728x90 AdSpace

This Blog is protected by DMCA.com

DMCA.com for Blogger blogs Copyright: All rights reserved. No part of the hamarajaunpur.com may be reproduced or copied in any form or by any means [graphic, electronic or mechanical, including photocopying, recording, taping or information retrieval systems] or reproduced on any disc, tape, perforated media or other information storage device, etc., without the explicit written permission of the editor. Breach of the condition is liable for legal action. hamarajaunpur.com is a part of "Hamara Jaunpur Social welfare Foundation (Regd) Admin S.M.Masoom
  • Latest

    मंगलवार, 21 जून 2011

    दर्द देख जब रो मै पड़ता

    दर्द देख जब रो मै पड़ता
    ---------------------------------
    बूढ़े जर्जर नतमस्तक हो
    इतना बोझा ढोते
    साँस समाती नहीं है छाती
    खांस खांस गिर पड़ते !
    दुत्कारे-कोई- लूट चले है
    प्लेटफार्म पर सोते !
    नमन तुम्हे हे ताऊ काका
    सिर ऊंचा रख- फिर भी जीते !!
    -------------------------------------
    वंजर धरती हरी वो करते खून -पसीने सींचे !
    कहें सुदामा -श्याम कहाँ हैं ?
    पाँव विवाई फूटे !
    सूखा -अकाल अति वृष्टि कभी तो
    अंत ऐंठती बच्चे सोते भूखे !
    कर्ज दिए कुछ फंदा डाले
    कठपुतली से खेलें !
    नमन तुम्हे हे ताऊ काका
    पेट -पीठ से बांधे हो भी
    पेट हमारा भरते !!
    --------------------------
    बैल के जैसे घोडा -गाडी
    जेठ दुपहरी खींचे !
    जीभ निकाले पड़ा कभी तो
    दो पैसे की खातिर कोई
    गाली देता पीटे
    बदहवास -कुछ-यार मिले तो
    चले लुटाये -पी के !!
    नमन तुम्हे हे ताऊ काका
    दो पैसों से बच्चे तेरे
    खाते -पढ़ते-जीते !!
    --------------------------
    काले -काले भूत सरीखे
    मैले कुचले फटे वस्त्र में
    बच्चे-बूढ़े होते !
    ईंट का भट्ठा-खान हो चाहे
    मिल- गैरेज -में डटे देख लो
    दिवस रात बस खटते !
    नैन में भर के- ढांक -रहे हैं
    इज्जत अपनी -रही कुंवारी
    गिद्ध बाज -जो भिड़ के !
    नमन तुम्हे- हे ! - तेज तुम्हारा
    कल - दुनिया को जीते !!
    -----------------------------
    बर्फीली नदियों घाटी में
    बुत से बर्फ लदे जो दिखते !
    रेगिस्तान का धूल फांक जो
    जलते - भुनते - लड़ते !
    भूख प्यास जंगल जंगल
    जान लुटाते भटकें !
    कहीं सुहागन- विरहन -बैठी
    विधवा- कहीं है रोती !
    होली में गोली संग खेले
    माँ का कर्ज चुकाते !
    तुम को नमन हे वीर -सिपाही
    दर्द देख -- जब रो मै पड़ता
    तेरे अपने - कैसे -जीते !!
    --------------------------------
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
    २२.०६.२०११ जल पी बी
    • Blogger Comments
    • Facebook Comments

    2 comments:

    1. दिल की गहराइयों से निकली भावनाओं पर आधारित अच्छी कविता. मानव-जीवन के विविध रंगों का हृदयस्पर्शी प्रस्तुतिकरण.आभार.

      जवाब देंहटाएं
    2. स्वागत है आप का स्वराज्य करून जी -बहुत सुन्दर शब्द आप के आप ने इस व्यथा को महसूस किया आइये इन वर्गों के लिए दिल में जगह रखें उन्हें आहत न करें कभी

      आभार आप का

      शुक्ल भ्रमर ५

      जवाब देंहटाएं

    हमारा जौनपुर में आपके सुझाव का स्वागत है | सुझाव दे के अपने वतन जौनपुर को विश्वपटल पे उसका सही स्थान दिलाने में हमारी मदद करें |
    संचालक
    एस एम् मासूम

    Item Reviewed: दर्द देख जब रो मै पड़ता Rating: 5 Reviewed By: SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5
    Scroll to Top