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    गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

    ताजिया और रामलीला |

    १३२ साल पहले रामनवमी और मुहर्रम का आशूरा एक ही दिन पड़ गया था और  हुसैन टीकरी मध्य प्रदेश के जाऊरा इलाक़े में एक चौराहे पे रामलीला वालों और इमाम हुसैन के बड़े ताजिये के बीच पहले कौन निकलेगा जैसे मुद्दे पे टकराव हो गया अभी बता हो ही रही थी की लोगो ने देखा जिस ताजिये को ५०-६० लोगों ने उठाया हुआ था और टकराव  बहस कर रहे थै वो ताज़िया खुद से उठा और पीछे की तरफ चला गया जिस से रामलीला वालों का जुलूस बिना टकराव के निकल गया ।



    हुसैन टीकरी मध्य प्रदेश के जाऊरा इलाक़े में आज भी मौजूद है जहां दुनिया भर से लोग मुराद मांगने आया करते हैं । यहां इमाम हुसैन (अ.स), हज़रात अब्बास अलमदार, जनाब ए ज़ैनब ,जनाब ए सकीना और मौला अली (अ.स) के रौज़े है ।

    १३२ वर्ष पहले नवाब मुहमद इस्माइल अली खान के दौर में एक साल मुहर्रम का आशूरा और रामनवमी एक ही दिन पड़  गयी और इत्तेफ़ाक़ से रामनवमी में लोग रामलीला इत्यादि सड़को पे किया करते हैं और आशूरा में ताज़िया भी मुसमान सड़को पे  निकाला करते हैं । कही दोनों में कोई टकराव एक ही समय निकलने पे ना हो जाय इसलिए यह तय पाया गया की मुसलमान आशूरा का ताज़िया जल्दी उठा लें जिस से रामनवमी त्यौहार अपने समय से मनाया जा सके ।

     लेकिन उस दिन जब दादा मुक़ीम खान साहब के यहां से एक बड़ा ताज़िया निकला जिसे उठाने के लिए ५०-६० लोगों की आवश्यकता होती थी तो उठाने वालों से रास्ते में ठण्ड के कारन देर कर दी और ताज़िया अपने समय से कर्बला नहीं पहुँच सका और एक चौराहे पे रामलीला वालों से टकराव हो गया और बात चीत में माहौल गर्म हो गया । 

    लोग हालात को देख के भागे नवाब मुहमद इस्माइल अली खान के पास लेकिन अभी वो जा ही रहे थे तो लोगों ने देखा की ताज़िया खुद से उठा और पीछे की और कुछ दूर जा के एक जगह ठहर गया । जब तक लोग यह माजरा देखते या कुछ समझ पाते रामलीला वालों का जुलुस अपने समय से बना टकराव के निकल गया । 

     आज भी इस ताजिये को जाऊरा  में मुक़ीम खान के इमामबाड़े में देख सकते हैं । इस मुअज्ज़े से यही पैग़ाम मिलता है कि किसी दुसरे धर्म से टकराव की स्थिति में सामने वाले को इज़्ज़त देनी चाहिए।

    उसके बाद नवाब साहब ने और गाँव के एक शख्स से ख्वाब देखा और उसके अनुसार वहाँ पे इमाम हुसैन और हज़रात अब्बास अलमदार का रौज़ा बनाया गया जिसमे ५ वर्ष लगे ।

    आज भी ज़ायरीन यहां आते है और ख़ास कर के चेहल्लुम के अवसर  अपनी मुरादे पाते हैं ।

    यही इमाम हुसैन (अ. स. ) का पैग़ाम है कि टकराव की स्थिति में सामने वाले की बातो को अहमियत दो और उनकी इज़्ज़त करो । इस वर्ष भी दशहरा और मुहर्रम साथ साथ पड़ा है और देखिएगा इमाम हुसैन (अ. स. ) के चाहने वाले अपने समय को बदलते हुए किसी भी टकराव की स्थिति को नहीं आने देंगे और शांति पूर्ण आपसी भाईचारे से इन त्योहारो को मनाएंगे । 
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