728x90 AdSpace

This Blog is protected by DMCA.com

DMCA.com for Blogger blogs Copyright: All rights reserved. No part of the hamarajaunpur.com may be reproduced or copied in any form or by any means [graphic, electronic or mechanical, including photocopying, recording, taping or information retrieval systems] or reproduced on any disc, tape, perforated media or other information storage device, etc., without the explicit written permission of the editor. Breach of the condition is liable for legal action. hamarajaunpur.com is a part of "Hamara Jaunpur Social welfare Foundation (Regd) Admin S.M.Masoom
  • Latest

    गुरुवार, 16 मार्च 2017

    पत्रकार और समाज के संजीदा लोग चलायें वन्य जीव जागरूकता मुहिम |- डॉ अरविन्द मिश्र

    क्या आप हिरन और मृग के फर्क को जानते हैं ?

    भारत में वन्य जीवों के प्रति आम लोगों की जानकारी का स्तर बहुत शोचनीय है।आश्चर्य की बात तो यह है कि वन्य जीवों के बारे में वन वभाग के अधिकांश उच्च अधिकारी भी कम जानकारी रखते हैं। सोनभद्र में एक समय विपुल वन्य जीव सम्पदा थी मगर अब हालत चिंताजनक है। कारण यही है कि एक तो हम वन्य जीवों के बारे में सही जानकारी नहीं रखते और इस जानकारी के अभाव में उनके प्रति हमारे मन में कोई सकारात्मक आग्रह नहीं होता।

    चीते भारत से कब का लुप्त हो चुके किन्तु आज भी अखबारों की सुर्खियां चीतों के खाल बरामद होने का दावा करती हैं। कारण है भार्गव साहब की डिक्शनरी जिसके एक पुराने संस्करण में टाईगर को चीता बताया गया था। दो पीढ़ियां टाईगर का अर्थ चीता ही जानती रहीं मगर वह बाघ(व्याघ्र ) है. किसी पत्रकार ने तमिल टाईगर्स को तमिल चीते का नामकरण क्या कर दिया यह हिन्दी पत्रकारिता में रूढ़ हो गया। जबकि होना तमिल व्याघ्र था। यहाँ सोनभद्र के कैमूर घाटी में काले मृग पाये जाते हैं मगर पत्रकारों और आम लोगों के बीच वह काला हिरन है -बल्कि समूचे यू पी में कई वनाधिकारी भी इसे हिरन ही कहते हैं। राजधानी लखनऊ में काले मृगों की मौत हुयी तो उसे काले हिरणों की मौत बताया गया।

    हिरन(ऐन्ट्लर्स ) वह है जो अपने सींगों को हर वर्ष गिरा देता है और नयी सींगें उग आती है , जबकि मृगों (ऐंटीलॉप ) वह जिसमें सींगें गाय भैंसों की तरह आजीवन बनी रहती हैं , अब हिरणों और मृगों की कई प्रजातियां हैं। साँपों को लेकर कितने ही अनर्गल दुष्प्रचार मीडिया द्वारा भी होता रहा है। ये चंद उदाहरण हैं जो वन्य जीवों के बारे में हमारे जानकारी के शोचनीय स्तर को उजागर करता है।

    मैं आज यह सब इसलिए लिख रहा हूँ कि जब हमें वन्य जीवों के बारे में सामान्य जानकारी भी नहीं है तो हम उनका संरक्षण क्या करेगें? इसलिए एक व्यापक वन्य जीव जागरूकता अभियान को चलाये जाने की जरुरत है। अब यह अभियान कौन चलाये ? मुख्य जिम्मेदारी वन विभाग की है मगर शायद वे अपने सरकारी रूटीन/ स्टीरियोटाइप से उबर नहीं पाते। आऊट आफ बॉक्स सोचने को न किसी को फुर्सत है और न ही उनकी नज़रों में जरुरत.

    तब ? मीडिया समूह क्या कोई रूचि लेगें? वे आगे आएं तो एक वन्य जीवन रिपोर्टिंग / पत्रकारिता पर एक -दो दिवसीय कार्यशिविर पत्रकारों का जगह जगह करा सकते हैं। ताकि भ्रामक खबरे जन मानस में न जायँ। मेनस्ट्रीम पत्रकारिता जनमानस की जानकारी का एक बड़ा स्रोत है. हम गलत जानकारी से लोगों में जो भ्रम पैदा करते हैं या जिस जानकारी को उन तक ले जाते हैं चिरस्थाई बन जाती है जैसे आज भी बहुत से पत्रकारों को टाईगर का अर्थ चीता ही पता है।
    मेरी अपील है कि वन्य जीवों के संरक्षण के लिए संजीदा लोग सामने आएं और एक वन्य जीव जागरूकता की मुहिम को आगे बढ़ाएं। कोई सुन रहा है?
    • Blogger Comments
    • Facebook Comments

    0 comments:

    एक टिप्पणी भेजें

    हमारा जौनपुर में आपके सुझाव का स्वागत है | सुझाव दे के अपने वतन जौनपुर को विश्वपटल पे उसका सही स्थान दिलाने में हमारी मदद करें |
    संचालक
    एस एम् मासूम

    Item Reviewed: पत्रकार और समाज के संजीदा लोग चलायें वन्य जीव जागरूकता मुहिम |- डॉ अरविन्द मिश्र Rating: 5 Reviewed By: S.M.Masoom
    Scroll to Top