सय्यिद नसीरुद्दीन ने जो चिराग़ ऐ दिल्ली के नाम से भी जाने जाते हैं एक ख्वाब
देखा की हजरत मुहम्मद (स.अ.व) आये हैं और उनसे कह रहे है कि सय्यिद बरे नाम के शख्स
को अपनी शागिर्दी में ले लो और उसे अपने ज्ञान से मालामाल करो |सय्यिद नसीरुद्दीन
ने अपने दिल्ली में तलाशा तो उन्हें तीन व्यक्ति इस नाम के मिले और वो तय नहीं कर
पाए की यह इशारा किसकी तरफ है |दुसरे दिन फिर उन्होंने ख्वाब देखा जिसमे इशारा किया
गया था की स्येद बरे जिनके बारे में ख्वाब है वो एकहरा कपडा पहनते हैं |सय्यिद बरे
हजरत मुहम्मद (स.अ.व) की ३२वीन नस्ल थे और ७७० हिजरी १३६८ इस्स्वी में वो दिल्ली से
जाफराबाद के करीन एक इलाके सुसौन्दा (अब मसौन्दा) में आकर बस गए और एक तालाब के
किनारे छप्पर डाल के रहने लगे | सय्यिद बरे ने वहाँ के गांवालों को गुमराही से
बचाया और एक ऐसे संत जो हर अमावस्या को गाँव के लोगों से सोना चांदी ,धन दौलत की
मांग करता था उसके ज़ुल्म से बचाया |
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तालाब जहां सय्यिद बरे आज के कजगांव में बसे थे | |
गाँव वाले सय्यिद बरे को मानने लगे उसी समय इस गाँव सुसौन्दा का नाम बदल में
सादात मसौन्दा किया गया | बरे मीर के दो बच्चे थे जिनका नाम सय्यिद हसन और सय्यिद
हुसैन था जो आपस में एक दुसरे से बहुत प्रेम करते थे | जब एक भाई की म्रत्यु हो गयी
तो उसे गाव के पाहनपुर कब्रिस्तान में दफन किया गया | दुसरे भाई की म्रत्यु के बाद
उसे भी अपने भाई के पास ही दफन कर दिया गया | सुबह लोगों ने देखा की दोनों भाइयों
की कब्र सर की तरफ से एक दुसरे से मिल गयी है | लोगों से सोंचा मिटटी गीली होने की
वजह से ऐसा हुआ होगा और ठीक कर दिया | लेकिन दुसरी रात फिर से ऐसा ही हुआ तो लोगों
को समझ में आ गया की यह कोई चमत्कार है |आज भी दो भाइयों की कब्रें वहाँ मौजूद हैं
जिसके कारण सदात मसौंडा का को लोग कजगांव तेढ़वान के नाम से जाना जाने लगा |
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दो भाइयों की कब्र जो आज भी कजगांव में देखि जा सकती है | |
यह कहानी कजगांव बुजुर्गों ने सुनायी है जिसका ज़िक्र उन्होंने अपनी कुछ किताबों
में भी किया है | इसमें कितनी सत्यता है यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन दो भाइयों की
टेढ़ी कब्र आज भी मौजूद है और गवाही दे रही हैं किसी चमत्कार की |
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