जौनपुर इस्लाम चौक से उठा ऐतिहासिक चेहलुम का जुलूस ......-यू तो पूरी दुनिया में चेहलुम कल मनाया जायेगा लेकिन शिराज़े हिंद जौनपुर मे एक दिन पहेले मनाया जाता है कर्बला के शहीद हजरत इमाम हुसैन व उनके ७१ साथियों की याद मे इस्लाम चौक का एतिहासिक चेहलुम की शबेदारी मे देश के कोने कोने से आये हाजरो अज़दारो ने पूरी रात नौहा मातम क़र नजराने अकीदत पेश किया इस्लाम चौक पर इमाम हुसैन का ताजिया रखने के बाद लोगो ने अपनी अपनी मन्नते मांगी व उतारी इस शबेदारी व चहलुम ने सभी मज़हबो मिल्लत के लोगशामिल होते है ]
-इस्लाम के चौक पर इकठा हुए यह अज़ादार उस मजलूम इमाम हुसैन का चहलुम मनाने के लिए आये है जिन्हे १४०० साल पहले कर्बला मे यज़ीदी हुकूमत ने तीन दिन का भूखा शहीद क़र दिया था ,वैसे तो पूरी दुनिया इमाम का चहलुम बीस सफ़र को मनाती है पर यहाँ दो दिन पहले से लोग चहलुम मनाना शुरू क़र देते है ,यहाँ १७४६ मे शेख इस्लाम के दवरा ताजिया १० मोहरम को रखा गया था ,पर उन्हे हुकूमत ने कैद क़र जेल मे ड़ाल दिया था ,जब उन्हे रिहा किया गया तो इसी ताजिया को दफनाए वे सदर इमामबाड़े ले गए ,आज वही परम्परा जारी है ,इमामबाड़े से ताजिये को निकाल क़र जैसे ही चौक पर रखा गया ,हिन्दू हो या मुसलमान सभी ने नम आखो से नौहा मातम करते हुए अपनी अपनी मन्नते मागी व उतारी
-इस्लाम के चौक पर इकठा हुए यह अज़ादार उस मजलूम इमाम हुसैन का चहलुम मनाने के लिए आये है जिन्हे १४०० साल पहले कर्बला मे यज़ीदी हुकूमत ने तीन दिन का भूखा शहीद क़र दिया था ,वैसे तो पूरी दुनिया इमाम का चहलुम बीस सफ़र को मनाती है पर यहाँ दो दिन पहले से लोग चहलुम मनाना शुरू क़र देते है ,यहाँ १७४६ मे शेख इस्लाम के दवरा ताजिया १० मोहरम को रखा गया था ,पर उन्हे हुकूमत ने कैद क़र जेल मे ड़ाल दिया था ,जब उन्हे रिहा किया गया तो इसी ताजिया को दफनाए वे सदर इमामबाड़े ले गए ,आज वही परम्परा जारी है ,इमामबाड़े से ताजिये को निकाल क़र जैसे ही चौक पर रखा गया ,हिन्दू हो या मुसलमान सभी ने नम आखो से नौहा मातम करते हुए अपनी अपनी मन्नते मागी व उतारी
इस शबेदारी मे देश ही नहीं विदेशो से भी लोग आते है हिन्दू भी मातम क़र इमाम को नजराने अकीदत पेश करते है
पूरी रात अज़दारो ने नौहा मातम क़र इमाम को पुरसा दिया ज़ंजीरो व छुरियो से मातम क़र लोगो ने अपना लहू भी बहाया आज यही से ताजिया व तुर्बत का विशाल जुलूस निकले गया और सदर इमामबाड़े मे लेजा क़र दफनाया , सायद यही वजह है की इस चहलुम मे आज भी लोग अपना सब कुछ छोड़ क़र शामिल होने आते है
.........कमर हसनैन दीपू
ताजिया रखते वक़्त का मंज़र
सलाम ऐ आखिर जिसे सुन की आँखें रो उठती है ।
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