शर्क़ी दौर में अपने वतन बुखारा को छोड़ के मक़दूम बन्दगी शेख मारूक जौनपुर आये | आपके पिता शेख आरिफ शेर सवार शेख जलाल बुखारी की संतान में से थे | संत मक़दूम बन्दगी शेख मारूक ने जौनपुर में ही सांसारिक और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया और घोर तपस्या करते करते मशहूर संत हो गए | आपको संसार की मोहमाया से कोई प्रेम नहीं था इसी कारन अपना जीवन ८० वर्ष का एकांतवास में ही गुज़ार दिया | जौनपुर के मशहूर संत उस्मान शिराज़ी से उनका लगाव अधिक था |
सूफी मक़दूम बन्दगी शेख मारूक का मक़बरा खलिसपुर इलाक़े में आज भी मौजूद है जहां जाने के लिए मुझे मस्जिद से नीचे उतर के खेतों के रास्ते जाना पड़ा | मक़बरे को देख के ऐसा लगता है की कभी यह बहुत ही आलीशान रहा होगा लेकिन अब इसकी हालत बदहाल है और इसको एक बार फिर से मरम्मत की ज़रुरत है | आस पासके लोग आज भी उनकी मज़ार में आते और अक़ीदत के फूल चढ़ाते हैं | इनके मज़ार के आस पास इनके परिवार के बहुत से लोगों की क़ब्रें भी मौजूद हैं जिनपे कोई नाम नहीं लिखा है | आपका देहांत हुमायूँ के शासन काल १५ ३३ ई में हुआ और दफन ग्राम पखारियापुर , खालिसपुर में है |
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