वक़्त बड़ा बलवान होता है और इंसान तो भूल जाने में माहिर हुआ करता है | आज सुनाता हूँ दिल्ली के सुलतान फ़िरोज़ शाह तुग़लक़के छोटे बेटे नसीर खान की दास्ताँ जिसने जौनपुर पे १९ वर्षों तक शासन किया और ऐसा गुमनाम हुआ की आज उसकी क़ब्र की पहचान भी पुरातत्व विभाग का बोर्ड तुग़लक़ बादशाह की जगह शर्क़ी बादशाह की तरह कर गया|
जब १३२१ ई में दिल्ली के सुलतान फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने जफराबाद आबाद करवाया तो शहज़ादा ज़फर खां को जाफराबाद का शासक बनाया और उसी के नाम पे जाफराबाद नाम पड़ा और शहज़ादा ज़फर खान की क़ब्र आज भी जफराबाद में मौजूद है | फिर टाटार खान और उसके बाद ऐनुल मुल्क को यहां का शासक बना के भेजा गया |
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जब १३६० ई में बंगाल जाते समय वर्षा ऋतू में सुलतान फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ जफराबाद में रुका तो उस समय शहज़ादा नसीर खान को जफराबाद का शासक नियुक्त किया और बंगाल चला गया लेकिन १३६२ ई में फिर वापस आ गया | जफराबाद के पास ही एक इलाक़ा जो आज जौनपुर के नाम से जाना जाता है उसे इतना पसंद आया की उसने इसे नए सिरे से बसाने का मन बना लिया | कहते हैं की उस समय जौनपुर में बौद्ध खँडहर इधर उधर बिखरे पड़े थे और एक उजड़ा इलाक़ा दीखता था | अब इस नए शहर का शासक शहज़ादा नसीर बन गया था जिसने एक महल बनवाया और मोहल्ला नसीर खान जो अटाला के पास है बसाया | वक़्त के साथ आज कोई महल नहीं रहा लेकिन मोहल्ला नसीर खान खा और अटाला मस्जिद मौजूद है जिसकी शुरुआत फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने की थी |
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नसीर खान गरीबों का मसीहा और एक बेहतरीन शासक था जिसने उन्नीस वर्षों तक जौनपुर पे शासन किया और जब उसका देहांत हुआ तो जौनपुर के मानिक चौक इलाक़े में जो शाही क़ब्रिस्तान में दफन हुआ जो आज राजा जौनपुर की कोठी से मिला हुआ है |
दुःख की बात यह है की इस क़ब्रिस्तान में नौ क़ब्रें हैं जिसमे से सबसे बड़ी क़ब्र जौनपुर के १९ वर्षों तक शासक रहे शहज़ादा नसीर खान की है लेकिन पुरातत्व विभाग ने यहां शर्क़ी बादशाहों की क़ब्र का बोर्ड लगा रखा है और जौनपुर के शासक नसीर खान की पहचान भी ख़त्म हो गए |
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यह बोर्ड इतिहासकारों के अनुसार गलत है यह तुग़लक़ वंश के सात राजाओं का क़ब्रिस्तान है और शर्क़ी बादशाहों का क़ब्रिस्तान बड़ी मस्जिद के पीछे है |
लेखक एस एम मासूम
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"बोलते पथ्थरों के शहर जौनपुर का इतिहास " लेखक एस एम मासूम
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