१३२१ ई में दिल्ली के सुलतान फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने जफराबाद आबाद करवाया तो शहज़ादा ज़फर खां को जाफराबाद का शासक बनाया और उसी के नाम पे जाफराबाद नाम पड़ा और शहज़ादा ज़फर खान की क़ब्र आज भी जफराबाद में मौजूद है | फिर टाटार खान और उसके बाद ऐनुल मुल्क को यहां का शासक बना के भेजा गया |
जब १३६० ई में बंगाल जाते समय वर्षा ऋतू में सुलतान फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ जफराबाद में रुका तो उस समय शहज़ादा नसीर खान को जफराबाद का शासक नियुक्त किया और बंगाल चला गया लेकिन १३६२ ई में फिर वापस आ गया | जफराबाद के पास ही एक इलाक़ा जो आज जौनपुर के नाम से जाना जाता है उसे इतना पसंद आया की उसने इसे नए सिरे से बसाने का मन बना लिया | कहते हैं की उस समय जौनपुर में बौद्ध खँडहर इधर उधर बिखरे पड़े थे और एक उजड़ा इलाक़ा दीखता था | अब इस नए शहर का शासक शहज़ादा नसीर बन गया था जिसने एक महल बनवाया और मोहल्ला नसीर खान जो अटाला के पास है बसाया | वक़्त के साथ आज कोई महल नहीं रहा लेकिन मोहल्ला नसीर खान खा और अटाला मस्जिद मौजूद है जिसकी शुरुआत फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने की थी |
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नसीर खान गरीबों का मसीहा और एक बेहतरीन शासक था जिसने उन्नीस वर्षों तक जौनपुर पे शासन किया और जब उसका देहांत हुआ तो जौनपुर के मानिक चौक इलाक़े में जो शाही क़ब्रिस्तान में दफन हुआ जो आज राजा जौनपुर की कोठी से मिला हुआ है |
माणिक चौक इलाक़े को मुईन खानखाना के दीवान मानिक चंद ने बसाया था और यह इलाक़ा किसी समाज में बहुत ही सुज्जित तरीके से बसाया गया था | जब तुग़लक़ बादशाहों को यहाँ दफन किया गया तो उस समय यह इलाक़ा ऐसा ना था या शायद तुग़लक़ परिवार द्वारा शाही क़ब्रिस्तान के लिए चुना गया था |
माणिक चौक पे राजा जौनपुर से सटे इस क़ब्रिस्तान पे जाने पे पहले तो दो क़ब्रें आपको दिखेंगी और हुसैन शाह शर्क़ी द्वारा निर्मित एक छोटी सी मस्जिद के अंदर के हाते में आपजब जाएंगे तो आप को वहाँ सात क़ब्रें और दिखेंगी जिन्हे सात बादशाहों की क़ब्रें कह के पहचाना जाता है |
बनावट से ही यह तुग़लक़ समय की बानी क़ब्रें लगती हैं और सात क़ब्रों में सबसे बड़ी क़ब्र शहज़ादा नसीर की हैं और शहज़ादा अल्लाउद्दीन इत्यादि तुग़लक़ परिवार की हैं |
आप जब क़ब्रों की गिनती अंदर जा के करेंगे तो आप को केवल सात क़ब्र दखेगी लेकिन एक क़ब्र उस दीवार के बीच में हैं जो राजा जौनपुर और उस क़ब्रिस्तान को बांटती है | आधी क़ब्र दीवार में और आधी राजा जौनपुर की कोठी में नज़र आती है |
जिसे देख के अमीर मीनाई का यह शेर याद आता है
हुए नामवर बे निशान कैसे कैसे
ज़मीन खा गयी आसमान कैसे कैसे
पुरातत्व विभाग ने यहां पे सात तुग़लक़ बादशाहों क जगह सात शर्क़ी राजाओं की क़ब्र का ज़िक्र किया जो सही नहीं है |
पहले किसी समय में हर क़ब्र पे नाम लिखा हुआ था लेकिन वो अब नहीं रहाजबकि क़ब्रें मज़बूत पथ्थर की बानी हुयी हैं और आज भी अच्छी हालत में हैं | १९०३ में जब लार्ड कर्ज़न जौनपुर आया तो उसने हर क़ब्र की पहचान के लिए पथ्थर लगवाए थे और एक पथ्थर बाहरी दीवार पे लगवाया गया था जो आज मौजूद है लेकिन उसकी लिखावट मिटटी जा रही है और वो पुरातत्व विभाग के बोर्ड के पीछे छुप गया है | बाहर की तरफ दिखने वाली दो क़ब्रें भी शहज़ादा अल्लाउद्दीन और उसके माता की है |
लेखक एस एम मासूम
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"बोलते पथ्थरों के शहर जौनपुर का इतिहास " लेखक एस एम मासूम

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