जौनपुर एक ऐतिहासिक शहर है और यहाँ के हर मोहल्ले के नाम का भी एक इतिहास है जैसे मोहल्ला फिरोशा या फिरोजशाह जिसे आज गल्ला मंदी से ले के उर्दू बाज़ार तक आप गिन सकते हैं जौनपुर का पहला बसा हुआ मोहल्ला था |
जौनपुर में एक समय था जब सूफियों और ज्ञानियों की टूटी बोलती थी और इनके मुरीद इनके चमत्कारों और नेकियों के कारण बहुत हुआ करते थे | ऐसे में ही एक चिश्तिया वर्ग के प्रमुख थे और अपने दौर के महात्माओं में उनका शुमार हुआ करता था | आपका दौर जन्म के साथ लगभग १४६५ से शुरू हुआ और आपने 100 वर्ष से अधिक उम्र पायी और जब आपका देहांत 1562 में हुआ जो अकबर का दौर था तो आपने ८० वर्ष से अधिक उम्र के पुत्र जीवित थे |
मकदूम शाह अढन की समाधी आज भी उनके नाम से बसे मोहल्ले में मौजूद है जिसपे कभी मुइन खानखाना का बनवाया मकबरा हुआ करता था | आज इस मोहल्ले का नाम बिगड़ा हुआ है जिसे लोग अनजाने में मकदूम साटन कह दिया करते हैं |
आज भी आप इनकी समाधी देख सकते हैं जो अच्छी हालत में एक मस्जिद के किनारे शहर के मकदूम शाह अढन इलाके मौजूद है |
जौनपुर में एक समय था जब सूफियों और ज्ञानियों की टूटी बोलती थी और इनके मुरीद इनके चमत्कारों और नेकियों के कारण बहुत हुआ करते थे | ऐसे में ही एक चिश्तिया वर्ग के प्रमुख थे और अपने दौर के महात्माओं में उनका शुमार हुआ करता था | आपका दौर जन्म के साथ लगभग १४६५ से शुरू हुआ और आपने 100 वर्ष से अधिक उम्र पायी और जब आपका देहांत 1562 में हुआ जो अकबर का दौर था तो आपने ८० वर्ष से अधिक उम्र के पुत्र जीवित थे |
मकदूम शाह अढन की समाधी आज भी उनके नाम से बसे मोहल्ले में मौजूद है जिसपे कभी मुइन खानखाना का बनवाया मकबरा हुआ करता था | आज इस मोहल्ले का नाम बिगड़ा हुआ है जिसे लोग अनजाने में मकदूम साटन कह दिया करते हैं |
आज भी आप इनकी समाधी देख सकते हैं जो अच्छी हालत में एक मस्जिद के किनारे शहर के मकदूम शाह अढन इलाके मौजूद है |
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