जब कैस जौनपुरी साहब का तारूफ उनके की कुछ अशार से शुरू करता हूँ . उन्होंने अपनी पहचान कुछ इस तरह से करवाई है.
उड़ते परिंदे की चाहत अधूरी हूँ मैं
चलते मुसाफिर की कोशिश पूरी हूँ मैं
मिल जाएगी मंजिल एक दिन मुझे भी
एक परिंदा, एक मुसाफिर
एक जौनपुरी हूँ मैं
कैस जौनपुरी हूँ मैं
वतन से मुहब्बत और कुछ कर सकने की ख्वाहिश यकीनन इनको कामयाबी की उच्च शिखर तक एक दिन अवश्य पहुंचेगी.
जनाब कैस जौनपुरी का जन्म 5 मई 1985 को जौनपुर, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था .मोहम्मद हसन इण्टर कालेज, जौनपुर से हाईस्कूल से पढ़ते हुए बोर्ड ऑफ टेक्नीकल एजुकेशन लखनऊ से सिविल इंजिनीयरिंग में डिप्लोमा हासिल किया. 5 साल दिल्ली में रहने के बाद अब मुंबई में प्राईवेट नौकरी और बॉलीवुड में संघर्षरत हैं.
यह फिल्म राईटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, मुंबई में ‘एसोसिएट मेंबर’. भी हैं और इनकी रचनाएँ नई दुनिया, रचनाकार, गर्भनाल, साहित्यकुंज, अनुभूति, संवाद दर्पण, प्रथम इम्पैक्ट, सरस सलिल, तरुणाई के सपने, विकल्प टाईम्स जैसी राष्ट्रिय और अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं.
जनाब कैसा साहब की एक कहानी यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ आशा है आप सबको पसंद आएगी.
“मैं अब कहाँ जाऊंगा...?” करीम ने दर्द भरी आवाज में कहा...मारिया ने करीम को बस एक नज़र घूरकर देखा और अपनी उंगली से इशारा किया....”मैं कुछ नहीं जानती....तुम बस चलो....मैंने कह दिया तो कह दिया....” इतना कहकर मारिया कमरे से बाहर निकल गई....करीम वहीं खड़ा सोचता रहा....मारिया तेज कदमों से चली जा रही थी...उसने पीछे मुड़कर देखा....करीम अभी उसी जगह खड़ा था....मारिया ने एक बार फिर करीम को अपनी तरफ आने का इशारा किया...इस बार करीम को अपनी वही पुरानी मारिया दिखाई दी...वो चुपचाप मारिया की तरफ चल दिया....करीम के शागिर्द करीम से जाते हुए पूछने लगे.....”बाबा किधर जा रहे हैं....?” करीम ने मुस्कुराते हुए कहा....”मेरा खुदा मुझे बुला रहा है....” सभी शागिर्द हैरान होकर देखने लगे....उन्होंने देखा...करीम, मारिया की तरफ बढ़ रहा था...मारिया के चेहरे पर वही रूहानी नूर चमक रहा था....
मारिया – पार्ट 2
मारिया ‘करीम बाबा’ को अपने साथ अपने घर ले आई. घरवालों ने पूछा “ये क्या मुसीबत है...?” मारिया ने किसी तरह अपने घर वालों को समझा-बुझा कर करीम को कुछ दिनों के लिए अपने पास रखने पर मना लिया...मारिया थी ही ऐसी कि उसकी बात भला कोई कैसे टाल सकता था...खुद करीम भी तो नहीं टाल पाया था और अब न चाहते हुए भी मारिया के ऊपर बोझ बन बैठा था...
करीम को ये बात खाए जा रही थी...कि उसकी वजह से मारिया को लोगों की बातें सुननी पड़ रही हैं...उसने मारिया से कहा...”मुझे जाने दो...” मगर मारिया अपनी उंगली का एक इशारा दिखाती थी और करीम चुप हो जाता था...
कुछ दिन बीते...करीम ने सोचा...”मारिया तो मेरी बात मानने वाली है नहीं...लेकिन मेरी वजह से मारिया को तकलीफ हो रही है...तुम कैसे आदमी हो...बेचारी मारिया ने तो तुम्हारे लिए क्या-क्या किया...और तुमने...? तुम मारिया के ऊपर ही बोझ बन बैठे....? धिक्कार है तुमपर...” खुद को जी भर के कोस लेने के बाद अगली सुबह होने से पहले ही करीम भोर में ही मारिया के घर से निकल गया....ताकि मारिया को पता भी न चले...वर्ना...वो किसी भी कीमत पर उसे जाने नहीं देगी....
करीम मारिया के घर से निकल कर जल्दी-जल्दी पास के रेलवे स्टेशन पहुँच गया...करीम ट्रेन का इन्तजार कर रहा था...थोड़ी ही देर में ट्रेन भी आ गई थी...करीम को लगा कि अब मारिया को उसकी वजह से परेशानी नहीं होगी...और वो ट्रेन को प्लेटफार्म पर रुकते हुए देख रहा था...जाना तो वो भी नहीं चाह रहा था...मगर उसकी वजह से मारिया को परेशानी हो रही थी....ये उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था.
उसने देखा कि ट्रेन अब प्लेटफार्म पर आ चुकी है...सुबह-सुबह का वक्त था इसलिए ट्रेन के इंजन के पास कोहरा और धुआं भी था...करीम ने एक आखिरी बार मारिया को याद किया...और चलने के लिए उठा....तभी धुएं और कोहरे के बीच से मारिया आती हुई दिखाई दी...करीम का तो ये हाल हुआ कि कहाँ भाग जाए ताकि मारिया की बातें न सुननी पड़ें...क्योंकि वो मारिया के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे पायेगा...और मारिया उसे खूब डांटेगी...करीम ये सब सोच ही रहा था...तब तक मारिया उसके पास आ चुकी थी...मारिया ने पूछा...”कहाँ जा रहे हो..?” करीम ने कुछ नहीं कहा...करीम एक गुनाहगार की तरह सिर झुकाए खड़ा था. मारिया की बातें उसके कानों तक जा तो रहीं थीं मगर उसके बाद उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था...
मारिया ने फिर पूछा...”क्यूँ जा रहे थे...?” करीम ने कहा...”मारिया...! मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से लोग तुम्हें कुछ कहें...इसलिए....” मारिया ने बात बीच में ही काटकर कहा...”इसलिए तुम चल दिए...घर छोड़कर...बिना बताये....और तुम्हें लगा कि तुम यूँ ही निकल जाओगे...करीम...! तुम समझते क्यों नहीं...? मैं कैसे समझाऊं तुम्हें...? एक तो मैं खुद लोगों के सवालों का जवाब दे-दे कर परेशान हूँ...उसपर से तुम बिना बताये चल दिए...तुम्हारे जाने के बाद लोग जब मुझसे पूछेंगे कि तुम क्यूँ चले गए? तो मैं क्या बताउंगी...? बोलो...? जवाब दो...?
करीम ने कहा...”यही तो मैं नहीं चाहता कि लोग तुमसे सवाल करें....” मारिया ने फिर कहा...”तुमने तो ये चाह लिया...लेकिन क्या कभी तुमने ये सोचा है कि मारिया क्या चाहती है...?” सवाल बहुत भारी था...इतना भारी कि करीम की आँखों में आंसू आ गए...और मारिया भी खुद को रोक न सकी...करीम आसमान की तरफ सवाल भरी नज़र से देखने लगा...फिर उसे शायद कुछ बोलने की हिम्मत मिली...उसने कहा...”मारिया...! तुम जो चाहती हो वो ज्यादा दिन तक टिकने वाला नहीं है... क्योंकि तुम्हारा दिल साफ़ है...और इस जाहिल दुनिया में साफ़ दिल वालों की कोई कद्र नहीं करता...एक न एक दिन यही लोग तुम्हें मजबूर कर देंगे...और तब तक हालात और खराब हो चुके रहेंगे...मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम मुसीबत में आओ...”
मारिया करीम की आँखों में देख रही थी....उन आँखों में जिनमें कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही थी...जो बेबस हो चुकी थीं...मारिया उन खामोश आँखों में चमक लाना चाहती थी...’करीम बाबा’ को सिर्फ करीम बनाना चाहती थी...उसने कहा...”करीम..! बस बहुत हुआ...अब तुम वादा करो...दुबारा ऐसी हरकत नहीं करोगे...बिना बताये तुम कहीं नहीं जाओगे...अब चलो मेरे साथ....” करीम ने देखा...मारिया की आँखों में एक अपनापन था...मारिया ने अपनी जानी-पहचानी उंगली से इशारा किया...”चलो...” और करीम मारिया के पीछे-पीछे चल दिया...
रास्ते में मारिया सोच रही थी कि क्या ऐसा करे जिससे करीम का हुलिया ठीक हो जाए...? इसके लिए वो करीम को नाई की दुकान पर ले गई...करीम कहता रहा...”ठीक है...मारिया...! ये सब करने की कोई जरूरत नहीं है...मेरी पहचान तो मत मिटाओ...” मगर मारिया उस ‘करीम बाबा’ को एक पल भी और नहीं देखना चाहती थी...लाख मना करने के बावुजूद मारिया नहीं मानी और करीम कुछ कर भी न सका...आखिर मारिया जो कुछ भी कर रही थी...करीम के भले के लिए ही तो कर रही थी...नाई की दुकान से बाहर निकलने पर ‘करीम बाबा’ कहीं खो चुका था...अब जो शख्स मारिया के सामने था वो उसका करीम था...सिर्फ करीम...मारिया ने रास्ते में नए कपड़े भी ले लिए...और घर पहुँचने से पहले ही मारिया ने करीम का हुलिया बदल दिया था...
करीम खुद, खुद को नहीं पहचान पा रहा था...लेकिन मारिया खुश थी इस नए करीम को देखकर...घरवालों के सामने आकर मारिया ने बड़ी गर्मजोशी से सबको बताया....लोगों ने मुंह पर तो कुछ नहीं कहा...मगर घरवालों को कुछ खास खुशी नहीं हुई थी...करीम को वापस देखकर...वो भी इस नए अवतार में...
मारिया को लगा...कहीं करीम फिर न भाग जाए...? इसके लिए उसने करीम को ज्यादा वक्त देना शुरू कर दिया...दोनों घंटों बातें करते रहते...कभी-कभी मारिया खिलखिलाकर हँसती थी तो घरवाले चिढ़ जाते थे...घरवालों को मारिया की करीम से ये नजदीकी देखी नहीं जा रही थी...धीरे-धीरे करीम की हालत में सुधार आने लगा...अब करीम भी हँसने-बोलने लगा था.....और अब तो वो सबकी तरह एक इज्जतदार आदमी लगता था....मगर मारिया का उसके साथ यूँ वक्त बिताना उसके घरवालों को अंदर ही अंदर साल रहा था...
धीरे-धीरे मारिया से सवाल-जवाब भी किये जाने लगे कि...”ठीक है...तुमने किसी की मदद की...मगर इतना भी क्या कि...हर वक्त उसी के पास बैठी रहो...हंसती रहो...कितना भी है...है तो पराया ही ना....” ये सब सुनकर मारिया का दिल दुःख जाता था मगर करीम को देखकर वो सबकुछ पी जाती थी...कुछ नहीं कहती थी...उसे बस करीम की चिंता हो रही थी कि...”कहीं घरवाले करीम से कुछ न कह दें...?”
और जैसे-जैसे करीम की मुस्कराहट और हंसी वापस आ रही थी...मारिया के घरवालों का सुकून कम होता जा रहा था...
और एक दिन वो दिन आ ही गया...जिससे करीम घबरा रहा था...घरवालों ने अब करीम के सामने ही मारिया को बुरा-भला कहना शुरू कर दिया और करीम को भी कहने लगे...”पता नहीं कहाँ से चले आते हैं लोग...दूसरों के सहारे कैसे कोई जीता है...और भला कब तक...?” करीम को घरवालों की बात का सीधा-सीधा मतलब पता था कि वो उसे पसंद नहीं करते थे और वो लोग चाहते थे कि कितनी जल्दी ये घर छोड़कर चला जाए....
और एक दिन जमकर हंगामा हुआ...मरिया को बहुत कुछ सुनना पड़ा...इतना कि करीम को बर्दाश्त नहीं हुआ...उसके पास कोई सामान तो था नहीं...जो कुछ था सब मारिया ने ही दिया था...इसलिए वो जैसे खाली हाथ आया था उसी तरह खाली हाथ जाने भी लगा...मारिया ने उसे आगे बढ़कर रोकना चाहा मगर बीच में घरवाले आ गए...”अब वो खुद ही जा रहा है तो तुम क्यों रोक रही हो...?” मारिया ने बंधन तोड़कर करीम को रोकना चाहा मगर उसे पकड़ लिया गया था...
मारिया ने देखा... करीम उसे उदास नज़रों से देख रहा है...और एक बार मारिया से नज़र मिलने के बाद करीम ने कदम आगे बढ़ा दिए...अब मारिया के होश उड़ चुके थे...मारिया ने चीखकर कहा....”करीम...! मत जाओ...रुक जाओ करीम...!” मगर अब करीम रुकना नहीं चाह रहा था...जो कुछ भी हो रहा था उसकी वजह करीम खुद को ही मान रहा था...इसलिए वो नहीं चाहता था मारिया की हंसती-खेलती जिंदगी और बर्बाद हो...वैसे भी काफी कुछ पहले ही बिगड़ चुका था...
मारिया जितना हो सकता था चीखी...चिल्लाई...मगर खुद को घरवालों की पकड़ से छुडा न सकी...वर्ना वो किसी कीमत पे करीम को अपनी आँखों के सामने यूँ जाने न देती...मारिया रोते-रोते कहती रही...”करीम...मत जाओ...रुक जाओ करीम...!” मगर करीम ने अपना दिल मजबूत कर लिया था...उसने सोच लिया था कि पीछे मुड़के नहीं देखूंगा नहीं तो अगर मारिया ने फिर अपनी उंगली का इशारा किया तो आगे नहीं बढ़ पाऊंगा.....
उधर मारिया अपनी उंगली का इशारा करना चाह रही थी...मगर उसके बाजुओं को कई लोगों ने पकड़ रखा था...मारिया वो एक इशारा न कर सकी और करीम को रोक न सकी...जब करीम मारिया की नज़र से ओझल हो गया तब उसकी रही-सही हिम्मत भी टूट गई...और उसने खुद को ढीला छोड़ दिया...घरवालों ने भी उसे छोड़ दिया...मारिया वहीँ जमीन पर लुढक गई...उसे अपनी हथेलियाँ जमीन पर दिखाई दीं...उसे अपनी वो ऊँगली भी दिखाई दी जिससे वो इशारा करती थी और जिसे देखकर करीम उसकी हर बात मान लेता था...
मारिया को लगा कि उसकी उस उंगली में अब कोई ताकत नहीं बची है...ऐसा ख्याल आते ही मारिया की आँखों से भरभरा के आंसू बहने लगे....मारिया का दिल भी रो रहा था...उसे लगा जैसे कोई बहुत कीमती चीज खो गई हो...करीम से उसका जो रिश्ता था उसे किसी ने नहीं समझा...और सबने गलत नज़र से ही देखा....
उधर करीम किसी तरह मारिया के घर से निकल तो आया....मगर रास्ते में उसे एक टूटा हुआ आईना दिखा...करीम को उस आईने में अपनी शकल दिखाई दी...करीम को अपनी खुद की शकल एक अजनबी जैसी लगी...जैसे वो उस शकल को पहचानता ही न हो...अब उसे अहसास हो रहा था कि उसके साथ क्या-क्या हुआ...? अब वो सोच रहा था कि अब वो कहाँ जाएगा...? क्या करेगा...? क्या खायेगा...? करीम बाबा के पास कम से कम एक पहचान तो थी...झूठी ही सही...लोग उसकी इज्जत तो करते थे...अब इस शकल में जिसमें वो एक पढ़ा-लिखा इंसान नज़र आ रहा था...जिस शकल को लेकर वो कहीं बैठ भी नहीं सकता था...उसका वो ‘करीम बाबा’ वाला लबादा भी मारिया के पास ही रह गया था...और फिर अब उसे लोग करीम बाबा मानेगें भी तो नहीं...करीम बड़ी मुश्किल में फंस चुका था...वो ऐसे दोराहे पर खड़ा था जहाँ उसके हिस्से में कुछ नहीं आ रहा था...इतने सालों तक ‘करीम बाबा’ की जिंदगी जीते-जीते वो सबकुछ भूल चुका था...उसके पास कोई सबूत भी नहीं था कि वही करीम बाबा है...जिसको दिखाकर वो वापस अपने डेरे पर पहुँच जाए ताकि कम से कम खाने का तो इंतजाम हो सके...अब उसके चेहरे पर एक गुस्से का सा भाव आने लगा...उसे अपनी जिंदगी नरक होती दिखाई दे रही थी...अब तो इस हालत में उसे कोई भीख भी नहीं देगा...और फिर से ‘करीम बाबा बनने की कोशिश में जान निकल जायेगी...और फिर अब वो पहले वाली मारिया से मिलने की प्यास भी तो बुझ चुकी थी...क्योंकि मारिया से मिलकर क्या मिला था ये उसने देख लिया था...और खुद मारिया कितनी मुसीबत में आ गयी थी...ये तो करीम ने कभी सोचा भी नहीं था...
करीम ने आसमान की तरफ नज़र उठाकर देखा...”वाह रे ऊपरवाले...क्या गजब खेल रचाया तुने...? मारिया को बदनाम भी कर दिया...मुझे वापस वहीं लाकर खड़ा कर दिया जहाँ से मैंने शुरू किया था...” सबसे बड़ी मुसीबत थी कि करीम रहेगा कहाँ...? खायेगा क्या...? उसके पास तो पैसे भी नहीं थे...उसके पास तो कुछ भी नहीं था...जो कुछ था वो सब छोड़कर मारिया के साथ आ गया था...अब किस मुहं से वापस जाता...मारिया ने तो उसका भला करने की कोशिश में उससे उसकी पहचान भी छीन ली थी...
करीम उस टूटे हुए आईने को लेकर वहीँ एक पेड़ के सहारे बैठ गया...उसने एक बार फिर खुद को उस टूटे हुए आईने में देखा...करीम को खुद पर हंसी आ गई...उधर मारिया बेसुध पड़ी थी...इधर करीम बेसुध पड़ा था....
उड़ते परिंदे की चाहत अधूरी हूँ मैं
चलते मुसाफिर की कोशिश पूरी हूँ मैं
मिल जाएगी मंजिल एक दिन मुझे भी
एक परिंदा, एक मुसाफिर
एक जौनपुरी हूँ मैं
कैस जौनपुरी हूँ मैं
वतन से मुहब्बत और कुछ कर सकने की ख्वाहिश यकीनन इनको कामयाबी की उच्च शिखर तक एक दिन अवश्य पहुंचेगी.
जनाब कैस जौनपुरी का जन्म 5 मई 1985 को जौनपुर, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था .मोहम्मद हसन इण्टर कालेज, जौनपुर से हाईस्कूल से पढ़ते हुए बोर्ड ऑफ टेक्नीकल एजुकेशन लखनऊ से सिविल इंजिनीयरिंग में डिप्लोमा हासिल किया. 5 साल दिल्ली में रहने के बाद अब मुंबई में प्राईवेट नौकरी और बॉलीवुड में संघर्षरत हैं.
यह फिल्म राईटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, मुंबई में ‘एसोसिएट मेंबर’. भी हैं और इनकी रचनाएँ नई दुनिया, रचनाकार, गर्भनाल, साहित्यकुंज, अनुभूति, संवाद दर्पण, प्रथम इम्पैक्ट, सरस सलिल, तरुणाई के सपने, विकल्प टाईम्स जैसी राष्ट्रिय और अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं.
जनाब कैसा साहब की एक कहानी यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ आशा है आप सबको पसंद आएगी.
मारिया
मारिया नाम था उसका...मारिया से मिलने से पहले करीम की जिंदगी एक अलग तरीके से चल रही थी...जहाँ वो खुद अपनी मर्जी का मालिक हुआ करता था...जहाँ वो सिर्फ अपनी सुनता था..और लोगों को भी सिर्फ अपनी सुनाता था...एक तरह से अपनी दुनिया का बादशाह था...लेकिन मारिया की एक झलक ने उसकी जिंदगी का रुख बदल दिया था...पता नहीं क्या जादू था मारिया की नजर में, कि वो उसके सामने आते ही एक छोटा सा बच्चा बन जाता था...और मारिया के एक इशारे पर चलना शुरू कर देता था...
ऐसा पहले नहीं था...पहले तो वो सिर्फ खुद को अकलमंद समझता था...वो भी सबसे ज्यादा... बाकी दुनिया उसको अपने आगे छोटी लगती थी...जितने भी बुरे काम हो सकते हैं...सब किये थे उसने...लेकिन पता नहीं क्या ऐसा हुआ...कि अचानक वो सबकुछ छोड़ने के लिए तैयार हो गया...
उसकी हालत सर्कस के शेर जैसी हो गई थी...जो मारिया के एक इशारे पे बिना कुछ कहे...चुपचाप...उठ जाता था...बैठ जाता था...जिंदगी को अपने तरीके से जीने वाला इंसान...सारे तरीके भूल गया था...उसे खुद समझ नहीं आ रहा था...कि मारिया के चेहरे में ऐसा क्या था...जो उसकी जुबान पर ताला लगा देता था...
मारिया बोलती बहुत थी...उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक रहती थी...हमेशा...जब वो बोलती थी...तो उसके सफ़ेद दांत करीम को किसी और ही दुनिया में लेकर चले जाते थे...जहां उसकी गुलाबी जीभ उसी की तरह चुलबुली सी हिलती-डुलती दिखाई देती थी...मारिया के मुंह के अंदर की नमी करीम को समुन्दर जैसी लगती थी...और वो मारिया को बस टकटकी लगाए बोलते हुए देखता रहता था...
यूँ तो करीम के लिए कभी कुछ मुश्किल नहीं रहा..मगर पहली बार उसे लगा जैसे उसके अंदर जरा सी भी ताकत नहीं बची है...जिसे वो मारिया को दिखा सके...
मारिया के लिए उसके दिमाग में ऐसा कुछ था भी नहीं...लेकिन कुछ था जरूर...वो क्या था खुद करीम को भी नहीं मालूम हो रहा था...इसीलिए वो मारिया को बस चुपचाप बोलते हुए सुनता रहता था....मारिया उसे बोलती हुई बहुत अच्छी लगती थी...अगर थोड़ी देर के लिए भी मारिया चुप हो जाती तो करीम की हालत खराब होने लगती थी...करीम उदास नज़रों से जब मारिया को देखता था...तो मारिया मुस्कुरा देती थी...फिर करीम की सारी उदासी पल भर में गायब हो जाती थी...और मारिया भी बड़ी अजीब थी...एक पल में खामोश हो जाती थी...दूसरे ही पल में इतनी रफ़्तार से बोलना शुरू कर देती थी कि फिर रुकने का नाम नहीं लेती थी...बस यही अदा करीम को भा गई थी...इसलिए वो मारिया को ज्यादा मौका देता था बोलने का...और खुद उसके चेहरे के हाव-भाव देखता रहता था...
मारिया बहुत गोरी थी...हद से ज्यादा...जरुरत से ज्यादा...उसके गोरे चेहरे पे ढेर सारे छोटे-छोटे तिल थे जो उसकी खूबसूरती को और बढ़ा देते थे...ऊपरवाला भी किसी-किसी के साथ बहुत मेहनत कर बैठता है...उसने मारिया को भी बड़ी मेहनत से बनाया था...मगर करीम को अफसोस था कि “मारिया किसी और की जिंदगी थी...” और मारिया अपनी जिंदगी में बहुत खुश थी...
जब करीम ने मारिया से अपने दिल की बात कही...और मारिया से अपने बारे में पूछा तो मारिया ने कहा था...”तुम मेरी जिंदगी में आये एक ऐसे इंसान हो जिसे मैं जिंदगी भर याद रखूंगी...” करीम ने इतने से ही सब्र कर लिया था...अपनी गुनाहों की दुनिया छोड़कर...जिसमें वो बहुत खुश रहता था...और जिस दुनिया में रहते हुए ही उसे मारिया मिली थी...उस खूबसूरत दुनिया को छोड़कर...एक अलग तरीके की दुनिया शुरू करने चल दिया था...जिसमें वो कभी कदम भी नहीं रखना चाहता था....वो दुनिया थी...इंसानों की दुनिया...जहाँ लोग एक-दूसरे के लिए जीते हैं...जिस दुनिया में मारिया जीती थी...
करीम, मारिया को अपनी बेशरम दुनिया में नहीं घसीट सका...मगर मारिया के चहरे की कशिश उसे खुद वापस उस दलदल में जाने नहीं दे रही थी...कशमकश ये थी कि...मारिया उसकी नहीं हो सकती थी...और सच तो ये था कि वो मारिया को कभी हासिल करना चाह भी नहीं रहा था...वो तो बस सारी दुनिया को भूलकर बस मारिया को देखते रहना चाहता था...ये बात उसने मारिया को बताई भी थी...लेकिन मारिया खुदा का बनाया हुआ ऐसा नूर थी...जिसके आगे आते ही करीम सबकुछ भूल जाता था...वो भूल जाता था कि अपनी दुनिया में वो एक कमीना किस्म का इंसान हुआ करता था...मगर मारिया के रूहानी चेहरे के सामने आते ही करीम एक फकीर जैसा हो जाता था...उसे कुरआन की आयतें याद आना शुरू हो जाती थीं...
और जब मारिया करीम की नज़रों से दूर हुई तो सिर्फ कुरआन की आयतें ही रह गईं उसके पास...जिनको करीम दुहराता रहता था...फिर लोगों ने करीम को सचमुच का फकीर समझ लिया...और करीम अपनी गुमनाम अँधेरे वाली दुनिया से बाहर आ गया था....उसकी हालत सचमुच के फकीर जैसी होने लगी थी...भूखा-प्यासा...
करीम, मारिया के रूहानी चेहरे को याद करके कुरआन की आयतें पढ़ता था...जिनमें खुदा की तारीफ़ होती थी...और करीम के चेहरे पर एक खामोश मुस्कुराहट.....लोगों ने करीम की मर्जी के बिना उसे खुदा का नेक बन्दा मान लिया...और धीरे-धीरे...करीम के आस-पास लोगों की भीड़ जुटने लगी...
करीम अब एक बाबा बन चुका था...”करीम बाबा...” लोग उसके सामने सिर झुकाने लगे...करीम मना करता था...तो लोग इसे करीम का बडप्पन समझते थे...करीम के लाख समझाने के बावुजूद लोग उसकी इज्जत करते थे...करीम लोगों से दूर भागता था...लोग उसका पीछा करते हुए उसके पास आ जाते थे...इस तरह करीम बाबा की बात आसपास के इलाकों में पहुँचने लगी...और पहुँचते-पहुँचते मारिया तक भी पहुँच गई....
वक्त बीता...हालात बीते...मारिया को भी...जिंदगी में किसी फकीर की दुआओं की जरुरत पड़ी...और इसी जरुरत को लेकर मारिया भी करीम बाबा के पास पहुंची...करीम ने मारिया को देखते ही पहचान लिया...करीम के चेहरे पर लोगों ने पहली बार हंसी देखी थी...ये हंसी थी करीम के अब तक के इंतज़ार की...जो तब पूरी हुई जब उसकी बेपनाह खूबसूरत मारिया एक बेबस की तरह उसके सामने खड़ी थी...मगर मारिया को इस बात का इल्म भी नहीं था कि ये वही करीम है...जो उसकी एक ऊँगली के इशारे पे उठता-बैठता था...कई बार उसने मजाक में भी करीम को अपनी उंगली से इशारा किया था...जिसे देखकर करीम बेबस हो जाता था...फिर मारिया खिलखिलाकर हंस देती थी...
आज मारिया खामोश थी...और करीम हंस रहा था...अपने ऊपर...मारिया के हालात के ऊपर...ऊपरवाले के ऊपर...जिसने करीम को ना चाहते हुए भी...ऐसी हालत में पहुंचा दिया था...और जिसने मारिया के रूहानी नूर को भी दरकिनार कर दिया था...और मारिया आम लोगों की तरह उसके पास आई थी...एक झूठे बाबा के पास....जो खुद मारिया के अफ़सोस में ऐसा हो गया था...
करीम को हंसी आ रही थी...अपने ऊपर...उसने जिस दुनिया को छोड़ा....उसी दुनिया के लोग उसके पास दुआ के लिए आते थे...और खुद करीम मारिया से बिछड़ने के बाद इस हालत में पंहुचा था...
करीम ने अपने आस-पास के लोगों को थोड़ी देर के लिए जाने के लिए कहा...मारिया सिर झुकाए करीम के पास खड़ी थी...करीम के मुंह से एक दर्द भरी आवाज निकली...”मारिया....!” मारिया की नज़र अचानक उठी और करीम के दाढ़ी भरे चेहरे पर पड़ी...मारिया को लगा जैसे उसके किसी अपने ने उसे आवाज दी हो...मगर वहाँ कोई उसका अपना नहीं था....वो करीम की आँखों को तो पहचान रही थी मगर उस चेहरे को नहीं पहचान पा रही थी...जो अब एक भयानक रूप ले चुका था...
करीम को अपने और मारिया के हालात पर बड़ी दया आई...उससे मारिया की ये हालत देखी न गई...उसने अपना मुंह फेर लिया...और मारिया की तरफ पीठ करके खड़ा हो गया...उसे लगा अभी मारिया पूछेगी...”करीम..! क्या तुम ठीक हो...?” जैसे मारिया उससे पूछती थी...जब करीम पहली बार मारिया से मिला था...
मारिया करीम को उदास या परेशान देखकर यही कहती...थी...”करीम...! क्या तुम ठीक हो...? मगर आज मारिया खामोश खड़ी थी...वो मारिया.... जो कभी बहुत बोलती थी...और इतना बोलती थी कि रुकने का नाम नहीं लेती थी...आज शुरू होने का नाम नहीं ले रही थी....करीम को ये बात खाए जा रही थी कि “मारिया इतनी चुप क्यों है...?” और खुद करीम इसलिए चुप था क्योंकि वो अपनी मारिया को देखकर वापस उसी हालत में पहुँच गया था....और मारिया की ऊँगली के एक इशारे का इन्तजार कर रहा था...आखिर चुप्पी मारिया ने ही तोड़ी...”सुना है आप लोगों को दुआ देते हैं...?” मारिया की आवाज सुनकर करीम का दिल बैठ गया...पलट कर आँखों में आंसू लेकर वो मारिया के सामने आ गया...उससे अब और इन्तजार न हुआ...मारिया सहम गई....करीम ने कहा...”डरो मत....मैं हूँ...करीम...” मारिया ने कहा...”हां...ये तो मुझे भी मालूम है कि आप करीम बाबा हैं...” मारिया अब भी नहीं समझ पा रही थी...करीम ने कहा...”मारिया...! तुम भूल गई...” अब मारिया के होश उड़ गए...उसने पूछा...”आपको मेरा नाम कैसे मालूम....?” करीम को हंसी आ गई...मारिया को ये हंसी कुछ जानी-पहचानी लगी...मगर उम्र का तकाजा और वक्त की रफ्तार में बहुत कुछ बदल चुका था...
करीम ने कहा...”तुमने कभी किसी से कहा था...तुम उसे पूरी जिंदगी याद रखोगी...” मारिया को करीम बाबा एक पागल लग रहा था...मारिया समझ नहीं पा रही थी...इसलिए पूछ भी नहीं पा रही थी...”क्या तुम ठीक हो...?” जिसका इंतज़ार करीम कर रहा था...करीम ने मारिया के सामने आकर कहा...”तुम्हें देखकर मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा रहा है...उस अँधेरे में और अँधेरा घिरता जा रहा है....अँधेरे के भीतर और अँधेरा...और उस अँधेरे के भीतर भी और अँधेरा....सब अँधेरा....मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है....” कहते हुए करीम बाबा मारिया के बहुत नजदीक आ चुका था...
मारिया खुद को पीछे करते हुए बोली...”मैं कुछ समझी नहीं...?” करीम ने हैरान होकर कहा...”मारिया....! तुम बिना लिपस्टिक के ज्यादा सुन्दर लगती हो....” अब मारिया को कुछ याद आ रहा था....करीम बाबा उसके सामने खड़ा था....मारिया ने हैरानी में आकर अपने मुंह पर अपना हाथ रख लिया...उसे लगा जैसे उसका कलेजा अभी मुंह से बाहर निकल आएगा...मारिया ने एक बार गौर से करीम बाबा को देखा.....और पूछा...”करीम.....? तुम....?” करीम की आँखों में आंसू थे...मारिया ने नजदीक आकर करीम की बांह पकड़कर उसे झकझोरा....”ये सब क्या है...?”
करीम कुछ न बोल सका....मारिया के चेहरे पे एक बार पहले वाली मुस्कुराहट लौट आई थी...वो एक साथ रो भी रही थी...और हंस भी रही थी....फिर मारिया ने ये भूलकर कि वो यहाँ किस काम से आई थी...करीम को उसी अंदाज में समझाने लगी जैसे पहले समझाती थी....करीम भी रोते हुए बस मारिया को बोलते हुए देख रहा था...”तुम आज भी उतना ही बोलती हो...?” करीम ने रोते हुए ही कहा...मारिया हँसते-रोते हुए बोली...”ये क्या हाल बना रखा है तुमने...? कुछ और काम नहीं मिला...?” करीम ने कहा...”ये भी मैं ना चाहते हुए बना हूँ....लोगों को बहुत समझाया मगर कोई मानने के लिए तैयार ही नहीं था......”
मारिया समझ नहीं पा रही थी कि...क्या करे...? बस हँसे जा रही थी...करीम को देखकर...और रोये जा रही थी...करीम की हालत को देखकर....बड़े-बड़े बाल...बढ़ी हुई दाढ़ी....ऐसा लग रहा था जैसे काफी दिनों से नहाया न हो....
मारिया के पूछने पर करीम ने कहा....”किसके लिए सजूँ...अब कोई देखने वाला भी तो नहीं रहा....तुम तो सोने-चांदी के गहनों में खेल रही थी....मुझ जैसे को कुछ नहीं सूझा....यूँ ही पड़ा रहता था....लोगों ने बाबा बना दिया....करीम बाबा....” कहकर हँसने लगा...मारिया भी करीम के साथ-साथ हँसने लगी....
फिर अचानक एक गहरी ख़ामोशी छा गई....मारिया ने कहा....”बस...अब बहुत हो चुका...बंद करो ये सब ड्रामा....और चलो मेरे साथ....” करीम मुस्कुराते हुए बोला....
“छोड़कर गए थे जो, मुझे राहों में
आज वो आये हैं लेने, मुझे बाँहों में”
ऐसा पहले नहीं था...पहले तो वो सिर्फ खुद को अकलमंद समझता था...वो भी सबसे ज्यादा... बाकी दुनिया उसको अपने आगे छोटी लगती थी...जितने भी बुरे काम हो सकते हैं...सब किये थे उसने...लेकिन पता नहीं क्या ऐसा हुआ...कि अचानक वो सबकुछ छोड़ने के लिए तैयार हो गया...
उसकी हालत सर्कस के शेर जैसी हो गई थी...जो मारिया के एक इशारे पे बिना कुछ कहे...चुपचाप...उठ जाता था...बैठ जाता था...जिंदगी को अपने तरीके से जीने वाला इंसान...सारे तरीके भूल गया था...उसे खुद समझ नहीं आ रहा था...कि मारिया के चेहरे में ऐसा क्या था...जो उसकी जुबान पर ताला लगा देता था...
मारिया बोलती बहुत थी...उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक रहती थी...हमेशा...जब वो बोलती थी...तो उसके सफ़ेद दांत करीम को किसी और ही दुनिया में लेकर चले जाते थे...जहां उसकी गुलाबी जीभ उसी की तरह चुलबुली सी हिलती-डुलती दिखाई देती थी...मारिया के मुंह के अंदर की नमी करीम को समुन्दर जैसी लगती थी...और वो मारिया को बस टकटकी लगाए बोलते हुए देखता रहता था...
यूँ तो करीम के लिए कभी कुछ मुश्किल नहीं रहा..मगर पहली बार उसे लगा जैसे उसके अंदर जरा सी भी ताकत नहीं बची है...जिसे वो मारिया को दिखा सके...
मारिया के लिए उसके दिमाग में ऐसा कुछ था भी नहीं...लेकिन कुछ था जरूर...वो क्या था खुद करीम को भी नहीं मालूम हो रहा था...इसीलिए वो मारिया को बस चुपचाप बोलते हुए सुनता रहता था....मारिया उसे बोलती हुई बहुत अच्छी लगती थी...अगर थोड़ी देर के लिए भी मारिया चुप हो जाती तो करीम की हालत खराब होने लगती थी...करीम उदास नज़रों से जब मारिया को देखता था...तो मारिया मुस्कुरा देती थी...फिर करीम की सारी उदासी पल भर में गायब हो जाती थी...और मारिया भी बड़ी अजीब थी...एक पल में खामोश हो जाती थी...दूसरे ही पल में इतनी रफ़्तार से बोलना शुरू कर देती थी कि फिर रुकने का नाम नहीं लेती थी...बस यही अदा करीम को भा गई थी...इसलिए वो मारिया को ज्यादा मौका देता था बोलने का...और खुद उसके चेहरे के हाव-भाव देखता रहता था...
मारिया बहुत गोरी थी...हद से ज्यादा...जरुरत से ज्यादा...उसके गोरे चेहरे पे ढेर सारे छोटे-छोटे तिल थे जो उसकी खूबसूरती को और बढ़ा देते थे...ऊपरवाला भी किसी-किसी के साथ बहुत मेहनत कर बैठता है...उसने मारिया को भी बड़ी मेहनत से बनाया था...मगर करीम को अफसोस था कि “मारिया किसी और की जिंदगी थी...” और मारिया अपनी जिंदगी में बहुत खुश थी...
जब करीम ने मारिया से अपने दिल की बात कही...और मारिया से अपने बारे में पूछा तो मारिया ने कहा था...”तुम मेरी जिंदगी में आये एक ऐसे इंसान हो जिसे मैं जिंदगी भर याद रखूंगी...” करीम ने इतने से ही सब्र कर लिया था...अपनी गुनाहों की दुनिया छोड़कर...जिसमें वो बहुत खुश रहता था...और जिस दुनिया में रहते हुए ही उसे मारिया मिली थी...उस खूबसूरत दुनिया को छोड़कर...एक अलग तरीके की दुनिया शुरू करने चल दिया था...जिसमें वो कभी कदम भी नहीं रखना चाहता था....वो दुनिया थी...इंसानों की दुनिया...जहाँ लोग एक-दूसरे के लिए जीते हैं...जिस दुनिया में मारिया जीती थी...
करीम, मारिया को अपनी बेशरम दुनिया में नहीं घसीट सका...मगर मारिया के चहरे की कशिश उसे खुद वापस उस दलदल में जाने नहीं दे रही थी...कशमकश ये थी कि...मारिया उसकी नहीं हो सकती थी...और सच तो ये था कि वो मारिया को कभी हासिल करना चाह भी नहीं रहा था...वो तो बस सारी दुनिया को भूलकर बस मारिया को देखते रहना चाहता था...ये बात उसने मारिया को बताई भी थी...लेकिन मारिया खुदा का बनाया हुआ ऐसा नूर थी...जिसके आगे आते ही करीम सबकुछ भूल जाता था...वो भूल जाता था कि अपनी दुनिया में वो एक कमीना किस्म का इंसान हुआ करता था...मगर मारिया के रूहानी चेहरे के सामने आते ही करीम एक फकीर जैसा हो जाता था...उसे कुरआन की आयतें याद आना शुरू हो जाती थीं...
और जब मारिया करीम की नज़रों से दूर हुई तो सिर्फ कुरआन की आयतें ही रह गईं उसके पास...जिनको करीम दुहराता रहता था...फिर लोगों ने करीम को सचमुच का फकीर समझ लिया...और करीम अपनी गुमनाम अँधेरे वाली दुनिया से बाहर आ गया था....उसकी हालत सचमुच के फकीर जैसी होने लगी थी...भूखा-प्यासा...
करीम, मारिया के रूहानी चेहरे को याद करके कुरआन की आयतें पढ़ता था...जिनमें खुदा की तारीफ़ होती थी...और करीम के चेहरे पर एक खामोश मुस्कुराहट.....लोगों ने करीम की मर्जी के बिना उसे खुदा का नेक बन्दा मान लिया...और धीरे-धीरे...करीम के आस-पास लोगों की भीड़ जुटने लगी...
करीम अब एक बाबा बन चुका था...”करीम बाबा...” लोग उसके सामने सिर झुकाने लगे...करीम मना करता था...तो लोग इसे करीम का बडप्पन समझते थे...करीम के लाख समझाने के बावुजूद लोग उसकी इज्जत करते थे...करीम लोगों से दूर भागता था...लोग उसका पीछा करते हुए उसके पास आ जाते थे...इस तरह करीम बाबा की बात आसपास के इलाकों में पहुँचने लगी...और पहुँचते-पहुँचते मारिया तक भी पहुँच गई....
वक्त बीता...हालात बीते...मारिया को भी...जिंदगी में किसी फकीर की दुआओं की जरुरत पड़ी...और इसी जरुरत को लेकर मारिया भी करीम बाबा के पास पहुंची...करीम ने मारिया को देखते ही पहचान लिया...करीम के चेहरे पर लोगों ने पहली बार हंसी देखी थी...ये हंसी थी करीम के अब तक के इंतज़ार की...जो तब पूरी हुई जब उसकी बेपनाह खूबसूरत मारिया एक बेबस की तरह उसके सामने खड़ी थी...मगर मारिया को इस बात का इल्म भी नहीं था कि ये वही करीम है...जो उसकी एक ऊँगली के इशारे पे उठता-बैठता था...कई बार उसने मजाक में भी करीम को अपनी उंगली से इशारा किया था...जिसे देखकर करीम बेबस हो जाता था...फिर मारिया खिलखिलाकर हंस देती थी...
आज मारिया खामोश थी...और करीम हंस रहा था...अपने ऊपर...मारिया के हालात के ऊपर...ऊपरवाले के ऊपर...जिसने करीम को ना चाहते हुए भी...ऐसी हालत में पहुंचा दिया था...और जिसने मारिया के रूहानी नूर को भी दरकिनार कर दिया था...और मारिया आम लोगों की तरह उसके पास आई थी...एक झूठे बाबा के पास....जो खुद मारिया के अफ़सोस में ऐसा हो गया था...
करीम को हंसी आ रही थी...अपने ऊपर...उसने जिस दुनिया को छोड़ा....उसी दुनिया के लोग उसके पास दुआ के लिए आते थे...और खुद करीम मारिया से बिछड़ने के बाद इस हालत में पंहुचा था...
करीम ने अपने आस-पास के लोगों को थोड़ी देर के लिए जाने के लिए कहा...मारिया सिर झुकाए करीम के पास खड़ी थी...करीम के मुंह से एक दर्द भरी आवाज निकली...”मारिया....!” मारिया की नज़र अचानक उठी और करीम के दाढ़ी भरे चेहरे पर पड़ी...मारिया को लगा जैसे उसके किसी अपने ने उसे आवाज दी हो...मगर वहाँ कोई उसका अपना नहीं था....वो करीम की आँखों को तो पहचान रही थी मगर उस चेहरे को नहीं पहचान पा रही थी...जो अब एक भयानक रूप ले चुका था...
करीम को अपने और मारिया के हालात पर बड़ी दया आई...उससे मारिया की ये हालत देखी न गई...उसने अपना मुंह फेर लिया...और मारिया की तरफ पीठ करके खड़ा हो गया...उसे लगा अभी मारिया पूछेगी...”करीम..! क्या तुम ठीक हो...?” जैसे मारिया उससे पूछती थी...जब करीम पहली बार मारिया से मिला था...
मारिया करीम को उदास या परेशान देखकर यही कहती...थी...”करीम...! क्या तुम ठीक हो...? मगर आज मारिया खामोश खड़ी थी...वो मारिया.... जो कभी बहुत बोलती थी...और इतना बोलती थी कि रुकने का नाम नहीं लेती थी...आज शुरू होने का नाम नहीं ले रही थी....करीम को ये बात खाए जा रही थी कि “मारिया इतनी चुप क्यों है...?” और खुद करीम इसलिए चुप था क्योंकि वो अपनी मारिया को देखकर वापस उसी हालत में पहुँच गया था....और मारिया की ऊँगली के एक इशारे का इन्तजार कर रहा था...आखिर चुप्पी मारिया ने ही तोड़ी...”सुना है आप लोगों को दुआ देते हैं...?” मारिया की आवाज सुनकर करीम का दिल बैठ गया...पलट कर आँखों में आंसू लेकर वो मारिया के सामने आ गया...उससे अब और इन्तजार न हुआ...मारिया सहम गई....करीम ने कहा...”डरो मत....मैं हूँ...करीम...” मारिया ने कहा...”हां...ये तो मुझे भी मालूम है कि आप करीम बाबा हैं...” मारिया अब भी नहीं समझ पा रही थी...करीम ने कहा...”मारिया...! तुम भूल गई...” अब मारिया के होश उड़ गए...उसने पूछा...”आपको मेरा नाम कैसे मालूम....?” करीम को हंसी आ गई...मारिया को ये हंसी कुछ जानी-पहचानी लगी...मगर उम्र का तकाजा और वक्त की रफ्तार में बहुत कुछ बदल चुका था...
करीम ने कहा...”तुमने कभी किसी से कहा था...तुम उसे पूरी जिंदगी याद रखोगी...” मारिया को करीम बाबा एक पागल लग रहा था...मारिया समझ नहीं पा रही थी...इसलिए पूछ भी नहीं पा रही थी...”क्या तुम ठीक हो...?” जिसका इंतज़ार करीम कर रहा था...करीम ने मारिया के सामने आकर कहा...”तुम्हें देखकर मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा रहा है...उस अँधेरे में और अँधेरा घिरता जा रहा है....अँधेरे के भीतर और अँधेरा...और उस अँधेरे के भीतर भी और अँधेरा....सब अँधेरा....मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है....” कहते हुए करीम बाबा मारिया के बहुत नजदीक आ चुका था...
मारिया खुद को पीछे करते हुए बोली...”मैं कुछ समझी नहीं...?” करीम ने हैरान होकर कहा...”मारिया....! तुम बिना लिपस्टिक के ज्यादा सुन्दर लगती हो....” अब मारिया को कुछ याद आ रहा था....करीम बाबा उसके सामने खड़ा था....मारिया ने हैरानी में आकर अपने मुंह पर अपना हाथ रख लिया...उसे लगा जैसे उसका कलेजा अभी मुंह से बाहर निकल आएगा...मारिया ने एक बार गौर से करीम बाबा को देखा.....और पूछा...”करीम.....? तुम....?” करीम की आँखों में आंसू थे...मारिया ने नजदीक आकर करीम की बांह पकड़कर उसे झकझोरा....”ये सब क्या है...?”
करीम कुछ न बोल सका....मारिया के चेहरे पे एक बार पहले वाली मुस्कुराहट लौट आई थी...वो एक साथ रो भी रही थी...और हंस भी रही थी....फिर मारिया ने ये भूलकर कि वो यहाँ किस काम से आई थी...करीम को उसी अंदाज में समझाने लगी जैसे पहले समझाती थी....करीम भी रोते हुए बस मारिया को बोलते हुए देख रहा था...”तुम आज भी उतना ही बोलती हो...?” करीम ने रोते हुए ही कहा...मारिया हँसते-रोते हुए बोली...”ये क्या हाल बना रखा है तुमने...? कुछ और काम नहीं मिला...?” करीम ने कहा...”ये भी मैं ना चाहते हुए बना हूँ....लोगों को बहुत समझाया मगर कोई मानने के लिए तैयार ही नहीं था......”
मारिया समझ नहीं पा रही थी कि...क्या करे...? बस हँसे जा रही थी...करीम को देखकर...और रोये जा रही थी...करीम की हालत को देखकर....बड़े-बड़े बाल...बढ़ी हुई दाढ़ी....ऐसा लग रहा था जैसे काफी दिनों से नहाया न हो....
मारिया के पूछने पर करीम ने कहा....”किसके लिए सजूँ...अब कोई देखने वाला भी तो नहीं रहा....तुम तो सोने-चांदी के गहनों में खेल रही थी....मुझ जैसे को कुछ नहीं सूझा....यूँ ही पड़ा रहता था....लोगों ने बाबा बना दिया....करीम बाबा....” कहकर हँसने लगा...मारिया भी करीम के साथ-साथ हँसने लगी....
फिर अचानक एक गहरी ख़ामोशी छा गई....मारिया ने कहा....”बस...अब बहुत हो चुका...बंद करो ये सब ड्रामा....और चलो मेरे साथ....” करीम मुस्कुराते हुए बोला....
“छोड़कर गए थे जो, मुझे राहों में
आज वो आये हैं लेने, मुझे बाँहों में”
“मैं अब कहाँ जाऊंगा...?” करीम ने दर्द भरी आवाज में कहा...मारिया ने करीम को बस एक नज़र घूरकर देखा और अपनी उंगली से इशारा किया....”मैं कुछ नहीं जानती....तुम बस चलो....मैंने कह दिया तो कह दिया....” इतना कहकर मारिया कमरे से बाहर निकल गई....करीम वहीं खड़ा सोचता रहा....मारिया तेज कदमों से चली जा रही थी...उसने पीछे मुड़कर देखा....करीम अभी उसी जगह खड़ा था....मारिया ने एक बार फिर करीम को अपनी तरफ आने का इशारा किया...इस बार करीम को अपनी वही पुरानी मारिया दिखाई दी...वो चुपचाप मारिया की तरफ चल दिया....करीम के शागिर्द करीम से जाते हुए पूछने लगे.....”बाबा किधर जा रहे हैं....?” करीम ने मुस्कुराते हुए कहा....”मेरा खुदा मुझे बुला रहा है....” सभी शागिर्द हैरान होकर देखने लगे....उन्होंने देखा...करीम, मारिया की तरफ बढ़ रहा था...मारिया के चेहरे पर वही रूहानी नूर चमक रहा था....
मारिया – पार्ट 2
मारिया ‘करीम बाबा’ को अपने साथ अपने घर ले आई. घरवालों ने पूछा “ये क्या मुसीबत है...?” मारिया ने किसी तरह अपने घर वालों को समझा-बुझा कर करीम को कुछ दिनों के लिए अपने पास रखने पर मना लिया...मारिया थी ही ऐसी कि उसकी बात भला कोई कैसे टाल सकता था...खुद करीम भी तो नहीं टाल पाया था और अब न चाहते हुए भी मारिया के ऊपर बोझ बन बैठा था...
करीम को ये बात खाए जा रही थी...कि उसकी वजह से मारिया को लोगों की बातें सुननी पड़ रही हैं...उसने मारिया से कहा...”मुझे जाने दो...” मगर मारिया अपनी उंगली का एक इशारा दिखाती थी और करीम चुप हो जाता था...
कुछ दिन बीते...करीम ने सोचा...”मारिया तो मेरी बात मानने वाली है नहीं...लेकिन मेरी वजह से मारिया को तकलीफ हो रही है...तुम कैसे आदमी हो...बेचारी मारिया ने तो तुम्हारे लिए क्या-क्या किया...और तुमने...? तुम मारिया के ऊपर ही बोझ बन बैठे....? धिक्कार है तुमपर...” खुद को जी भर के कोस लेने के बाद अगली सुबह होने से पहले ही करीम भोर में ही मारिया के घर से निकल गया....ताकि मारिया को पता भी न चले...वर्ना...वो किसी भी कीमत पर उसे जाने नहीं देगी....
करीम मारिया के घर से निकल कर जल्दी-जल्दी पास के रेलवे स्टेशन पहुँच गया...करीम ट्रेन का इन्तजार कर रहा था...थोड़ी ही देर में ट्रेन भी आ गई थी...करीम को लगा कि अब मारिया को उसकी वजह से परेशानी नहीं होगी...और वो ट्रेन को प्लेटफार्म पर रुकते हुए देख रहा था...जाना तो वो भी नहीं चाह रहा था...मगर उसकी वजह से मारिया को परेशानी हो रही थी....ये उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था.
उसने देखा कि ट्रेन अब प्लेटफार्म पर आ चुकी है...सुबह-सुबह का वक्त था इसलिए ट्रेन के इंजन के पास कोहरा और धुआं भी था...करीम ने एक आखिरी बार मारिया को याद किया...और चलने के लिए उठा....तभी धुएं और कोहरे के बीच से मारिया आती हुई दिखाई दी...करीम का तो ये हाल हुआ कि कहाँ भाग जाए ताकि मारिया की बातें न सुननी पड़ें...क्योंकि वो मारिया के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे पायेगा...और मारिया उसे खूब डांटेगी...करीम ये सब सोच ही रहा था...तब तक मारिया उसके पास आ चुकी थी...मारिया ने पूछा...”कहाँ जा रहे हो..?” करीम ने कुछ नहीं कहा...करीम एक गुनाहगार की तरह सिर झुकाए खड़ा था. मारिया की बातें उसके कानों तक जा तो रहीं थीं मगर उसके बाद उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था...
मारिया ने फिर पूछा...”क्यूँ जा रहे थे...?” करीम ने कहा...”मारिया...! मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से लोग तुम्हें कुछ कहें...इसलिए....” मारिया ने बात बीच में ही काटकर कहा...”इसलिए तुम चल दिए...घर छोड़कर...बिना बताये....और तुम्हें लगा कि तुम यूँ ही निकल जाओगे...करीम...! तुम समझते क्यों नहीं...? मैं कैसे समझाऊं तुम्हें...? एक तो मैं खुद लोगों के सवालों का जवाब दे-दे कर परेशान हूँ...उसपर से तुम बिना बताये चल दिए...तुम्हारे जाने के बाद लोग जब मुझसे पूछेंगे कि तुम क्यूँ चले गए? तो मैं क्या बताउंगी...? बोलो...? जवाब दो...?
करीम ने कहा...”यही तो मैं नहीं चाहता कि लोग तुमसे सवाल करें....” मारिया ने फिर कहा...”तुमने तो ये चाह लिया...लेकिन क्या कभी तुमने ये सोचा है कि मारिया क्या चाहती है...?” सवाल बहुत भारी था...इतना भारी कि करीम की आँखों में आंसू आ गए...और मारिया भी खुद को रोक न सकी...करीम आसमान की तरफ सवाल भरी नज़र से देखने लगा...फिर उसे शायद कुछ बोलने की हिम्मत मिली...उसने कहा...”मारिया...! तुम जो चाहती हो वो ज्यादा दिन तक टिकने वाला नहीं है... क्योंकि तुम्हारा दिल साफ़ है...और इस जाहिल दुनिया में साफ़ दिल वालों की कोई कद्र नहीं करता...एक न एक दिन यही लोग तुम्हें मजबूर कर देंगे...और तब तक हालात और खराब हो चुके रहेंगे...मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम मुसीबत में आओ...”
मारिया करीम की आँखों में देख रही थी....उन आँखों में जिनमें कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही थी...जो बेबस हो चुकी थीं...मारिया उन खामोश आँखों में चमक लाना चाहती थी...’करीम बाबा’ को सिर्फ करीम बनाना चाहती थी...उसने कहा...”करीम..! बस बहुत हुआ...अब तुम वादा करो...दुबारा ऐसी हरकत नहीं करोगे...बिना बताये तुम कहीं नहीं जाओगे...अब चलो मेरे साथ....” करीम ने देखा...मारिया की आँखों में एक अपनापन था...मारिया ने अपनी जानी-पहचानी उंगली से इशारा किया...”चलो...” और करीम मारिया के पीछे-पीछे चल दिया...
रास्ते में मारिया सोच रही थी कि क्या ऐसा करे जिससे करीम का हुलिया ठीक हो जाए...? इसके लिए वो करीम को नाई की दुकान पर ले गई...करीम कहता रहा...”ठीक है...मारिया...! ये सब करने की कोई जरूरत नहीं है...मेरी पहचान तो मत मिटाओ...” मगर मारिया उस ‘करीम बाबा’ को एक पल भी और नहीं देखना चाहती थी...लाख मना करने के बावुजूद मारिया नहीं मानी और करीम कुछ कर भी न सका...आखिर मारिया जो कुछ भी कर रही थी...करीम के भले के लिए ही तो कर रही थी...नाई की दुकान से बाहर निकलने पर ‘करीम बाबा’ कहीं खो चुका था...अब जो शख्स मारिया के सामने था वो उसका करीम था...सिर्फ करीम...मारिया ने रास्ते में नए कपड़े भी ले लिए...और घर पहुँचने से पहले ही मारिया ने करीम का हुलिया बदल दिया था...
करीम खुद, खुद को नहीं पहचान पा रहा था...लेकिन मारिया खुश थी इस नए करीम को देखकर...घरवालों के सामने आकर मारिया ने बड़ी गर्मजोशी से सबको बताया....लोगों ने मुंह पर तो कुछ नहीं कहा...मगर घरवालों को कुछ खास खुशी नहीं हुई थी...करीम को वापस देखकर...वो भी इस नए अवतार में...
मारिया को लगा...कहीं करीम फिर न भाग जाए...? इसके लिए उसने करीम को ज्यादा वक्त देना शुरू कर दिया...दोनों घंटों बातें करते रहते...कभी-कभी मारिया खिलखिलाकर हँसती थी तो घरवाले चिढ़ जाते थे...घरवालों को मारिया की करीम से ये नजदीकी देखी नहीं जा रही थी...धीरे-धीरे करीम की हालत में सुधार आने लगा...अब करीम भी हँसने-बोलने लगा था.....और अब तो वो सबकी तरह एक इज्जतदार आदमी लगता था....मगर मारिया का उसके साथ यूँ वक्त बिताना उसके घरवालों को अंदर ही अंदर साल रहा था...
धीरे-धीरे मारिया से सवाल-जवाब भी किये जाने लगे कि...”ठीक है...तुमने किसी की मदद की...मगर इतना भी क्या कि...हर वक्त उसी के पास बैठी रहो...हंसती रहो...कितना भी है...है तो पराया ही ना....” ये सब सुनकर मारिया का दिल दुःख जाता था मगर करीम को देखकर वो सबकुछ पी जाती थी...कुछ नहीं कहती थी...उसे बस करीम की चिंता हो रही थी कि...”कहीं घरवाले करीम से कुछ न कह दें...?”
और जैसे-जैसे करीम की मुस्कराहट और हंसी वापस आ रही थी...मारिया के घरवालों का सुकून कम होता जा रहा था...
और एक दिन वो दिन आ ही गया...जिससे करीम घबरा रहा था...घरवालों ने अब करीम के सामने ही मारिया को बुरा-भला कहना शुरू कर दिया और करीम को भी कहने लगे...”पता नहीं कहाँ से चले आते हैं लोग...दूसरों के सहारे कैसे कोई जीता है...और भला कब तक...?” करीम को घरवालों की बात का सीधा-सीधा मतलब पता था कि वो उसे पसंद नहीं करते थे और वो लोग चाहते थे कि कितनी जल्दी ये घर छोड़कर चला जाए....
और एक दिन जमकर हंगामा हुआ...मरिया को बहुत कुछ सुनना पड़ा...इतना कि करीम को बर्दाश्त नहीं हुआ...उसके पास कोई सामान तो था नहीं...जो कुछ था सब मारिया ने ही दिया था...इसलिए वो जैसे खाली हाथ आया था उसी तरह खाली हाथ जाने भी लगा...मारिया ने उसे आगे बढ़कर रोकना चाहा मगर बीच में घरवाले आ गए...”अब वो खुद ही जा रहा है तो तुम क्यों रोक रही हो...?” मारिया ने बंधन तोड़कर करीम को रोकना चाहा मगर उसे पकड़ लिया गया था...
मारिया ने देखा... करीम उसे उदास नज़रों से देख रहा है...और एक बार मारिया से नज़र मिलने के बाद करीम ने कदम आगे बढ़ा दिए...अब मारिया के होश उड़ चुके थे...मारिया ने चीखकर कहा....”करीम...! मत जाओ...रुक जाओ करीम...!” मगर अब करीम रुकना नहीं चाह रहा था...जो कुछ भी हो रहा था उसकी वजह करीम खुद को ही मान रहा था...इसलिए वो नहीं चाहता था मारिया की हंसती-खेलती जिंदगी और बर्बाद हो...वैसे भी काफी कुछ पहले ही बिगड़ चुका था...
मारिया जितना हो सकता था चीखी...चिल्लाई...मगर खुद को घरवालों की पकड़ से छुडा न सकी...वर्ना वो किसी कीमत पे करीम को अपनी आँखों के सामने यूँ जाने न देती...मारिया रोते-रोते कहती रही...”करीम...मत जाओ...रुक जाओ करीम...!” मगर करीम ने अपना दिल मजबूत कर लिया था...उसने सोच लिया था कि पीछे मुड़के नहीं देखूंगा नहीं तो अगर मारिया ने फिर अपनी उंगली का इशारा किया तो आगे नहीं बढ़ पाऊंगा.....
उधर मारिया अपनी उंगली का इशारा करना चाह रही थी...मगर उसके बाजुओं को कई लोगों ने पकड़ रखा था...मारिया वो एक इशारा न कर सकी और करीम को रोक न सकी...जब करीम मारिया की नज़र से ओझल हो गया तब उसकी रही-सही हिम्मत भी टूट गई...और उसने खुद को ढीला छोड़ दिया...घरवालों ने भी उसे छोड़ दिया...मारिया वहीँ जमीन पर लुढक गई...उसे अपनी हथेलियाँ जमीन पर दिखाई दीं...उसे अपनी वो ऊँगली भी दिखाई दी जिससे वो इशारा करती थी और जिसे देखकर करीम उसकी हर बात मान लेता था...
मारिया को लगा कि उसकी उस उंगली में अब कोई ताकत नहीं बची है...ऐसा ख्याल आते ही मारिया की आँखों से भरभरा के आंसू बहने लगे....मारिया का दिल भी रो रहा था...उसे लगा जैसे कोई बहुत कीमती चीज खो गई हो...करीम से उसका जो रिश्ता था उसे किसी ने नहीं समझा...और सबने गलत नज़र से ही देखा....
उधर करीम किसी तरह मारिया के घर से निकल तो आया....मगर रास्ते में उसे एक टूटा हुआ आईना दिखा...करीम को उस आईने में अपनी शकल दिखाई दी...करीम को अपनी खुद की शकल एक अजनबी जैसी लगी...जैसे वो उस शकल को पहचानता ही न हो...अब उसे अहसास हो रहा था कि उसके साथ क्या-क्या हुआ...? अब वो सोच रहा था कि अब वो कहाँ जाएगा...? क्या करेगा...? क्या खायेगा...? करीम बाबा के पास कम से कम एक पहचान तो थी...झूठी ही सही...लोग उसकी इज्जत तो करते थे...अब इस शकल में जिसमें वो एक पढ़ा-लिखा इंसान नज़र आ रहा था...जिस शकल को लेकर वो कहीं बैठ भी नहीं सकता था...उसका वो ‘करीम बाबा’ वाला लबादा भी मारिया के पास ही रह गया था...और फिर अब उसे लोग करीम बाबा मानेगें भी तो नहीं...करीम बड़ी मुश्किल में फंस चुका था...वो ऐसे दोराहे पर खड़ा था जहाँ उसके हिस्से में कुछ नहीं आ रहा था...इतने सालों तक ‘करीम बाबा’ की जिंदगी जीते-जीते वो सबकुछ भूल चुका था...उसके पास कोई सबूत भी नहीं था कि वही करीम बाबा है...जिसको दिखाकर वो वापस अपने डेरे पर पहुँच जाए ताकि कम से कम खाने का तो इंतजाम हो सके...अब उसके चेहरे पर एक गुस्से का सा भाव आने लगा...उसे अपनी जिंदगी नरक होती दिखाई दे रही थी...अब तो इस हालत में उसे कोई भीख भी नहीं देगा...और फिर से ‘करीम बाबा बनने की कोशिश में जान निकल जायेगी...और फिर अब वो पहले वाली मारिया से मिलने की प्यास भी तो बुझ चुकी थी...क्योंकि मारिया से मिलकर क्या मिला था ये उसने देख लिया था...और खुद मारिया कितनी मुसीबत में आ गयी थी...ये तो करीम ने कभी सोचा भी नहीं था...
करीम ने आसमान की तरफ नज़र उठाकर देखा...”वाह रे ऊपरवाले...क्या गजब खेल रचाया तुने...? मारिया को बदनाम भी कर दिया...मुझे वापस वहीं लाकर खड़ा कर दिया जहाँ से मैंने शुरू किया था...” सबसे बड़ी मुसीबत थी कि करीम रहेगा कहाँ...? खायेगा क्या...? उसके पास तो पैसे भी नहीं थे...उसके पास तो कुछ भी नहीं था...जो कुछ था वो सब छोड़कर मारिया के साथ आ गया था...अब किस मुहं से वापस जाता...मारिया ने तो उसका भला करने की कोशिश में उससे उसकी पहचान भी छीन ली थी...
करीम उस टूटे हुए आईने को लेकर वहीँ एक पेड़ के सहारे बैठ गया...उसने एक बार फिर खुद को उस टूटे हुए आईने में देखा...करीम को खुद पर हंसी आ गई...उधर मारिया बेसुध पड़ी थी...इधर करीम बेसुध पड़ा था....
कैस जौनपुर सफलता की नयी उचाइयां छुए और जौनपुर का नाम बुलंदियों तक पहुचे
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया जनाब...!
जवाब देंहटाएंएक सुंदर व्यक्तित्व कहलाने का हक़दार वास्तव में वही है जिसने अपने मन को सुमन बना लिया है।आशा है कि कैस साहब ऐसे हि होन्गे.
जवाब देंहटाएंhttp://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/06/real-beauty.html
Good going dear!
जवाब देंहटाएंKeep it up!
You are certainly going to Rock the world in future.
Best of luck!
जमाल साहेब....कैस जौनपुरी को जौनपुर से बहुत प्यार है...इसलिये अपना नाम ही जौनपुरी रख लिया है...ताकि जानने वाले को पता चले कि....मैं एक जौनपुरी हूं....
जवाब देंहटाएंThank you so much Gyanendra Sir....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ! लगे रहिये कैस जी!
जवाब देंहटाएंइस वेबसाइट के लिये भी धन्यवाद एवम बधाइयां मासूम साहब।
शुक्रिया अमित जी...
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने...मासूम साहेब ने वाकई बहुत खूबसूरत काम किया है....
thank u
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