
जवान पुत्र को इलाज के अभाव मे मरते देखना किसी भी पिता के लिये आसान नही होता । एक तो जवान पुत्र की मौत , अपनी बिमारी और पांच लोगो के परिवार को पालने की चिंता मे महेंद्र की सेहत और खराब होती गयी । एक सप्ताह पूर्व उसका पुत्र सोनू (15) तेज बुखार से पीड़ित हो गया। उसका उपचार तुरंत न हो पाने के चलते उसे उल्टी भी शुरू हो गई। हालत अधिक खराब होने पर ग्रामीण चंदा इकट्ठा कर उपचार हेतु पीएचसी सोंधी ले गए। जहां चिकित्सकों ने प्राथमिक उपचार के बाद रेफर कर दिया। पैसे के अभाव के चलते परिजन रविवार को उसे घर लेकर चले आए। जहां देर रात उसने दम तोड़ दिया। ग्रामीणों की मदद से सोमवार को सुतौली घाट पर उसकी अन्त्येष्टि कर दी गई।
इस दुख को ना सह पाने के कारण पुत्र के गम में मंगलवार को भोर में पिता महेंद्र ने भी दम तोड़ दिया। महेंद्र की तकलीफ तो उसकी मृत्यू के साथ खत्म हो गयी लेकिन गरीबी का अभिशाप झेल रही उसकी पत्नी शीला देवी, पुत्री शिल्पी (8), पुत्र ज्ञान चंद्र (5) व सुंदर (3) के सामने दो जून की रोटी मोहाल है। ऐसे में पति व पुत्र की अंतिम क्रियाएं वे किस प्रकार से कर पाएंगी।
समाज के लोग तो कभी कभी ऐसे मे काम आ ही जाते है ये और बात है कि समाज को जागने मी इतना समय लगता है की मामला हाथ से निकल चुका होता है लेकिन शासन-प्रशासन स्वयंसेवी संस्थाएं अपनी ज़िम्मेदारी से मुह क्यूँ मोड़ लेती हैं?
आशा है ऐसे गरीब इलाक़े के बारे में समाज और सरकार दोनों अपनी अपनी ज़िम्मेदारियों को समझेंगे जिससे आगे से ग़रीबी में दवा और इलाज के बिना किसी की जान नहीं जायगी ।
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