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    सोमवार, 29 जनवरी 2018

    समर्पण

    चाँद तारों की बात करते हो 
    हवा का  रुख बदलने की  
    बात करते हो 
    रोते बच्चों को जो हंसा दो 
    तो मैं जानूँ |
    मरने - मारने की बात करते हो 
    अपनी ताकत पे यूँ इठलाते  हो  
    गिरतों को तुम थाम लो 
    तो मैं मानूँ |
    जिंदगी यूँ तो हर पल बदलती है
    अच्छे - बुरे एहसासों से गुजरती है  
    किसी को अपना बना लो 
    तो में मानूँ |
    राह  से रोज़ तुम गुजरते हो 
    बड़ी - बड़ी बातों  से दिल को हरते हो 
    प्यार के दो बोल बोलके  तुम 
    उसके चेहरे में रोनक ला दो 
    तो मैं जानूँ |
    अपनों के लिए तो हर कोई जीता है 
    हर वक़्त दूसरा - दूसरा  कहता है |
    दुसरे को भी गले से जो तुम लगा लो 
    तो मैं मानूँ |
    तू - तू , मैं - मैं तो हर कोई करता है 
    खुद को साबित करने के लिए ही लड़ता है 
    नफ़रत की इस दीवार को जो तुम ढहा दो 
    तो मैं मानूँ |




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    4 comments:

    1. तू - तू , मैं - मैं तो हर कोई करता है
      खुद को साबित करने के लिए ही लड़ता है
      नफ़रत की इस दीवार को जो तुम ढहा दो
      तो मैं मानूँ |

      good

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    2. राह से रोज़ तुम गुजरते हो
      बड़ी - बड़ी बातों से दिल को हरते हो
      प्यार के दो बोल बोलके तुम
      उसके चेहरे में रोनक ला दो
      तो मैं जानूँ
      .
      वाह क्या बात है मीनाक्षी जी

      जवाब देंहटाएं
    3. मीनाक्षी जी बहुत उम्दा बात कही आपने
      आपकी बात में कुछ जोडने की एक छोटी सी कोशिश

      हर रोज दिन रात जाने कितना लिखते हो
      कभी चाँद की कभी संसद की बात लिखते हो
      लिखने से परिवर्तित कर सको किसी गुनहगार का मन
      तो तुमको ब्लागर जानूँ

      जवाब देंहटाएं
    4. हाँ लिखने को तो मैं दिन रात लिखती हूँ
      कभी चाँद पर तो कभी तारों पे लिखती हूँ
      ये एक मेरी छोटी सी कोशिश ही तो है
      हाँ बदल डालूं किसी एक का ही दिल
      इतनी ताक़त तो मैं भी रखती हूँ |

      शुक्रिया दोस्त |

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