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    रविवार, 27 सितंबर 2015

    हमारा जौनपुर के लेखक इमरान रिज़वी को श्रद्धांजलि ।



    ये बताते हुए दुःख हो रहा है कि जौनपुर का एक प्रतिभाशाली नौजवान सैय्यद इमरान रिज़वी अब हमारे बीच नहीं रहा । सैय्यद इमरान रिज़वी एक बेहतरीन लेखक थे जो सामाजिक सरोकारों से जुड़ के लिखा करते थे । इनकी लेखनी इतनी सटीक और समाज को आईंना दिखाने वाली हुआ करती थी कि कुछ ही समय में इन्होने पूरी दुनिया में अपनी एक पहचान बना ली लेकिन इनकी लेखनी केवल फेसबुक तक ही सीमित हो के रह गयी थी ।

    एक वर्ष पहले जनाब सैय्यद इमरान रिज़वी ने मेरे जौनपुर आने पे मुझसे संपर्क किया और जब मैं इस नौजवान से मिला तो मुझे लगा ये जौनपुर का वो हीरा है जिसे अगर सही ढंग से तराशा गया तो एक दिन दुनिया में चमकेगा ।
    बात चीत के दौरान मैंने महसूस किया की जौनपुर का ये प्रतिभाशाली नौजवान  ये नहीं जानता कि अपनी प्रतिभा को लोगो तक कैसे पहुंचाया जाय ? बावजूद हज़ारो चाहने वालो के ये आज भी अकेला है ।

    सैय्यद इमरान रिज़वी के पिता का देहांत उस समय हुआ जब इमरान अपना बचपन छोड़ते हुए जवानी की दहलीज पे पैर रख रहे थे । पिता के ऐसे समय में देहांत जब किसी बेटे को बाप की ज़रुरत सबसे अधिक हुआ करती है पूरी तरह से अकेला कर गयी ।

    सच यही है कि सैय्यद इमरान रिज़वी चाहने वालो की भीेड़ में खुद को अकेला महसूस किया करते थे ।  मैंने उनसे ये वादा किया कि मैं उन्हें सही राह दिखाऊंगा लेकिन उनकी कुछ जाती परेशानियों की वजह से और मेरे जौनपुर से दूर रहने  की वजह से मेरी उनकी मुलाक़ात उसके बाद ना हो सकी ।

    हमारा जौनपुर के लिए उन्होंने लिखना शुरू किया और साथ साथ मैंने उनका एक ब्लॉग भी बना दिया । उम्मीद यही थी कि एक दिन जौनपुर की यह प्रतिभा लेखनी की दुनिया में एक नयी मिसाल पैदा करेगी क्यों की ऐसी ईमानदार लेखनी  कम ही देखने को मिला करती है ।



    लेकिन  नौकरी की ज़रुरत और उसका ना मिलना इमरान साहब के लिए एक बड़ी मुश्किल कड़ी किये हुए था । और आखिर  एक दिन इमरान साहब दिल्ली की तरफ नौकरी की तलाश में एक सप्ताह  पहले जो गए तो वापस ना आये ।

    उनके घर वालो से मालूम हुआ वो किसी हादसे का शिकार हो गए और आज लखनऊ में उनका  संस्कार भी कर  दिया गया ।



     इमरान साहब  लेख कुछ दिनों पहले लिखा था जिसमे लिखे ये शब्द उनकी  पहचान पहचान थे ।

    "खैर.....होली और नौरोज़ के बीच हमे कोई फर्क तब तक नही समझ आया था जब तक किसी शैताननुमा इंसान ने कानों में हिन्दू और मुसलमान नामी दो शब्दों का ज़हर नही घोला था। बहरहाल हमने भी नीलकंठ की तरह इस ज़हर को अपने गले में ही रोक लिया दिल में ना उतरने दिया कभी...

    और जब तक नौरोज़ में रंग खेला किये तब तक कोई होली भी सूखी न जाने दी।"


    मरहूम इमरान साहब के कुछ लेख जो उन्होंने हमारा जौनपुर पे लिखे थे आपके सामने हैं । 



     अल्लाह उनको जाजन्नत  नसीब करे ।  इमरान हम सभी की यादो में हमेशा ज़िंदा रहेंगे ।

     इमरान साहब का ब्लॉग
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