शर्क़ी राज्य में जौनपुर संगीत का केंद्र कैसे बना ?
खासतौर पे जब आपसी जंग के कारण समा संगीत दिल्ली में अनदेखा किया जा रहा था उस समय शर्क़ी राज्य ने इसे संरक्षण दिया और जीवित रखा जो अमीर खुसरों के दौर तक आते आते क़व्वाली में तब्दील होता गया | | सुलतान हुसैन शाह शर्क़ी नृत्य और शास्त्रीय संगीत का शौक़ इतना अधिक रखता था की कई बार ऐसा हुआ की दुश्मन के फ़ौज जौनपुर की तरफ बढ़ने की खबर को भी अनसुना कर देता था | समा और कई अन्य प्रकार के राग के जन्मदाता के रूप में सुल्तान हुसैन शाह शर्क़ी को याद किया जाता है | कहा जाता है की हुसैन शाह के दौर में कवियों और संगीत शास्त्रियों की बहुत इज़्ज़त होती थी और यहाँ की दीवारों से भी हर समय संगीत फूटता रहता ,नृत्यसगीत के बड़े बड़े कार्यक्रम आयोजित जिसमे देश विदेश से लोग भाग लेने आया करते थे और आम जनता की ज़बानो पे हर समय गीत संगीत था |
इस दौर में जहां एक तरफ जहां सुहारवर्दी और चिश्तिया सूफियों ने समा संगीत को आगे बढ़या और संत कवियों ने भक्ति संगीत को आगे बढ़ाया | समा में एक तम्बूरे का इस्तेमाल उस समय किया जाता था जिसे "डफ" के नाम से पुकारा जाता था | भारतीय संगीत भक्ति संगीत को आगे बढ़ाने के हुसैन शाह शर्क़ी के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा क्यों की यही दौर था जब भक्ति संत नामदेव, रायदास, गुरु नानक और कबीर को शौक़ से गाया और सूना जाता था | इस दौर में अधिकतर कवी संगीत शास्री भी होते थे | सुलतान हुसैन शाह शर्क़ी ने अनगिनत राग और स्याम का आविष्कार किया जिनमे से मुख्य है मल्हार स्याम , गौर स्याम,भोपाल स्याम,मेघ स्याम,बसंत स्याम,केहनूर स्याम,सोहो स्याम,राम स्याम, बरारी स्याम, स्याम गोदानी,घुंड स्याम, और पूरबी स्याम और इसी के साथ साथ चार तोड़ी असवारी तोड़ी (जौनपुरी असवारी ) , रसुई तोड़ी,बेहमालय तोड़ी,और जौनपुरी बसंत का आविष्कार भी किया | उसने कुछ राग तोड़ी को मिला के भी उन्का इस्तेमाल किया जो बहुत अधिक मशहूर हुआ | ख्याल और अरबिक संगीत के इस्तेमाल के लिए भी हुसैन शाह को याद किया जाता रहेगा जिसमे से ख्याल आज भी बहुत पसंद किया जाता है |
लेखक एस एम् मासूम
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