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    रविवार, 15 मार्च 2015

    प्रकृति की गोद में बसा मेरा वतन जौनपुर और मेरा घर |

    हमारे वतन जौनपुर का घर एक ऐसा घर है जहां महानगरों की भीड़ भाड़ प्रदुषण और ट्रैफिक के शोर से मुकम्मल छुटकारा मिल जाता है | सुबह होते ही सूर्य की पहली किरणें मस्तक चूमती हैं ,सामने हरे भरे खेत खलिहान नज़र आते हैं जहां से ताज़ी सब्जियां आप हर दिन ला सकते हैं | गोमती नदी का किनारा होने के कारण कल कल करती नदिया का कर्णप्रिय शोर और हवा में फूलों की सुगंध को हर समय महसूस किया जा सकता है | पास में शिवाला होने के कारण मंदिर के आकर्षित करने वाले भजन की आवाज़ के साथ सोना और उठाना होता है | सुबह  शाम अज़ान की कर्णप्रिय आवाज़ दिल में एक ख़ुशी सी पैदा किया करती है |

    वतन से दूर इंसान का जीवन किसी खानाबदोश से अलग नहीं होता जो आज यहाँ कल वहाँ भटकता रहता है | जहां रहता है कुछ जान पहचान बनाता है और जब वहाँ से चला जाता है तो सब कुछ बस एक याद बन के रह जाता हैं | यह सत्य है की यह दुनिया खुद एक किराय के घर जैसा ही है लेकिन अपने वतन में हर इंसान अपने पीछे कुछ यादें अवश्य छोड़ जाता है |

    अपने वतन में इंसान यदि आप से सीधे संपर्क में नहीं भी होता है तो भी आपका अपना होता है और आपको उनसे बेहतर जानता है जो आपके वतन के बाहर के गहरे दोस्त हैं | वतन से दूर वतन की याद बहुत आती हैं जब वतन पहुँचता हूँ और वहाँ के नज़ारे,वहाँ की शान और सुदरता देखता हूँ तो दिल कहता है वाह जौनपुर लेकिन लेकिन जब वहाँ की बदहाली देखता हूँ तो दिल कहता है आह जौनपुर | चाहते हुए भी जौनपुर बहुत अधिक दिनों तक रहना संभव नहीं हो पाता |

    लेकिन फिर भी महानगरों में मिल रही सुख सुविधाओं के अभाव में और सुस्त दिनचर्या के कारण वहाँ चाह के भी अधिक समय गुज़ार नहीं पाता | कोशिश ज़ारी है देखिये कब वो दिन आता है की मैं कुदरत के करीब रहते हुए एयरकंडीशन की जगह कुदरती हवाओं, और प्लास्टिक  के गुलदस्तो के जगह कुदरती फूल और बड़ी बड़ी तस्वीरों में लटके झरनों की जगह वास्तविक नदियों की कल कल में जीने की आदत डाल सकूँगा |
    ज़ुल्क़द्र मंजिल .
    डॉ पवन विजय के साथ
    अपने घर जौनपुर में
    मक्के का खेत
    गोमती का किनारा साभार डॉ मनोज मिश्र


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