जौनपुर की तहसील शाहगंज नगर भौगोलिक व ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। बौद्ध परिपथ के रूप में इसी नगर से होकर लुम्बिनी-दुद्धी राजमार्ग गुजरता है। स्वतंत्रता संग्राम में यहां के नौजवानों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे |जनपद की सीमा पर बिजेथुआ महावीर का मंदिर भी है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि हनुमान का पैर धरती में कहां तक है पता नही लगाया जा सका। पास में मकरी कुण्ड भी है जहां हनुमान ने कालिनेम को मारा था|
शाहगंज को नवाब सिराजुद्दौला ने बसाया। शाह हजरत अली के नाम से उसने एक बारादरी और एक ईदगाह का र्निमाण कराया। इसी नगर के एराकियाना मोहल्ले में बारादरी की एक ऐतिहासिक धरोहर है। इस बारह दरवाजे वाले धरोहर का निर्माण सिराजुद्दौला ने कराया था। यहां पर उसके सैनिक ठहरते थे। इसी भवन के पीछे एक पोखरी भी है। इसमें स्नान आदि किया जाता था। समय के साथ यह ऐतिहासिक भवन जर्जर होता गया। आज खंडहर के रूप में कुछ अवशेष हैं। किसी समय में नवाबों की पसंद बने शाहगंज में अब एराकियाना मोहल्ले में बदहाल हालत में बारादरी ही नवाबों की निशानी बची है बाकी कुछ मुहल्लों के नाम जैसे हुसैन गंज और अली गंज बचे हैं | शाह का पंजा , और एक ऐतिहासिक मस्जिद भी नवाबों के समय की बतायी जाती है |
इस बार जौनपुर पहुँचने पे शाहगंज में स्थित बारादरी को देखने का इरादा किया और जा पहुंचे शाहगंज के ईराक़ियाना मोहल्ले में जिसके बारे में बताया जाता है की यहाँ लोग इराक़ से आ के आज से ४-५ सौ वर्ष पहले बस गए थे | वही पे एक बदहाल खंडहर नुमा बारादरी दिखाई दी जिसे बहार से देख के कुछ समझ में आता था की इसे बारहदरी क्यों कहा गया | इसी बारहदरी से सटा हुआ एक स्कूल चल रहा था जिसके प्रधानाध्यापक से बात करने पे उन्होंने उस खंडहर के अंदर जाने का दरवाज़ा खुलवाया जहाँ घास जमी थी एक जंगल की तरह नज़ारा लग रहा था |
शाहगंज बारादरी बाहर से | |
अंदर से देखने पे दिखाई दिया की इस खंडहर नुमा ईमारत में चारों तरफ तीन तीन दर करके बारह दर बने हुए है जिसके बारे में वहाँ के लोगों ने बताया की कभी यह बड़े खूबसूरत नक़्क़ाशी वाले दर हुआ करते थे और उनपे मोर इत्यादि बने हुए थे | आज वहाँ सिर्फ एक खंडहर नुमा बदहाल ईमारत दिखती है जिसकी देखभाल कोई नहीं करता या कह लें की ऐसा लगता है की यह निशानी जल्द ही ख़त्म हो जाएगी | इसी के सामने एक मस्जिद और तालाब का भी ज़िक्र हुआ जहां सिराजुद्दौला शाहगंज आने पे नवाब वहाँ नमाज़ पढ़ते थे और बारह्दरी में ढहरते थे |
बारहदरी के दर अंदर से | |
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