हमारा जौनपुर की पकड़ अब जौनपुर के गाँव तक मज़बूत होने लगी है क्यूँ की मैं जब भी किसी गाँव में गया तो वहाँ के नौजवानों ने बताया की वो इस वेबसाइट को देखा करते हैं और इस बात को ध्यान में रखते हुए आज हम हम किसान भाइयों को खेतीबाड़ी से जुड़ी बहुत सी लाभकारी जानकारियों के तहत सूरजमुखी की खेती के संबंध में जानकारी दे रहे हैं।
सूरजमुखी एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है और तीन महीने में फसल पाक कर तैयार हो जाती है जिसे देखते हुए यह कहना असंगत नहीं होगा की कम समाज में अधिक मुनाफा देने वाले फसल है सूरज मुखी | सूरजमुखी की अच्छी पैदावार लेने के कलए खेत में अच्छी नमी व मिट्टी का भूरभूरा होना बहुत जरूरी है और मौसम के अनुसार उत्तरी भारत के लिए सबसे सही मौसम ज़ायद का है क्योंकि इस मौसम में मधुमक्खी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है, जो इसकी पैदावार के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है इसके तेल से वनस्पति घी एवं बीमारियों के उपचार के लिए बहुत उपयोगी है। मध्य जनवरी से ले के मध्य फरवरी के बीच इसे बिना सबसे अधिक फायदेमंद हुआ करता है |
सूरज मुखी की बहुत सी किस्मे हुआ करती हैं और सूरजमुखी के बीज शीघ्र अंकुरण व अधिक जमाव तथा अधिक उत्पादन के लिए बीज को चार से छः घण्टे तक भिगोयें ताकि बिजाई से पहले छाया में सुखाकर फरकरा कर लें। उन्नत किस्म को कतारों में 45 सै.मी.तथा संकर किस्म को 60 सै.मी. की दूरी पर बोयें तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सैं.मी. रखें। बीज को भूमि की नमी के अनुसार 3-5 सैं.मी. गहरा बोयें ।अधिक उत्पादन के लिए सूरजमुखी को बैड/मेंढ़ों पर लगायें उसमें बीज की गहराई बैड के ऊपरी सतरह से 6-8 सैं.मी. रखनी चाहिए। पहली सिंचाई बिजाई 2-3 दिन बाद देनी चाहिए।
बिजाई के तीन व छः सप्ताह बाद दो बार निराई-गुड़ाई अवश्य करें। खेत में पर्याप्त नमी बनाये रखें। अच्छी पैदावार के लिए 4-6 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। प्रथम सिंचाई के 30-35 दिन बाद व शेष सिंचाईंयां 12-15 दिन के अन्तराल पर तथा अंतिम सिंचाई बिजाई के 75-80 दिन बाद करें । सूरजमुखी के लिए मेढ़ों के बीच पानी लगाकर सिंचाई करना उत्तम है। इससे खेत में प्र्याप्त नमी बनी रहती है तथा पानी भी कम लगता है।
जब सूरजमुखी फूल/छाता मुड़कर पीला पड़ जाये तो फसल कटाई के लिए तैयार है। छत्ता काटने के बाद उसे धूप में 5-6 दिन सुखा लेना चाहिए। सभी छत्ते एक बार में कटाई के लिए तैयान नहीं होते । अतः कुछ दिन के अन्तराल करके 2-3 बार में काटना चाहिए ताकि दाने का बिखराव नहीं हो। दाने को धूप में उस समय तक सुखाना ठीक रहता है जब तक कि नमी की मात्रा बीज में 5 प्रतिशत न हो जाये।
जौनपुर के जमैथा गाँव में जब मैंने इस खेती को देखा तो मुझे महसूस हुआ की अगर इस खेती को बड़े पैमाने पे किया जाय तो नीलगाय के आतंक से भी बचा जा सकता है और कम समाज में अधिक मुनाफा भी कमाया जा सकता है |
सूरजमुखी एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है और तीन महीने में फसल पाक कर तैयार हो जाती है जिसे देखते हुए यह कहना असंगत नहीं होगा की कम समाज में अधिक मुनाफा देने वाले फसल है सूरज मुखी | सूरजमुखी की अच्छी पैदावार लेने के कलए खेत में अच्छी नमी व मिट्टी का भूरभूरा होना बहुत जरूरी है और मौसम के अनुसार उत्तरी भारत के लिए सबसे सही मौसम ज़ायद का है क्योंकि इस मौसम में मधुमक्खी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होती है, जो इसकी पैदावार के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है इसके तेल से वनस्पति घी एवं बीमारियों के उपचार के लिए बहुत उपयोगी है। मध्य जनवरी से ले के मध्य फरवरी के बीच इसे बिना सबसे अधिक फायदेमंद हुआ करता है |
सूरज मुखी की बहुत सी किस्मे हुआ करती हैं और सूरजमुखी के बीज शीघ्र अंकुरण व अधिक जमाव तथा अधिक उत्पादन के लिए बीज को चार से छः घण्टे तक भिगोयें ताकि बिजाई से पहले छाया में सुखाकर फरकरा कर लें। उन्नत किस्म को कतारों में 45 सै.मी.तथा संकर किस्म को 60 सै.मी. की दूरी पर बोयें तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सैं.मी. रखें। बीज को भूमि की नमी के अनुसार 3-5 सैं.मी. गहरा बोयें ।अधिक उत्पादन के लिए सूरजमुखी को बैड/मेंढ़ों पर लगायें उसमें बीज की गहराई बैड के ऊपरी सतरह से 6-8 सैं.मी. रखनी चाहिए। पहली सिंचाई बिजाई 2-3 दिन बाद देनी चाहिए।
बिजाई के तीन व छः सप्ताह बाद दो बार निराई-गुड़ाई अवश्य करें। खेत में पर्याप्त नमी बनाये रखें। अच्छी पैदावार के लिए 4-6 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है। प्रथम सिंचाई के 30-35 दिन बाद व शेष सिंचाईंयां 12-15 दिन के अन्तराल पर तथा अंतिम सिंचाई बिजाई के 75-80 दिन बाद करें । सूरजमुखी के लिए मेढ़ों के बीच पानी लगाकर सिंचाई करना उत्तम है। इससे खेत में प्र्याप्त नमी बनी रहती है तथा पानी भी कम लगता है।
जब सूरजमुखी फूल/छाता मुड़कर पीला पड़ जाये तो फसल कटाई के लिए तैयार है। छत्ता काटने के बाद उसे धूप में 5-6 दिन सुखा लेना चाहिए। सभी छत्ते एक बार में कटाई के लिए तैयान नहीं होते । अतः कुछ दिन के अन्तराल करके 2-3 बार में काटना चाहिए ताकि दाने का बिखराव नहीं हो। दाने को धूप में उस समय तक सुखाना ठीक रहता है जब तक कि नमी की मात्रा बीज में 5 प्रतिशत न हो जाये।
जौनपुर के जमैथा गाँव में जब मैंने इस खेती को देखा तो मुझे महसूस हुआ की अगर इस खेती को बड़े पैमाने पे किया जाय तो नीलगाय के आतंक से भी बचा जा सकता है और कम समाज में अधिक मुनाफा भी कमाया जा सकता है |
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