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    मंगलवार, 20 सितंबर 2011

    ऐसे मनाया गया जौनपुर में वो त्यौहार जिसका एक दिन पुत्रों के नाम रहा.

    भारतीय संस्कृति अपने पर्व त्यौहारों की वजह से भी  एक  पहचान रखती है. कई ऐसे भी पर्व हैं जो हमारी सामाजिक और पारिवारिक संरचना को मजबूती देते हैं जैसे जीवित्पुत्रिका व्रत, करवा चौथ आदि .जीवित्पुत्रिका व्रत यानि जीवित पुत्र के लिए रखा जाने वाला व्रत. आश्विन मास के कृष्णपक्ष की प्रदोषकाल-व्यापिनी अष्टमी के दिन माताएं अपने पुत्रों की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सम्पन्नता हेतु यह व्रत करती हैं .यह व्रत वह सभी सौभाग्यवती स्त्रियां रखती हैं जिनको पुत्र होते हैं और साथ ही जिनके पुत्र नहीं होते वह भी पुत्र कामना और बेटी की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं.
    जीवित्पुत्रिका-व्रत के साथ एक  कथा जुड़ी है.

    गन्धर्वों के राजकुमार का नाम जीमूतवाहन था. वे बडे उदार और परोपकारी थे. जीमूतवाहन के पिता ने वृद्धावस्था में वानप्रस्थ आश्रम में जाते समय इनको राजसिंहासन पर बैठाया किन्तु इनका मन राज-पाट में नहीं लगता था. वे राज्य का भार अपने भाइयों पर छोडकर स्वयं वन में पिता की सेवा करने चले गए. वहीं पर उनका मलयवती नामक राजकन्या से विवाह हो गया. एक दिन जब वन में भ्रमण करते हुए जीमूतवाहन काफी आगे चले गए, तब उन्हें एक वृद्धा विलाप करते हुए दिखी. इनके पूछने पर वृद्धा ने रोते हुए बताया – मैं नागवंशकी स्त्री हूं और मुझे एक ही पुत्र है. पक्षिराज गरुड के समक्ष नागों ने उन्हें प्रतिदिन भक्षण हेतु एक नाग सौंपने की प्रतिज्ञा की हुई है. आज मेरे पुत्र शंखचूड की बलि का दिन है. जीमूतवाहन ने वृद्धा को आश्वस्त करते हुए कहा – डरो मत. मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा. आज उसके बजाय मैं स्वयं अपने आपको उसके लाल कपडे में ढंककर वध्य-शिला पर लेटूंगा. इतना कहकर जीमूतवाहन ने शंखचूड के हाथ से लाल कपडा ले लिया और वे उसे लपेटकर गरुड को बलि देने के लिए चुनी गई वध्य-शिला पर लेट गए. नियत समय पर गरुड बडे वेग से आए और वे लाल कपडे में ढंके जीमूतवाहन को पंजे में दबोचकर पहाड के शिखर पर जाकर बैठ गए. अपने चंगुल में गिरफ्तार प्राणी की आंख में आंसू और मुंह से आह निकलता न देखकर गरुडजी बडे आश्चर्य में पड गए. उन्होंने जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछा. जीमूतवाहन ने सारा किस्सा कह सुनाया. गरुड जी उनकी बहादुरी और दूसरे की प्राण-रक्षा करने में स्वयं का बलिदान देने की हिम्मत से बहुत प्रभावित हुए. प्रसन्न होकर गरुड जी ने उनको जीवन-दान दे दिया तथा नागों की बलि न लेने का वरदान भी दे दिया. इस प्रकार जीमूतवाहन के अदम्य साहस से नाग-जाति की रक्षा हुई और तबसे पुत्र की सुरक्षा हेतु जीमूतवाहन की पूजा की प्रथा शुरू हो गई.


    जौनपुर में मंगलवार २० सितम्बर को यह त्यौहार मनाया गया. पुत्रों के दीर्घायु एवं यशस्वी होने की कामना लिये माताओं ने मंगलवार को जीवित्पुत्रिका का व्रत रखकर विभिन्न समूहों में बैण्ड-बाजे के साथ पूजन स्थल पर पहुंचकर शिया माई की विधिवत् पूजन-अर्चन कर मन्नत मांगी. इसके पहले माताएं सुबह से ही निराजल व्रत रहीं जो देर शाम को स्नान आदि कर नये परिधान ग्रहण करने के बाद पूजा की थाल लिये नदी, तालाब, पोखरे, मंदिर सहित अन्य धार्मिक स्थलों पर बैण्ड-बाजों के साथ समूह में पहुंची. यहां मिट्टी, बालू आदि से शिया माई की आकृति बनायी गयी जहां फूल, माला, चीनी का लड्डू, केला, सेब, नारियल, काला धागा, गण्डा माला, चांदी की जिउतिया, नये परिधान रखकर विधिवत् पूजन-अर्चन किया गया.

    इस दौरान व्रती माताएं अपने पुत्रों के दीर्घायु एवं यशस्वी होने के लिये माता से मन्नत मांगीं.  साथ ही एक-दूसरे को मान्यता के अनुसार इस से जुडी कथा को सुनाया गया.  तत्पश्चात् पूजा स्थल से चना व मटर का दाना पूरे रास्ते भर गिराते हुये व्रती महिलाएं वापस घर आयीं. माताओं  द्वारा व्रत का तोरण बुधवार को सूर्योदय के पहले खड़ा चना निगलकर किया जायेगा. तत्पश्चात् बच्चों के लिये अच्छे-अच्छे पकवान बनाया जायेगा. जिले के शाहगंज, बदलापुर, केराकत, मडि़याहूं, मछलीशहर तहसील के अलावा जफराबाद, जलालपुर, रामपुर, नौपेड़वा, सिंगरामऊ, खुटहन, सिकरारा, मुंगराबादशाहपुर, खुटहन, सुइथाकला, खेतासराय, धर्मापुर, मुफ्तीगंज, चंदवक, गौराबादशाहपुर सहित अन्य बाजारों सहित अन्य ग्रामीणांचलों में माताओं ने व्रत रखकर पुत्रों के दीर्घायु एवं यशस्वी होने की कामना किया.

    ऐसे मनाया गया जौनपुर में वो त्यौहार जिसका  एक दिन  पुत्रों के नाम रहा.
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