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    शनिवार, 8 जून 2019

    इतिहासकार को अपनी लेखनी और शोध में हमेशा ईमानदार होना चाहिए | एस एम मासूम

    विश्व के हर शहर हर देश का अपना एक इतिहास होता है जिसमे सत्ता हासिल करने के लिए आपसी युद्ध और समझोतों की बहुत बड़ी भूमिका हुआ करती है | बहुत बार सभ्यताएं बदल जाती हैं आबाद शहर खंडहरों में और खंडहर आबादी में बदल जाय करते हैं | शासक कोई भी हो उसका भी अपना एक धर्म होता है या अलग एक सोंच होती है और जब वो सत्ता में आता है तो उसके धर्म या सोंच का असर उस इलाक़े में भी दिखने लगता है जहाँ उसका शासन होता है | इन सभी बदलाव का कारन धर्म भी होता है लेकिन अधिकतर धर्म कम और सत्ता हासिल करने का लोभ अधिक हुआ करता है |  जब तक दुनिया है इसी तरह से बादशाह विश्व विजय का सपना देखते और कोशिशें करते रहेंगे और नया इतिहास हर दिन लिखा जाता रहेगा | 
    इतिहासकार को अपनी लेखनी और शोध में हमेशा ईमानदार  होना चाहिए लेकिन  होता यह है की इतिहासकार की लेखनी कभी वक़्त के बदशाहों के हाथों  बिक जाती है कभी धर्मान्धता के कारन इतिहास के साथ थोड़ा सा छेड़छाड़ करते हुए लोगों को भ्रमित करने की कोशिश की जाती है  और वास्तविक इतिहास परदे के पीछे छुप  जाता है | आज तो बहुत से ऐतिहासिक शोध भी ऐसे हैं जिनका वास्तविकता से दूर दूर का रिश्ता नहीं जो दुःख का विषय है | 

    जौनपुर की महत्ता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है की इतिहासकारों और आज की  मौजूद निशानियों  के अनुसार यह शहर कभी बौद्ध समय का बहुत बड़ा व्यापार केंद्र रहा तो कभी इसकी महत्ता अयोध्या से काम नहीं रही जिसे परशुराम की जन्म स्थली के रूप में जाना जाता रहा और फिर एक समय आया की यह खंडहरों में बदल गया और तुग़लक़ से ले के शर्क़ी , मुग़ल और नवाबों का शासन यहाँ रहा जिसकी निशानियां आज भी यहाँ मौजूद हैं | 

    आवश्यकता है आज ईमानदारी से बौद्ध समय से ले के हर दौर की निशानियों को महफूज़ करने की और उसे लोगों तक पहुँचाने की | यह दुःख की बात है की जमैथा  जौनपुर जो परशुराम की जन्मस्थली कहा जाता है वहां परशुराम के नाम से कोई मंदिर मुझे नहीं मिला और धार्मिक दृष्टि से जौनपुर के जो गोमती के किनारे के घाट अहमियत रखते हैं वहां भी उन निशानियों को बचाने की कोई कोशिश नज़र नहीं आती | तुग़लक़ ,शार्की मुगल, नवाबों के दौर की निशानियां आज बदहाल हैं | बौद्ध समय की निशानियों के बारे में तो शायद किसी को पता ही नहीं जबकि वे भी आज जौनपुर में मौजुद हैं | 

    आज जौनपुर के इतिहास पे ईमानदारी से काम करने की आवश्यकता है जिस से इसकी वास्तविक पहचान लोगों के सामने आये और विश्व पटल पे इसको इसका उचित स्थान मिल सके | 

    लेखक 
    एस एम् मासूम 
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