इलाहाबाद के खुशरो बाग का निर्माण मुगल शासक जहांगीर ने कराया था । जहांगीर के पुत्र खुशरो के नाम पर इस बाग का नाम रखा गया है। कई किलो मीटर में फैले इस बाग में मुगल निर्माण कला का शानदार नमूना देखने को मिलता है। यहां चारो ओर फैली हरियाली मकबरे की खूबसूरती में चार चांद लगाती है।
इलाहाबाद स्टेशन के पास स्थित खुशरो बाग में मुगल बादशाह जहांगीर के परिवार के तीन लोगों का मकबरा है। ये हैं- जहांगीर के सबसे बड़े बेटे खुसरो मिर्जा, जहांगीर की पहली पत्नी शाह बेगम और जहांगीर की बेटी राजकुमारी सुल्तान निथार बेगम। 17वीं शताब्दी में यहां दफनाया गया था। इस बाग़ में स्थित कब्रों पर करी गयी नक्काशी देखते ही बनती है जो मुग़ल कला संग स्थापत्य कला का एक जीवंत उदाहरण है। इस मक़बरे के ऊपर एक विशाल छतरी है, जो मजबूत स्तंभों पर टिकी हुई है। बेगम के मक़बरे के बगल में स्थित है खुसरो की बहन निथार का मक़बरा। इसके प्रवेश द्वार, आस-पास के बगीचों और सुल्तान बेगम के त्रि-स्तरीय मक़बरे की डिज़ाइन का श्रेय आक़ा रज़ा को जाता है, जो जहांगीर के दरबार के स्थापित कलाकार थे। अपने पिता जहांगीर के प्रति विद्रोह करने के बाद खुसरो को पहले इसी बाग में नज़रबंद रखा गया था। यहां से भागने के प्रयास में खुसरो मारा गया। खुसरो ऐसा पहला व्यक्ति था जिसे बाग में बंदी बनाकर रखा गया था क्यों की उसने उसके पिता जहागीर के खिलाफ ही सन 1606 में विद्रोह कर दिया था।सिंहासन पाने के लिए खुसरो ने लड़ाई लड़ी थी जिसमे उसे बड़ी निर्दयता से मार दिया गया था तब उसकी उम्र केवल 34 साल की थी। उस लड़ाई में जहागीर के दुसरे लड़के खुर्रम ने खुसरो को ख़तम करने के लिए लड़ाई में हिस्सा लिया था। उसके बाद में खुर्रम बादशाह बन गया।

खुर्रम बड़ा होकर शाहजहान बन गया जिसने उसकी प्यारी पत्नी मुमताज के लिए ताजमहल बनवाया था। खुसरो की कब्र का निर्माण सन 1622 में पूरा हो गया था और निथर बेगम जिसकी कब्र शाह बेगम और खुसरो की कब्र के बिच में थी, उसका निर्माण सन 1624-25 के दौरान करवाया गया था।यह बाग सभी तरफ़ से बड़ी बड़ी दीवारों से रक्षित की गयी है और शायद इसीलिए इस बाग को इतिहास के नजर में काफी महत्व है।
1857 में जब सिपाही विद्रोह हुआ था तब इस खुसरो बाग ने बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान का काम किया था। क्यों की उस वक्त सिपाही इसी बाग में आकर सलाह मशवरा लिया करते थे और युद्ध की आगे की रणनीति बनाते थे।तब उस वक्त विद्रोह का नेतृत्व मौलवी लियाकत अली कर रहे थे और वो मुक्त अलाहाबाद के गवर्नर के रूप में काम कर रहे थे। लेकिन कुछ दिनों के बाद अंग्रेजो ने उनके इस विद्रोह को कुचल डाला।
खुसरो बाग में कई सारे आम और अमरुद के पेड़ है। इन पेड़ो पौधों के लिए भी खुसरो बाग काफी जानी जाती है।
ऐसी प्रसिद्ध और मशहूर खुसरो बाग अलाहाबाद रेलवे स्टेशन से काफी नजदीक के मुहल्ला खुलादाबाद में आती है।

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