज़फर को बादशाह स्वीकार कर लिया है और से मालग़ुज़ारीउन्ही को दी जाएगी ।
इस अस्वीक्रति पे अंग्रेज़ों ने जौनपुर के शाही क़िले पे जो राजा इदारत जहां की सत्ता का केंद्र था उसपे हमला कर दिया । राजा इदारत जहां उस समय चेहल्लुम के सिलसिले में मुबारकपुर गए हुए थे लेकिन दीवान महताब राय से अंग्रेजी फौज का सामना हो गया जो बहुत बहादुरी से लड़े लेकिन बाद में क़ैद कर लिए गए । इस झड़प में बहुत से लोग शहीद हुए जिनकी क़ब्रें आज भी क़िले में मिलती हैं ।
दूसरी क़ब्र जो क़िले के अंदरूनी हिस्से में मस्जिद के दाई सामने की ओर बनी है सफ़दर जहा की है जिनका रिश्ता भी राजा राजा इदारत जहां के परिवार से था और वो भी फ़ौज के कमांडर थे ।
जनाब अंजुम साहब, जिन्हे जौनपुर राजा अंजुम के नाम से जानता है और इनके छोटे भाई जिन्हे प्रिंस तनवीर शास्त्री के नाम से जानता है राजा इदारत जहां के खानदान से सम्बन्ध रखते है और जौनपुर में ही अटाला मस्जिद के पास रहते हैं । जनाब राजा अंजुम और प्रिंस तनवीर शास्त्री साहब राजा इदारत जहां की सातवी नस्ल है ।
शाही किले पे क्रांतिकारी मेहदी जहां शहीद की कब्र |
शाही किले पे स्थित क्रांतिकारी सफ़दर जहा शहीद की कब्र |
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