जौनपुर। सिरकोनी क्षेत्र के राजेपुर टेढ़वा का ऐतिहासिक कजरी के मेले में सोमवार को हजारों की भीड़ उमड़ी रही। मेला देखने के लिये दूर-दराज के लोग कई दिन पहले ही यहां आ जाते हैं जो अपने परिवार व रिश्तेदारों के साथ मेले का आनन्द उठाते हैं। सदियों से चले आ रहे अपने ढंग के अनोखे मेले में गाजे-बाजे के साथ राजेपुर व कजगांव के लोग हाथी, घोड़ा, ऊंट पर चढ़कर दूल्हे के रूप में आते हैं उसी परम्परागत के अनुसार इस बार भी राजेपुर से दूल्हे के रूप में नाटे और कजगांव से रईस अंसारी , करिया गौतम , राजकुमार हलवाई अपना दावा पेश किये और बाजार के आखिरी छोर पर स्थित पोखरे के किनारों पर बारात रोककर एक-दूसरे से पूर्व की तरह परम्परानुसार गाली-गलौज कर अपने को दूल्हा बताकर शादी के लिये ललकारते हैं। हालांकि बिना दूल्हन के दूसरे वर्ष फिर बारात लेकर आने की बात कहते हुये चले जाते हैं। लगभग 89 वर्षों का इतिहास संजोये टेढ़वा स्थित पोखरे पर राजेपुर व कजगांव की ऐतिहासिक बारातें पूर्व की भांति सोमवार को आयीं जिसमें हाथी, घोड़े, ऊंट पर सवार बैण्ड-बाजे की धुन पर बाराती घण्टों जमकर थिरके लेकिन इस वर्ष भी दोनों गांव से आये दूल्हों की इच्छा पूरी नहीं हो सकी और बिना शादी व दूल्हन के बारात वापस चली गयी। यहां के लोगों के अनुसार कजरी के दिन रात बरसात होने के चलते एक गांव की लड़कियां दूसरे गांव में रूक गयीं जिसके बाद से यह मेला शुरू हुआ। मेले से पूर्व जहां कजगांव में जगह-जगह मण्डप गड़ जाते हैं, वहीं महिलाएं मंगल गीत गाती हैं। यही हाल राजेपुर में भी होता है जहां पूर्ण वैदिक रीति के अनुसार मण्डप लगाकर मांगलिक गीत होता है। मेले के दिन महिलाएं बकायदे उसी ढंग से बारात विदा करती हैं जैसे वास्तविक में बारात जाती है। गाजे-बाजे के साथ पोखरे पर बारात पहुंचती है जहां दोनों छोर के बाराती शादी के लिये ललकारते हैं लेकिन सूर्यास्त के साथ बिना शादी के बारात वापस चली जाती है। यह मेला पूरी तरह आपसी सौहार्द व भाईचारा का मेला है जो परम्परागत ढंग से होता है। मेले का उद्घाटन संजीव उपाध्याय ने किया। ब्यवस्थाप में प्रदीप जायसवाल , छोटे लाल यादव , अशोक बरनवाल , राजेश शर्मा आदि लोग लगे रहे।
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