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जौनपुर में अज़ादारी १३६० में फ़िरोज़ शाह तुगलक के समय से ही हो चुकी थी जहां से जौनपुर में अज़ाखाने बनना शुरू हुए |
बड़ी मस्जिद " जामी उश शर्क"
फ़िरोज़ शाह तुगलक (1351-1388) के जौनपुर बसाने के साथ ही यहाँ अज़ादारी भी शुरू हो गयी थी और उस दौर में बहुत से इमाम बाड़े भी यहाँ बनाए गए | जौनपुर में शिया ऐ अली का वजूद १४वीन सदी के पहले से मिलता है जब पहला शार्की सुलतान ख्वाजा जहां मालिक सर्वर का यहाँ आना हुआ | यह शार्की शिया ऐ अली थे | ref Husain, Muzaffar, 'History of Azadari of Muharram in Jaunpur, Allahabad, 1927, p. 9.
शार्की समय में अज़ादारी को बहुत आगे बढाया गया और शार्की शहजादे अज़ादारी पे ख़ास ध्यान दिया करते थे| उस समय अज़ादारी का मतलब होता था मर्सिया ख्वानी, नौहा , सोअज़ और जारी और ताजिया रखना | ताजिया मुहर्रम में किसी ख़ास जगह पे , चौक में या इमामबारगाह में रखा जाता था और फिर आशूर के रोज़ दफन कर दिया जाता था |
सुल्तान इब्राहीम शाह शार्की (1400-1440)ने एक इमाम बड़ा बनवाया जिसे खानकाह नुहागरन का नाम दिया गया जो आज भी बड़ी मस्जिद से सटा हुआ बना है | यह इमामबाड़ा सुलतान इब्राहीम सुरी के कब्रिस्तान जहां वो खुद दफन हैं , से सटा हुआ है और पुराने समय में इब्राहीम शाह शार्की की वसीयत के मुताबिक उसकी कब्र पे मुहर्रम में एक ताजिया रखा जाता था | जो आज इब्राहीम शाह की कब्र की जगह 8 और 9 मुहर्रम को कब्रिस्तान के पास चौक पे ताजिया रखा जाता है और जुलुस सारे शहर का गश्त करता है जो शाही जुलूस के नाम से मशहूर है |
आप ने एक बड़ी मस्जिद " जामी उश शर्क" बनवाया जो वहाँ पहले से इब्राहीम शाह द्वारा बनवाये" इमामबाडा खानकाह नुहागरन" को आगे बढाते हुए बनायी गयी | इस मस्जिद और इमामबाड़े से बहुत सालों तक बड़े जोरशोर से अज़ादारी हुआ करती थी और ताजिया निकाला जाता था लेकिन जौनपुर के ही एक मौलवी करामत अली की गलत हरकतों की वजह से ब्रिटिश सरकार ने वहाँ पे की जा रही अज़ादारी को बंद करवा दिया | ref: Beg, Mirza Abbas Ali, 'Jaunpurnama', (Urdu), Husaini Mission, Lucknow, 1987, p. 87.
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