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सदर इमामबाड़ा जौनपुर में ताज़िया १० मुहर्रम को दफन हुआ |
जब मुहर्रम का चाँद होता है तो शिया मुसलमानो के आँखों में आंसू आ जाते हैं यह सोंच के की वो महीना आ गया जिस महीने में पैगम्बर ऐ इस्लाम हज़रत मुहम्मद के नवासे और मुसलमानो के खलीफा हज़रत अली के बेटे इमाम हुसैन और उनके परिवार वालों को तीन दिन का भूखा प्यासा इराक़ के एक शहर कर्बला में ऐसे शहीद किया गया जैसे कोई जानवरों को मारता है और नबी के घराने की औरतों को क़ैदी बना लिया गया |
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रन्नो कर्बला में दफ़्न करते ताज़िया |
जौनपुर शहर एक ऐसा शहर है जो हुसैन की याद में शोक सभाओं और जुलुस के लिए मशहूर है यहां आज से सात सौ वर्ष पुराने इमामबाड़े बने हुए हैं | ताज़िया रखने का चलन भी शर्क़ी समय का है| पूरे उत्तर प्रदेश में लखनऊ के बाद सबसे अधिक शिया मुसलमानो की आबादी जौनपुर में है |आज दसमी मुहर्रम के दिन जो ताज़िये इमामबाड़ों , चौक और और घरों के अज़ाख़ाने में मुहर्रम का चाँद देखते ही पहली मुहर्रम को रखे गए थे आज सभी जुलुस के साथ अज़ादार नौहा मातम करते हुए आँखों में आंसू लिए सदर इमामबाड़े के गंजे शहीदा में सुपुर्द ऐ खाक कर देते है लेकिन मजलिसें (शोक सभाएं ) और जुलूस ऐ अज़ादारी पूरे दो महीने आठ दिन तक चलती रहती है | जौनपुर की यह पहचान रही है की यहां शिया सुन्नी हिंदू सब मिल के ताज़ियादारी करते है |
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अयोध्या में सरयू नदी में ताज़िया बहाते |
आज जौनपुर शहर के विभिन्न इलाकों में निर्धारित समय के अनुसार ताजिए उठाये गये। जिसके साथ मातमी अंजुमनों ने नौहा और मातम किया। नगर के अधिकांश ताजिये सदर इमामबारगाह स्थित गंजे शहीदा में सुपुर्द ए खाक किये गये जबकि कुछ ताजिए मोहल्लों की कर्बलाओं में भी सुपुर्द ए खाक हुए। चहारसू चौराहे से उठा जुलूस शिया जामा मस्जिद होता हुआ अपने मुख्य मार्गों से गुजरकर सदर इमामबारगाह पहुंचा। इसी प्रकार इमामबाड़ा शाह अबुल हसन भंडारी, बलुआघाट, कटघरा, मोहल्ला रिजवीं खां, पुरानी बाजार, ताड़तला, बारादुअरिया, यहियापुर, पानदरीबा के ताजिए भी सदर इमामबारगाह स्थित गंजे शहीदा में दफ्न हुए। सिपाह मोहल्ले के ताजिये नबी साहब स्थित गंजे शहीदा में दफ्न किये गये। इसके पूर्व बलुआघाट स्थित शाही किला मस्जिद, मोहल्ला दीवान शाह, कबीर, ताड़तला की मस्जिद समेत अन्य स्थानों पर नमाजे आशूरा का आयोजन हुआ। देर शाम सदर इमामबारगाह की ईदगाह मैदान में मजलिसें शामे गरीबां हुई जिसे कैसर नवाब ने सम्बोधित किया।
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इमामबाड़ा हकीम बाक़िर पानदरीबा जौनपुर को रखा ताज़िया पहली मुहर्रम को |
इमाम हुसैन ने कर्बला में इंसानियत का पैगाम देने के लिए शहादत दी | यह वो दौर था जब तख़्त पे बैठे यज़ीद ने ज़ुल्म को इस्लाम की पहचान बना दिया था और इमाम हुसैन ने उसके खिलाफ आवाज़ उठा के इस्लाम को इंसानियत की पहचान बना दिया |
लेखक एस एम् मासूम
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