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    गुरुवार, 4 जनवरी 2018

    शाही पुल की मरम्मत का इतिहास और उसकी आज की हालत |

    नगर को दो भागों में विभाजित करने वाला ,गोमती नदी पे बने ऐतिहासिक शाही पुल का र्नि‍माण अकबर के शासनकाल में उनके आदेशानुसार सन् 1564 ई० में मुइन खानखाना ने करवाया था। 





    इस पुल पे बनी गुमटियां  जो आज दिखती है वो पहले नहीं थीं और जब शाही हमाम बंद हुआ तो उस तरफ का इलाका खतरों से भर गया |  पहली बार १७६६ ई ० में एक संतानहीन धनवान  महिला की म्रत्यु हो गयी जिसके बाद इसे खतरा मुक्त करवाने के लिए शुजाउद्दौला ने बशीर खा कोतवाल को ज़िम्मेदारी दी और कुछ मरम्मत भी हुयी जो ना काफी थी | फिर 17७४ ई० में उस समय के गवर्नर जनरल वारेन ने इसकी मरम्मत का हुक्म दिया लेकिन अली इब्राहिम जिन्होंने इसकी ज़िम्मेदारी ली ऐसा लंबा चौड़ा बजट बनवाया की मरम्मत का काम शुरू ही ना हो सका | फिर लार्ड कार्नवालिस ने राजा जौनपुर शियो लाल डूबे को यह ज़िम्मेदारे दी जिसके लिए माल और सामान भी जमा हो गया लेकिन चार हज़ार रुपये खर्च होने के बाद भी काम नहीं हुआ | इसके बाद अब्राहिम वेलंद ने तो ताखों की मरम्मत करवाई लेकिन उनके स्थानांतरण के कारण काम वही पे रुक गया | बाद में ओमनी नमाज़ जिलाधीश ने २६ गुमटियों का निर्माण करवाया और इसके बाद शाही पुल पे आने जाने वालों की जान जाने का खतरा कम होता गया और इसकी सुन्दरता में चार चाँद लग गए | शुरू में तो इन  गुमटियों का इस्तेमाल गोमती दर्शन के लिए हुआ लेकिन बाद में उन गुमटियों को किराय पे दिया जाने लगा और अब कभी दुकानें दिखती है तो कभी सब साफ़ हो जाता है |
     https://www.youtube.com/payameamn
    आज भी इस पुल का उत्तरी छोर जहां शाही हम्माम बताया जाता है बहुत मज़बूत नहीं है और पांच ताख वाले पुल की देख रेख की आवश्यकता है जो सफाई और घाट  इत्यादि बनवाने के साथ दूर हो सकती है | जबकि शाही पुल आज भी मजबूती में कम नहीं और इसके ताख और खम्बे की मजबूती में कोई कमी आज भी नहीं है | उनपे उग आये पेड़ इत्यादि को समय समय में हटाना चाहिए |

    शाही पुल का सौन्दरियकरण और इस शाही पुल के निकट मंदिरों की श्रेणी में  घाट का निर्माण इस समस्या का पूरा हल है |

    लेखक ...एस  एम् मासूम



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