डॉ.श्रीपाल सिंह 'क्षेम' का निधन हमारे जनपद ही नहीं अपितु पूरे साहित्य जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है.कल जनपद से हिन्दी जगत का सूर्य अस्त हो गया. डॉ क्षेम की उम्र नब्बे वर्ष थी लेकिन आज भी आपका जज्बा और हौसला कम नहीं था.अभी भी आप सक्रिय जीवन बिता रहे थे. अंतिम संस्कार नम आँखों से आज सुबह आदि गंगागोमती के रामघाट पर किया गया.जनपद के साहित्य प्रेमियों के लिए डॉ .श्रीपाल सिंह क्षेम को भुला पाना सहजनहीं है.गीतों के इस राजकुमार को हिन्दी साहित्य का शब्दकोश कहा जाता था.उनके गीत-मुक्तक,गद्य -पद्य इतनेंसहज और विद्वतापूर्ण होते थे कि उस पर निरंतर चिंतन-मनन भी होता रहता था. आपकी इसी विलक्षण प्रतिभाका निदर्शन इससे भी होता है कि आप की रचनाओं को पूर्वांचल विश्वविद्यालय समेत कई विश्वविद्यालयों ने अपनेपाठ्यक्रम में शामिल किया था. डॉ.क्षेम का जन्म दो सितम्बर 1922 को हमारे पड़ोसी गांव बशारतपुर में हुआथा। समूचे देश में आपकी पहचानछायावादी काव्यधारा के सशक्त कवि के रूप में हुई थी. 1948 में प्रयाग विश्वविद्यालय से हिन्दी में आपनेंस्नातकोत्तर उपाधि धारण किया था. डा. क्षेम इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अपनें अध्ययन के दौरान ही साहित्य कीसर्वोच्च संस्था परिमल से जुड़ गये थे. उसी दौर में आपका संपर्क डा. धर्मवीर भारती, डा. जगदीश गुप्त, डा. रघुवंश,प्रो. विजय देव नारायण,सुमित्रा नंदन पंत,महादेवी वर्मा, कथाकार पहाड़ी, नरेंद्र शर्मा, डा. हरिवंशराय बच्चन, गंगाप्रसाद पांडेय, प्रभात शास्त्री से हुआ .कालांतर में जनपद केप्रमुख और प्रतिष्ठित तिलक धारी महाविद्यालय में हिंदीप्रवक्ता पद पर आपकी नियुक्ति हुई और विभागाध्यक्ष के पद से १९८३ को आपनें अवकाश ग्रहण किया. उन्हें हिंदीसेवा संस्थान प्रयाग से साहित्य महारथी, हिंदी साहित्य हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश से साहित्य भूषण,मध्य प्रदेश नईगढ़ी से ठाकुर गोपाल शरण सिंह काव्य पुरस्कार ,सम्मेलन प्रयाग से साहित्य वाचस्पति, वीर बहादुर पूर्वांचलविश्वविद्यालय सेपूर्वांचल रत्न की उपाधि मिली थी. डॉ.क्षेम नें अनेक कृतियों का सृजन और सम्पादन किया था .आपकी प्रमुख कृतियों में नीलम तरी, ज्योति तरी, जीवन तरी, संघर्ष तरी, रूप तुम्हारा :प्रीत हमारा, रूपगंधा :गीत गंगा, अंतर ज्वाला, राख और पाटल, मुक्त कुंतला,मुक्त गीतिका, गीत जन के, रूप गंगा, प्रेरणा कलश, पराशरकी सत्यवती। कृष्णद्वैपायन महाकाव्य का संपादन। गद्य रचना में आपकी सशक्त कृतियाँ थी- छायावाद की काव्यसाधना, छायावाद के गौरवचिन्ह,छायावादी काव्य की लोकतांत्रिक पृष्ठिभूमि. प्रतिवर्ष 2 सितम्बर को क्षेमस्विनी संस्था द्वारा समारोह आयोजित कर आपका जन्मदिन मनाया जाता था। जन्मदिन समारोह में जहाँ एक ओर देश के प्रतिष्ठित कवि गण आते थेवहीं दूसरीओर देश की जानी-मानी हस्तियां भी उपस्थित होतीं थी. मेरे प्रातः स्मरणीय पिता जी से डॉ क्षेम जी का बहुत स्नेह रहता था. पहले घर पर होने वाली काव्य गोष्ठी में डॉ क्षेमजरूर रहते थे.उनके साथ मैंने भी एक-दो बार उनकी और महाकवि पंडित रूपनारायण त्रिपाठी जी की रचनाओं कासस्वर पाठ कर किया था.मेरी रचनाओं से वे बहुत खुश होतेऔर पिता जी कहते कि इसका गला बहुत बढ़िया हैइसको अपनी प्रतिभा को दबाना नहीं चाहिए। पिता जी के निधन के बाद उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर वर्ष २००० मेंपिता जी के स्मृति ग्रन्थ के सम्पादन का दायित्व आपनें स्वयं लिया था.उन दिनों मेरी आपसे नियमित मुलाकातहोती और मेरा खूब ज्ञानार्जन होता.आपसे मैंने भी बहुत कुछ सीखा -समझा.मुझे मेरे पिता जी डॉ राजेंद्र प्रसादमिश्र,,पितामह वैद्यप्रवर पंडित उदरेश मिश्र ही नहीं वरन प्रपितामह वैद्य शिरोमणि पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र सेजुड़े अपनेँ संस्मरण बताते थे जिनको आपनें अपनेँ बालपन में देखा था.मेरे परिवार की कई पीढ़ियों से आप परिचित थे. डॉ .श्रीपाल सिंह क्षेम के चर्चित मुक्तकों में से कुछ एक को मैंने अपनी एक पोस्ट में प्रकाशित भी किया .था.साहित्य के इस महारथी को चलते-चलते उनकी एक रचना से ही अपनें स्वर में नमन कर रहा हूँ... अश्रु में हास फेरे मिलेंगे , आँधियों में बसेरे मिलेंगे, डूबता सूर्य यह कह गया है, फिर सबेरे-सबेरे मिलेंगे. चार दिन का है मेहमा अँधेरा , किसके रोके रूकेगा सबेरा, डूबता सूर्य यह कह गया है , फिर सबेरे -सबेरे मिलेंगे.............. हमारे लिए ,आपकी साहित्य धर्मिता सदैव जीवित रहेगी. ...विनम्र श्रद्धान्जलि..
साहित्य वाचस्पति डॉ .श्रीपाल सिंह क्षेम : विनम्र श्रद्धांजलि
डॉ.श्रीपाल सिंह 'क्षेम' का निधन हमारे जनपद ही नहीं अपितु पूरे साहित्य जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है.कल जनपद से हिन्दी जगत का सूर्य अस्त हो गया. डॉ क्षेम की उम्र नब्बे वर्ष थी लेकिन आज भी आपका जज्बा और हौसला कम नहीं था.अभी भी आप सक्रिय जीवन बिता रहे थे. अंतिम संस्कार नम आँखों से आज सुबह आदि गंगागोमती के रामघाट पर किया गया.जनपद के साहित्य प्रेमियों के लिए डॉ .श्रीपाल सिंह क्षेम को भुला पाना सहजनहीं है.गीतों के इस राजकुमार को हिन्दी साहित्य का शब्दकोश कहा जाता था.उनके गीत-मुक्तक,गद्य -पद्य इतनेंसहज और विद्वतापूर्ण होते थे कि उस पर निरंतर चिंतन-मनन भी होता रहता था. आपकी इसी विलक्षण प्रतिभाका निदर्शन इससे भी होता है कि आप की रचनाओं को पूर्वांचल विश्वविद्यालय समेत कई विश्वविद्यालयों ने अपनेपाठ्यक्रम में शामिल किया था. डॉ.क्षेम का जन्म दो सितम्बर 1922 को हमारे पड़ोसी गांव बशारतपुर में हुआथा। समूचे देश में आपकी पहचानछायावादी काव्यधारा के सशक्त कवि के रूप में हुई थी. 1948 में प्रयाग विश्वविद्यालय से हिन्दी में आपनेंस्नातकोत्तर उपाधि धारण किया था. डा. क्षेम इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अपनें अध्ययन के दौरान ही साहित्य कीसर्वोच्च संस्था परिमल से जुड़ गये थे. उसी दौर में आपका संपर्क डा. धर्मवीर भारती, डा. जगदीश गुप्त, डा. रघुवंश,प्रो. विजय देव नारायण,सुमित्रा नंदन पंत,महादेवी वर्मा, कथाकार पहाड़ी, नरेंद्र शर्मा, डा. हरिवंशराय बच्चन, गंगाप्रसाद पांडेय, प्रभात शास्त्री से हुआ .कालांतर में जनपद केप्रमुख और प्रतिष्ठित तिलक धारी महाविद्यालय में हिंदीप्रवक्ता पद पर आपकी नियुक्ति हुई और विभागाध्यक्ष के पद से १९८३ को आपनें अवकाश ग्रहण किया. उन्हें हिंदीसेवा संस्थान प्रयाग से साहित्य महारथी, हिंदी साहित्य हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश से साहित्य भूषण,मध्य प्रदेश नईगढ़ी से ठाकुर गोपाल शरण सिंह काव्य पुरस्कार ,सम्मेलन प्रयाग से साहित्य वाचस्पति, वीर बहादुर पूर्वांचलविश्वविद्यालय सेपूर्वांचल रत्न की उपाधि मिली थी. डॉ.क्षेम नें अनेक कृतियों का सृजन और सम्पादन किया था .आपकी प्रमुख कृतियों में नीलम तरी, ज्योति तरी, जीवन तरी, संघर्ष तरी, रूप तुम्हारा :प्रीत हमारा, रूपगंधा :गीत गंगा, अंतर ज्वाला, राख और पाटल, मुक्त कुंतला,मुक्त गीतिका, गीत जन के, रूप गंगा, प्रेरणा कलश, पराशरकी सत्यवती। कृष्णद्वैपायन महाकाव्य का संपादन। गद्य रचना में आपकी सशक्त कृतियाँ थी- छायावाद की काव्यसाधना, छायावाद के गौरवचिन्ह,छायावादी काव्य की लोकतांत्रिक पृष्ठिभूमि. प्रतिवर्ष 2 सितम्बर को क्षेमस्विनी संस्था द्वारा समारोह आयोजित कर आपका जन्मदिन मनाया जाता था। जन्मदिन समारोह में जहाँ एक ओर देश के प्रतिष्ठित कवि गण आते थेवहीं दूसरीओर देश की जानी-मानी हस्तियां भी उपस्थित होतीं थी. मेरे प्रातः स्मरणीय पिता जी से डॉ क्षेम जी का बहुत स्नेह रहता था. पहले घर पर होने वाली काव्य गोष्ठी में डॉ क्षेमजरूर रहते थे.उनके साथ मैंने भी एक-दो बार उनकी और महाकवि पंडित रूपनारायण त्रिपाठी जी की रचनाओं कासस्वर पाठ कर किया था.मेरी रचनाओं से वे बहुत खुश होतेऔर पिता जी कहते कि इसका गला बहुत बढ़िया हैइसको अपनी प्रतिभा को दबाना नहीं चाहिए। पिता जी के निधन के बाद उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर वर्ष २००० मेंपिता जी के स्मृति ग्रन्थ के सम्पादन का दायित्व आपनें स्वयं लिया था.उन दिनों मेरी आपसे नियमित मुलाकातहोती और मेरा खूब ज्ञानार्जन होता.आपसे मैंने भी बहुत कुछ सीखा -समझा.मुझे मेरे पिता जी डॉ राजेंद्र प्रसादमिश्र,,पितामह वैद्यप्रवर पंडित उदरेश मिश्र ही नहीं वरन प्रपितामह वैद्य शिरोमणि पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र सेजुड़े अपनेँ संस्मरण बताते थे जिनको आपनें अपनेँ बालपन में देखा था.मेरे परिवार की कई पीढ़ियों से आप परिचित थे. डॉ .श्रीपाल सिंह क्षेम के चर्चित मुक्तकों में से कुछ एक को मैंने अपनी एक पोस्ट में प्रकाशित भी किया .था.साहित्य के इस महारथी को चलते-चलते उनकी एक रचना से ही अपनें स्वर में नमन कर रहा हूँ... अश्रु में हास फेरे मिलेंगे , आँधियों में बसेरे मिलेंगे, डूबता सूर्य यह कह गया है, फिर सबेरे-सबेरे मिलेंगे. चार दिन का है मेहमा अँधेरा , किसके रोके रूकेगा सबेरा, डूबता सूर्य यह कह गया है , फिर सबेरे -सबेरे मिलेंगे.............. हमारे लिए ,आपकी साहित्य धर्मिता सदैव जीवित रहेगी. ...विनम्र श्रद्धान्जलि..
bahut hi sundar
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