मुझे बचा लो ईस ज़माने से
इन बेवफा प्रेमियों से
इन धोखेबाजो से,
थक गई हूँ मैं
प्यास सबकी बुझाते हुए,
कोई मेरी भी प्यास बुझा दे.
मदद के लिए सब आगे आते हैं
गन्दा करके जाते हैं
करोडो का चंदा खुद ही खा जाते हैं.
कंही सुख ना जावूँ मैं
ईस धरा से
रेगिस्तान कि तरह,
मैं नदी हूँ , प्यास बुझाती हूँ
कुछ मेरे लिए भी रहने दो
कंही मैं प्यास्सी ही ना रह जावूँ
The pain and the desire of river is very nicely portrayed and this also comments on the state of environment of the rivers in India.
जवाब देंहटाएंHemant Kumar Dubey
http://www.hemantdubey.com
Laajwab kar diya aapne.
जवाब देंहटाएंहोली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
धर्म की क्रान्तिकारी व्यागख्याै।
समाज के विकास के लिए स्त्रियों में जागरूकता जरूरी।
ratnakarlal@gmail.com
जवाब देंहटाएंPls.see this blog-
http://ratnakarart.blogspot.com/
पिछले दिनों मेरे चित्रों की एक प्रदर्शनी ललित कला अकेडमी नई दिल्ली की गैलरी सात और आठ में आयोजित हुयी जिसमें अनेक गणमान्य अतिथि शरीक हुए जिन्होंने कुछ न कुछ मेरे चित्रों के विषय में लिखा है.
मान्यवर मैं भी जौनपुर से हूँ.