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    गुरुवार, 18 अगस्त 2011

    कजगांव (टेढ़वां बाजार) का ऐतिहासिक कजरी मेला



    जफराबाद क्षेत्र के कजगांव (टेढ़वां बाजार) की ऐतिहासिक कजरी जो क्षेत्रीय बुजुर्गां के अनुसार लगभग 85 वर्षों से लगती चली आ रही है जिसमें टेढ़वां के लोग राजेपुर गांव में शादी करने का दावा पेश करते हैं और राजेपुर गांव के लोग टेढ़वां में शादी करने का सपना संजोकर बारात लेकर आते हैं। बाजार के अन्त में दोनों गांव के बीच स्थित पोखरे पर राजेपुर की बारात पूर्वी छोर और कजगांव की बारात पश्चिमी छोर पर बाराती, हाथी, घोड़ा, ऊंट तथा दूल्हे के साथ द्वार पूजा के लिये खड़ी हो जाती है। एक-दूसरे पर दोनों तरफ से मनोविनोदी आवाज में जोर-जोर बाराती और कभी-कभी दूल्हा भी चिल्लाने लगता है कि दूल्हन दे दो, हम लेकर जायेंगे। यह क्रम घण्टों चलता है। यदि बीच में पोखरा न हो तो शायद आपस में भिड़ंत भी हो सकती है लेकिन 85 वर्षों में कभी भी ऐसी कोई बात नहीं हुई।

    महीनों पहले से जहां एक गांव के नागरिक दूसरे गांव के लोगां से मजाक शुरू कर देते हैं, वहीं कजरी मेला समाप्त होने के बाद मजाक एक वर्ष के लिये बंद होकर अगले वर्ष तक के लिये समाप्त सा रहता है। मेला में जहां एक ओर दोनों गांव के बाराती एक-दूसरे से मजकिया लहजे में जोर-जोर से वार्ता करते हैं, वहीं दूसरी ओर गांव ही नहीं, जिले के विभिन्न क्षेत्रों से आये लोग इस काल्पनिक बारात में शामिल होकर मेला का आनन्द लेते हैं जहां खाद्य पदार्थों के अलावा घरेलू सामानों की जमकर खरीददारी भी की जाती है।

        मेले में सुरक्षा की दृष्टि से भारी संख्या में पीएसी व पुलिस के जवानों के अलावा तमाम थानाध्यक्ष भी डटे रहे तथा सिविल डेªस में भी पुलिसकर्मी चक्रमण करते नजर आये। कुल मिलाकर यह मेला पूरी तरह आपसी सौहार्द एवं परम्परागत ढंग से सम्पन्न हो गया और दोनों तरफ के दूल्हे इस वर्ष भी शादी न करने में असफल रहने का मलाल लेकर बगैर दूल्हन अगले वर्ष की आस लिये लौट गये।

    लगभग 85 वर्षों का इतिहास संजोये जफराबाद क्षेत्र के कजगांव (टेढ़वां बाजार) स्थित पोखरे पर राजेपुर और कजगांव की ऐतिहासिक बारातें आयीं जिसमें हाथी, घोड़े, ऊंट पर सवार बैण्ड-बाजे की धुन पर बाराती घण्टों जमकर थिरके लेकिन इस वर्ष 18 अगस्त २०११ को भी दोनों गांव से आये दूल्हों की इच्छा पूरी नहीं हो सकी और बारात बगैर शादी एवं दूल्हन के बैरंग वापस चली गयी।
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    5 comments:

    1. बहुत खूब, लेकिन जिज्ञासा हुई कि यह इस रूप में शुरू क्‍योंकर हुआ होगा.

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    2. सामुदायिक मेल-मिलाप का अनूठा और रुचिकर उदाहरण बहुत बढ़िया रहा.

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    3. आरे बाप रे बाप् ऐसा क्या

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    4. I am really excited. It is very happy moment
      Thanx for information but incomplete

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    Item Reviewed: कजगांव (टेढ़वां बाजार) का ऐतिहासिक कजरी मेला Rating: 5 Reviewed By: S.M.Masoom
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