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    सोमवार, 10 जून 2019

    इतिहास गवाह है की जौनपुर कभी बोद्ध धर्म का महत्वपूर्ण शहर था |

     https://www.youtube.com/payameamnजौनपुर का इतिहास अपने आप में ना जाने कितने रहस्यों को अपने में छुपाय  हुए है जिसकी गहराई में जितना उतरते जाओ उतना ही रहस्यमय यह जौनपुर शहर लगने लगता है |  बोद्ध धर्म भारत में लगभग १२०० वर्षों तक प्रचलित रहा | शुरू के दौर में तो इस बोद्ध धर्म का यह रूप था की उनके अनुयायी किसी एकांत में या नदी किनारे कहीं  वाटिका बना के रहा करते थे लेकिन धीरे धीरे इन के अनुयायिओं ने एकांतवास  को त्यागना शुरू किया तो  इनका विरोध शुरू हो गया  लेकिन बड़े बड़े राजे महाराजे उस समय इस बोद्ध धर्म के मानने वाले थे इस लिए शुरू में तो इस विरोध ने बहुत अधिक सफलता नहीं दिखाई लेकिन सातवीं शताब्दी के आते आते ६०-७० करोड़ वाला बोद्ध धर्म का नामो निशाँ भारत से ख़त्म होने लगा और इसके कारणों पे इतिहास आज भी चुप है |


    इतिहासकारों का मानना है की बोधों के उन्नत काल में बनारस, जौनपुर, तथा इसके निकटवर्ती स्थानों में बोद्ध मठों की भरमार थी | भास्कर जी ने भी इस बात को माना की "जौनपुर में सर्वप्रथम बोद्ध धर्म के अनुयायी बसे हुए थे | जौनपुर के मछलीशहर के पुराने नाम मछिका संड और केराकत के पुराने नाम कीता गिरी को इसी से जोड़ के देखा जाता है  और यह संभावना भी दखाई जाती है की इन इलाकों में बौद्ध भिक्षु मठों की भरमार थी |

    इस प्रकार ऐसा लगता है की १३६१ -६२ इ में फ़िरोज़ शाह के जौनपुर बसाते समय यह एक बौध समय का उजड़ा शहर था और चारों  तरफ खंडहरों की भरमार थी |

     https://www.youtube.com/payameamnजौनपुर में शाही पुल पे रखी गज सिंह मूर्ती का रहस्य आज तक नहीं सुलझ पाया लेकिन यह माना जाता रहा है की यह सिंह  बोद्ध धर्म की विजय का प्रतीक था जो किसी बोद्ध महल या मठ के मुख्यद्वार पे लगा हुआ था | इस मूर्ती में जो शेर है उसका मुख अब वैसा नहीं जैसा की अस्ल मूर्ती का था | उस सिंह का मुख इतना डरावना था की जब उसे सड़क किनारे शाही पुल के पास शेर वाली मस्जिद के सामने लगाया गया तो सडकों से आने जाने वाले घोड़े उस शेर की डरावनी शक्ल देख के बिदक जाते थे | ऐसे में अंग्रेजों ने उसकी शक्ल को बदल दिया |

    मुझे विश्वास है की यदि मछली शहर या केराकत के आस पास तलाशा जाय तो शायद जौनपुर के बोद्ध समय से जुड़े इतिहास के रहस्यों से पर्दा उठ सकता है |

    लेखक ...एस एम् मासूम


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