भारत के प्राचीन शहर जौनपुर को, जिसे शीराज़ ऐ हिन्द कहा जाता है 14 वीं शताब्दी में फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने फिर से बसाया था और बाद में आगे जा के यह शर्क़ी राज्य की राजधानी बना और इसे शर्क़ी बादशाहों ने इसी बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ से बसाया संवारा और एक शतक तक राज्य किया | सिकंदर लोधी के आक्रमण से इसे तहस नहस कर दिया लेकिन आज भी इसके खंडहर और बची हुयी इमारतें बता रही है जौनपुर का शानदार इतिहास |
जौनपुर कोतवाली से दो किलोमीटर दूर पुराने जौनपुर कहे जाने वाले इलाक़े में एक ऐसा ही ऐतिहासिक मोहल्ला है मोहल्ला पानदरीबा जिसका अस्ल नाम बाजार बुआ है | यह इलाक़ा प्रेमराजपुर ,पुरानी बाजार से सटा हुआ है | कभी यहाँ पान की मंडी लगती थी इसलिए इसका नाम पानदरीबा पड़ गया |
पानदरीबा मोहल्ले को तुग़लक़ के समय में फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के बेटे नसीर शाह के बेटे इब्राहीम ने बसाया था | इसी मोहल्ले में फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के समय की एक मस्जिद जिसे ७६२ हिजरी (1361) में मीर काज़ी खलीलुल्लाह ने तामीर करवाया था आज भी मौजूद है| कभी इस मस्जिद के सामने एक हौज़ हुआ करती थी जिसके एक पथ्थर पे इसके बनाने का साल और बनाने वाले का नाम लिखा था | आज यह मस्जिद अपने पुराने अंदाज़ में नहीं है लेकिन नए अंदाज़ में मौजूद है |
मीर काज़ी खलीलुल्लाह की मस्जिद
इसी पानदरीबा या बाजार भुआ इलाक़े में एक ऐतिहासिक अजाखाना जिसका निर्माण मौलाना नासिर अली के वंशजों में से एक फातिमा बीबी ए बहवा बेगम ने किया था। निर्माण के लिए जमीन शहजादा नसीरुद्दीन महमूद तुगलक ने दी थी। यह इमामबाड़ा अब भी पुरानी हालात में मौजूद है और मीर बहादुर अली का इमामबाड़ा या इमामबाड़ा दालान के नाम से जाना जाता है| यह जौनपुर का दुसरा इमामबाड़ा भी है |
तुग़लक़ के बाद शर्क़ी आये और उन्होंने भी इस गोमती किनारे बेस पानदरीबा इलाक़े को सुन्दर बनाने का प्रयास किया और इस से सटे प्रेमराज पुर में महल बनवाये और पूरा इलाक़ा सुन्दर तरीके से बसाया जिसकी निशानियां आज भी मौजूद हैं | इस प्रेमराज पुर में महलों के खंडहर के साथ साथ पुराने लखौरी के बने अनगिनत कुंवे मौजूद हैं जो यहां की आबादी घनी होने का संकेत दे रहे हैं जबकि आज यहां बहुत घनी आबादी नहीं है |
इमामबाड़ा मीर घर
पानदरीबा में शर्क़ी दौर का एक इमामबाड़ा जिसे इमामबाड़ा मीर घर के नाम से जाना जाता है आज भी अपनी पुरानी हालत में मौजूद है जिसकी मरम्मत होती रहती है और इसी के पास खालिस मुख्लिस या चार अंगुली मस्जिद भी मौजूद है | खालिस मुख्लिस शर्क़ी सल्तनत में इब्राहिम शर्क़ी के दौर में जौनपुर के सरदार थे जिन्होंने मशहूर सूफी संत उस्मान शिराज़ी की शान में यह मस्जिद बनवायी थी |
शर्क़ी दौर में जौनपुर में दूर दूर से ज्ञानी सूफी संत बसे जिनमे से कुछ पानदरीबा में भी आये | यही ६-७ सौ सालों से एक सय्यद घराना रहता जिसके घर को लोग "मीर घर "के नाम से जानते हैं | यह घराना कहा जाता है की एक सय्यद संत " उस्मान शिराज़ी" की नस्ल है जिनकी शान में चार अंगुली मस्जिद खलिस मुख्लिस ने शर्क़ी समय में बनवायी थी | उस्मान शिराज़ी की क़ब्र चार ऊँगली मस्जिद के सामने आज भी अच्छी हालत में मौजूद हैं |
इन्ही मशहूर सय्यद उस्मान शिराज़ी की नस्ल में सय्यद मुहम्मद जौनपुरी हुए जिन्होंने मुसलमानो का एक फिरवा मेहदियत चलाया और उनके मानने वाले पूरी दुनिया में मौजूद हैं |
इसी खालिस मुख्लिस मस्जिद से सटा हुआ एक मक़बरा काज़िम अली का मक़बरा है जो ज़ुलक़द्र बहादुर नासिर अली के खानदान का क़ब्रिस्तान भी है और ये खानदान इसी पानदरीबा में रहता है | सय्यद काज़िम अली शर्क़ी समय में आये एक सय्यद संत सय्यद अली दाऊद क़ुतुबुद्दीन की नस्ल से हैं जिनकी क़ब्र सदल्ली पुर जौनपुर में आज भी है और मोहल्ला सदल्ली पुर उनके नाम पे बसा है | सय्यद काज़िम अली की नस्लें पहले लालदरवाजा पे रहती थीं लेकिन पिछले चार सौ वर्षों से वे पानदरीबा में रहती हैं और खानदान ज़ुलक़द्र बहादुर के नाम से मशहूर है|
जौनपुर का मशहूर पांचो शिवाला जो दीवान काशी नरेश ने बनवाया था वो भी इसी मोहल्ले से सटा हुआ है |यह मंदिर जौनपुर के पानदरीबा मोहल्ले में स्थित है जिसे दीवान काशी नरेश बन्धुलाल के बनवाया था । ये पहले वहाँ पे उप दीवान थे फिर जब राजा चेट सिंह ने रियासत संभाली तो इन्हे दीवान बना दिया ।इन्होने दीवान रहते समय प्रचुर धन एकत्रित किया और जौनपुर के पुरानी बाजार इलाक़े में कुछ भवन और एक शिवाला बनवाया जिसमे से आज केवल शिवाला बचा है |
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