मोर को दुनिया भर में सबसे सुंदर पक्षियों में से एक माना जाता है। इसे पक्षियों का राजा भी कहा जाता है। अपने सिर पर मुकुट के समान बनी कलगी और रंग-बिरंगी इंद्रधनुषी सुंदर तथा लंबी पूंछ से यह जाना जाता है। आंख के नीचे सफेद रंग, चमकीली लंबी गर्दन इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। बारिश के मौसम में बादलों से भरे काले आकाश के नीचे जब यह अपने पंख शानदार तरीके से फैलाकर नृत्य करता है तो कई मोरनियों के दिलों पर राज करता है। मोर के इन्हीं गुणों के कारण भारत सरकार ने 26 जनवरी 1963 को इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया।भारत में मोर हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, वृंदावन और तमिलनाडु में ज्यादा पाए जाते हैं। मोर दुनिया भर में उड़ने वाले विशाल पक्षियों में से एक है। नर मोर की लंबाई उसकी पूछ सहित लगभग साढ़े 5 फीट तक होती है, जिसमें उसकी पूंछ ही उसकी कुल लंबाई की तकरीबन 60 प्रतिशत होती है। ऊंचाई के हिसाब से देखा जाए तो आमतौर पर मोर 2 फीट ऊंचे होते हैं, लेकिन जब वे अपने पंख फैलाते हैं तो उनकी ऊंचाई बढ़ जाती है।
यह माना जाता है कि मोर सबसे पहले भारत, श्रीलंका और उसके आसपास के देशों में पाए गए, जिन्हें भारत में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान अंग्रेज पूरी दुनिया में ले गए। आज मोर की मुख्य रूप से दो प्रजातियां पाई जाती हैं- नीला मोर भारत, नेपाल और श्रीलंका में और हरा मोर जावा, इंडोनेशिया तथा म्यांमार में पाया जाता है। इसके अलावा अफ्रीका के वर्षावनों में कांगो मोर भी मिलते हैं।मयूर परिवार में मोर एक नर है और मादा को मोरनी कहा जाता है। इनमें मोर आकार में अधिक बड़े और आकर्षक होते हैं। इसका शरीर चमकदार नीले रंग का होता है, जबकि मोरनी का शरीर ब्राउन रंग का होता है और उनके पास मोर के समान आकर्षक पूंछ नहीं होती। मोर की 200 लंबे-लंबे पंखों वाली शानदार पूंछ होती है, जिस पर नीले-लाल-सुनहरी रंग की आंख की तरह के चंद्राकार निशान होते हैं। ये अपनी पूंछ धनुषाकार में ऊपर की ओर फैलाकर नाचते हैं।
नाचते समय परों के मेहराब पर ये निशान बहुत अधिक मनमोहक लगते हैं। बारिश होने से पहले नर मोर नाचना आरंभ कर देते हैं। ऐसा माना जाता है कि मोरों को बारिश का पूर्वाभास हो जाता है और वे खुशी में नृत्य करते हैं। मोर कई बार मोरनी के साथ रोमांटिक नृत्य भी करते हैं। ऐसा माना जाता है कि मोरनियां मोर के आकार, रंग और पूंछ की सुंदरता से बहुत आकर्षित होती हैं। मोर को गर्मी और प्यास बहुत सताती है, इसलिए नदी किनारे के क्षेत्रों में रहना इसे भाता है|
जौनपुर में मोर बहुत अधिक पाए जाते हैं क्यूंकि यहाँ से गोमती नदी हो के गुज़रती है और दरिया के आस पास के इलाके में अभी भी पेड़ों के बगीचे और खेती होती है | जौनपुर में सई नदी के किनारे दस बीघे के जंगल में पांच-छह वर्ष पूर्व सैकड़ों की संख्या में मोर बेखौफ टहलते मिल जाते थे किंतु अब वह स्थिति नहीं रह गई| बहुत से जगहों में आबादी बढ़ने से इनके शिकार की भी खबरें आया करती है जो एक चिंता का विषय है |
चलिए आप भी देखें जानपुर में सितम्बर -अक्टूबर में नाचते मोर |
नाचते समय परों के मेहराब पर ये निशान बहुत अधिक मनमोहक लगते हैं। बारिश होने से पहले नर मोर नाचना आरंभ कर देते हैं। ऐसा माना जाता है कि मोरों को बारिश का पूर्वाभास हो जाता है और वे खुशी में नृत्य करते हैं। मोर कई बार मोरनी के साथ रोमांटिक नृत्य भी करते हैं। ऐसा माना जाता है कि मोरनियां मोर के आकार, रंग और पूंछ की सुंदरता से बहुत आकर्षित होती हैं। मोर को गर्मी और प्यास बहुत सताती है, इसलिए नदी किनारे के क्षेत्रों में रहना इसे भाता है|
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