
दो दिन का ताना बाना है समय का कौन ठिकाना है,
जो मंगल गीत बना उसको निश्चित मातम बन जाना है।
घनघोर घटाए आती है पल भर में प्रलय मचाती है,
लेकिन अगले ही क्षण उनको अपना अस्तित्व मिटाना है।
जैसे सागर की लहरे तट पर आती औ मिट जाती है,
इस धरती पर वैसे सबको आना फिर मिट जाना है।
जो आज हमारा अपना है कल और किसी का वह होगा ,
जीवन की सदा यही रीत तो उस पर क्या पछताना है।
जग ठगता है हर पल पग पग क्यों रोते हो ऐसा कह कर,
देकर धोखा अपने तन को एक दिन तुमको भी जाना है।
डॉ. पवन विजय

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