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    बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

    जफराबाद के एक खड़हर हो गए मक़बरे में मिला लगभग ४०० वर्ष पुराना क़दम ऐ रसूल |

    https://www.youtube.com/user/payameamnजफराबाद के बारे में माना जाता है की 1194 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मनदेव या मनदेय वर्तमान में जफराबाद पर आक्रमण कर दि‍या। तत्‍कालीन राजा उदयपाल को पराजि‍त कि‍या और दीवानजीत सिंह को सत्‍ता सौप कर बनारस की ओर चल दि‍या। जफराबाद ७२१ हिजरी या १३२१ ईस्वी  में फिर से आबाद हुआ | | 

    एक क़ब्र है जिसपे नाम शेख इस्माइल का मिलता है जिसके ऊपर 1127  लिखा है जिस से ऐसा लगता है की इनकी मृत्यु 1127  में हुयी | इस से यह अवश्य पता लगा की 1127  के पहले से मुसलमान ज्ञानियों का आगमन यहां शुरू हो चूका था | केवल इतना ही नहीं वहां उसी जगह एक  मक़बरा भी है| 

    https://www.youtube.com/user/payameamn
    रौज़े में क़दम ऐ रसूल रखा हुआ है और वहाँ बनी क़ब्र में इमाम हुसैन (ा.स ) का भी ज़िक्र है जो इस बात की तरफ इशारा करता है की  जफराबाद में केवल  सूफी शिया या सुन्नी का आगमन ही 1127 से पहले नहीं था बल्कि उस समय में भी रौज़ा बनाने का चलन था , क़दम ऐ रसूल जौनपुर में लोग लाने लगे थे और इमाम हुसैन के वसीले का ज़िक्र क़ब्रों पे किया जाता था | 

    ऐसा लगता है की वो रौज़ा हज़रत मुहम्मद सॉ का था जहां क़दम ऐ रसूल रखा हुआ था | 

    क़ब्रों पे बनी नक्काशियां वही है जिन्हे तुग़लक़ ने इस्तेमाल किया था और आज उसी के नमूने आपको शाही क़िले , अटाला मस्जिद,बड़ी मस्जिद में मिल जाएंगे | आज इस मक़बरे को रौज़े को मरम्मत की ज़रुरत है और क़दम ऐ रसूल को पहचान की ज़रुरत है की लोग उसके बारे में जानें  और जफराबाद का सही इतिहास सामने आये |



    लेखक एस एम मासूम 

    https://www.youtube.com/user/payameamn
    यह तुग़लक़ के समय में इस्तेमाल की जाने वाली नक्काशी है | 
      

    उगे हैं सब्ज़े वहाँ जे जगह थी नर्गिस की 

    खबर नहीं की इसे खा गयी नज़र किसकी 


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