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    गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

    जौनपुर का इतिहास के लेखक त्रिपुरारी भास्कर से एक बात चीत ।

    त्रिपुरारी भास्कर

    अपने वतन जौनपुर के लिए कुछ करने की चाह में मुझे हमेशा ऐसे लोगो की तलाश रही जिन्होंने जौनपुर के लिए कुछ किया हो या करना चाहते हो और इस बात इसी तलाश में तलाश में मुलाक़ात हो गयी श्री त्रिपुरारी भास्कर जी से जिन्होंने जौनपुर का इतिहास नामक किताब १९६० में लिखी जिसका परिवर्धित संस्करण २००६ में फिर से लोगों की डिमांड पे निकला ।

    पूर्व सूचना उप निदेशक रह चुके श्री त्रिपुरारी भास्कर  और उनके पुत्र पवन भास्कर जी से लखनऊ में मुलाक़ात उनके निवास स्थान पे हुयी और मिलने के बाद ऐसा लगा की आज भी ऐसे लोग मौजूद हैं जिन्हे अपने वतन जौनपुर से प्रेम है । जौनपुर के इतिहास के बार में वो कहते हैं  कि " जौनपुर के खेतो में चमेली और बेला आज भी आधी रात को खिलता है इसकी छणिक  मुस्कान को मत छीनो । जौनपुर ने शहादत की परंपरा को क़ायम रखा है यहां के शहीदो को मत भुलाओ । परन्तु गोमती इस बात की गवाह है कि जौनपुर को भारत में वो स्थान नहीं मिला जिसका वो हक़दार था । जौनपुर को भास्कर जी ने अपनी किताब में "महामहिमामयी " कहा है ।


      त्रिपुरारी भास्कर जी से बात चीत के दौरान पुछा की जौनपुर में बनाये मस्जिदो इत्यादि के विषय में एक बड़ी बहस हुआ करती है की ये पथ्थर कहाँ से आये ? कोई कहता है मंदिर  गया कोई कहता है मिर्ज़ापुर से लाये गए । त्रिपुरारी भास्कर जी का जवाब था उचित होगा शार्की समय के बने मस्जिदो और क़िले इत्यादि की सुंदरता को कोशिश करें की वैसी ही हालत में रहे जैसी थी और यह कैसे बनी इत्यादि का कोई पुख्ता सुबूत ना होने के कारण इस बहस में ना पढ़ें क्यों की यह बहस जौनपुर की तरक्क़ी में बाधा बनती है ।


    ८४ वर्ष की इस उम्र में भी जब त्रिपुरारी जी के सामने जौनपुर का नाम लिया तो उनकी बूढी आँखों में एक चमक सी आ गयी और जब उन्हें पता चला की मैं भी जौनपुर के लिए काम कर रहा हूँ तो उनकी आँखों में मैंने एक आशा की किरण देखी कि जौनपुर को विश्व पटल  पे उसका सही स्थान दिलवाने की जो मुहीम उन्होंने चलायी थी शायद वो मेरे ज़रिये पूरी हो जाय और बात चीत के दौरान उन्होंने ये कह ही दिया कोशिश करें की जौनपुर पर्यटक छेत्र घोषित हो जाय और इसकी तरक़्क़ी हो सके ।
    पवन भास्कर

    त्रिपुरारी जी की आशा को यक़ीनन मैं कोशिश करूँगा की पूरी कर सकूँ और उन्होंने जो दुआएं मुझे दी उनके लिए मैं हमेशा उनका आभारी रहूँगा ।

     श्री त्रिपुरारी भास्कर जी से बात चीत के दौरान उनके पुत्र पवन भास्कर जी से बात चीत हुए और  देख के ख़ुशी हुयी की जौनपुर के लिए प्रेम उन्हें विरासत में मिला है ।

    आप सभी के सामने पेश है श्री त्रिपुरारी भास्कर और उनके पुत्र पवन भास्कर जी से बात चीत के कुछ अंश ।


    Interview with Tripuraari bhaskar 
     
    Shahi Pull History Raja Idarat Jahaan Jaunpur ka Itihaas written By Tripurari Bhaskar Pavan Bhaskar je se ek baat cheet
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