मस्जिद हकीम मुहम्मद कोहॉल -- आज की शिया जामा मस्जिद
यह मस्जिद शाही पुल के उत्तरी किनारे पे नवाब वजीर के बाग के भीतर स्थित है हकीम मुहम्मद कोहाल अकबर बादशाह के जमाने मे नेत्र चिकित्सक नियुक्त किये गये थे क्यू की आप उस समय के उच्च कोटी के हकीमो मे से एक थे । हकीम साहब इसी मस्जिद के बाहर बैठा करते थे फिर एक दिन आमदनी काम होने के कारण वो आगरा चले गये और फिर कभी वापस जौनपुर नही आये ।
१५६५ ई ० मे मुनीम खानखाना की देख रेख मे इस मस्जिद का निर्माण हुआ । इस मस्जिद से लागा हुआ एक घर और एक हमाम भी था जिसे मिर्जा शेखा ने अब्दुल मन्सूर खा से खरीद लिया जिसकी हालत खराब होने के कारण उसे तुडवा के वहा एक बगीचा लागवा दिया और चहारदिवारी खिचवा दी । बाद मे नवाब सआदत ली खा बुर्हानुल मुल्क ने इसे और मरम्मत करवाया ।
इसके उत्तरी मेहराब पे लिखा है|
फैजे किजे ला इलाह अस्त अज फजले मुहम्मदूर रसूलिल्लाह अस्त
इ मस्जिद आली बिना करद हकीम ,असारे जमा अकबर शाह अस्त
अनुवाद :-
यह मस्जिद अल्लाह और मुहम्मद की कृपा से बनी ह और इसका निर्माण हकीम मुहम्मद कोहाल ने किया जब अकबर बादशाह का दौर था
बीच के भीतरी मेहराब पे आय्तल कुर्सी लिखी है और दख्खिन की तरफ लिखा है
शुद बा अहदे अकबर ए गाजी शहे मालिक रेक़ाब ....
अनुवाद :-
अकबर बादशाह के शासनकाल तथा मुईन खान के समय मे ईश्वर की असीम अनुकंपा से इस मस्जिद का निर्माण हुआ ये खान खाना के समय मे मासूम खा का मकान था जो ईश्वर की कृपा से मस्जिद मे परिवर्तित हुआ । । यह मस्जिद सुलतान मुहम्मद ने बंवायी जो हकीम कोहाल के नाम से मशहूर थे । इसका १५६४ ई मे हुआ था ।
इस मस्जिद का मुख्यद्वार आस पास की वजह से काम लोगों की नजात में आ पाता है जबकि मस्जिद अंदर जा के काफी बड़ी है और शिया जामा मस्जिद के नाम से मशहूर है |
पिछले १२५ सालो से इस मस्जिद मी नमाज हो रही है और आज भी यह अच्छी हालत मे है ।
लेखक एस एम मासूम
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"बोलते पथ्थरों के शहर जौनपुर का इतिहास " लेखक एस एम मासूम
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