पवन विजय जी का सहयोग हमेशा से हमारा जौनपुर वेबसाईट को रहा और समय समय पे उनके गीत ,कजरी लेख और संस्मरण आप पढ़ते रहे हैं | आज एक प्रतिभाशाली जौनपुरी जनाब पवन जी को आप सब से मिलवाने मुझे बहुत ख़ुशी का आभास हो रहा है |
हमारा जौनपुर से बात चीत में पवन जी ने सबसे बड़ी बात जो बतायी की कैसे मुश्किल हालात में उन्होंने अपनी पढाई जौनपुर से पूरी की और कैसे उन्होंने १५-१८ किलोमीटर साइकिल से और कई बार पैदल जा के इन्टरमीडीयट किया और आज मशहूर समाजशास्त्री और साहित्यकार के रूप में पहचाने जाते हैं |उनका मानना है की साहित्य समाज का दर्पण है और आज इसी कारण से उनके शोध पत्र ,किताबें बहुत चर्चित हैं | इन्टरनेट से ले के लाइब्रेरी ,अखबार ,पत्रिकाओं और टीवी तक जहाँ उन्हें जहां तलाश लिया जाय वो मिल जाया करते हैं |
पवन जी की लिखी कुछ पंक्तियों के साथ मैं अपनी कलम को रोकता हूँ |
वीराना हो भला कितना ठिकाना ढूंढ लेता है,
ग़मों को गुनगुनाने का तराना ढूंढ लेता है।
कवायद खूब होती है मुझे मायूस करने की,
मगर दिल मुस्कुराने का बहाना ढूंढ लेता है।
डॉ. पवन विजय|
तो आईये डॉ साहब से सवालों जवाबों का सिलसिला आप खुद सुनिए |
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