शहर से एक किलोमीटर की दूरी पे मोहल्ला बेगम गंज स्थित लाल दरवाज़ा मस्जिद एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक महत्व रखती है | इसके पीछे ऐसी बहुत सी बातें हैं जिनसे लोग अनजान हैं और अक्सर लोग यह समझ नहीं पाते की ये कोई मदरसा है या मस्जिद और लाल दरवाज़ा इसे क्यूँ कहा जाता है यह भी समझ के परे है |
हमारा जौनपुर डॉट कॉम ने जौनपुर के ऐसे बहुत से रहस्यों के ऐतिहासिक पहलुओं पे प्रकाश डाला है और आगे भी आपके सामने जौनपुर का छुपा इतिहास आता रहेगा |
लाल दरवाज़ा के नाम से जो मस्जिद आज जानी जाती है इसे सुलतान महमूद शाह शार्की की पत्नी बीबी राजे ने एक मशहूर संत सय्यद अली दाऊद के जौनपुर आगमन के बाद बनवाया था जिनकी सीधी नस्ल आज भी पानदरीबा मोहल्ले में रहती है और हमारा जौनपुर डॉट कॉम के संचालक एस एम् मासूम उनकी सीधी नस्ल से हैं |
आज की मशहूर लाल दरवाज़ा मस्जिद का सही नाम "नमाज़ गाह " था | इस मस्जिद के पहले इसी के पास शार्की क्वीन राजे बीबी ने अपना महल था जिसे "महल सरा " के नाम से जाना जाता था जिसका मुख्य द्वार "लाल रंग के याकूत नगीने का बना हुआ था और उसी के नाम पे इस महलसरा को लोग लाल दरवाज़े के नाम से जानने लगे |
अपने महलसरा नमक महल के बाद मशहूर संत सय्यद अली दाऊद के आगमन के बाद बीबी राजे ने एक मदरसा "अल जामीअतुल हुसैनिया " बनवाया जो आज की लाल दरवाज़ा मस्जिद के उत्तर दछिन की ओर बना था और ये मदरसा उस दौर का विश्व प्रसिद्ध मदरसा माना जाता था |
शार्की क्वीन का महल और यह मदरसा सिकंदर लोधी ने तुडवा दिया और यह मस्जिद पूरी तरह से टूटने से बाच गयी जिसे बाद में मरम्मत करवाया गया |
आज इस मस्जिद का अस्ल नाम लोग भूल गए और लाल दरवाज़ा महल के नाम से इसी याद किया जाने लगा और कुछ दिनों बाद यहाँ उसी मस्जिद में एक मदरसा शुरू किया गया जिसे उसी पुराने मदरसा अल जामीअतुल हुसैनिया के नाम पे चलाया जाने लगा |
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