जौनपुर शहर एक प्राचीन नगर माना जाता है। यहां मुगलों ने जहां कई ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण कराया वहीं एक समय यह देश की राजधानी भी रहा। पुरातत्वविदें का मानना है कि रेलवे स्टेशन भण्डारी के आस-पास ही पहले इस शहर की आबादी थी। बंगाल के विद्रोह को दबाने के लिए 1356 में फिरोज शाह तुगलक जा रहा था। उसकी सेना का यहां पड़ाव पड़ा। उसी मध्यकाल में सेना को सुरक्षित रखने के लिए वर्तमान रसीदाबाद से लेकर विशेषरपुर तक चतुष्कोणीय दीवार बनायी गयी थी। बाद में लोग बताते हैं कि इसका उपयोग बाढ़ के समय आने-जाने के लिए किया जाने लगा। पुरातत्व विद् इसे बहुत ही महत्वपूर्ण मानते हैं।
पुरातत्व विदों की मानें तो उनका कहना है कि पहले दिल्ली से बंगाल का रास्ता वाया चुनार नहीं था। भौगोलिक दृष्टि से भी वाया जौनपुर बंगाल का रास्ता सरल रहा। तुगलकी सेना जब भी कहीं के लिए कूच करती थी तो उसके साथ हर वर्ग के लोग होते थे। जहां पड़ाव होना होता था वहां पहले से ही अभेद्य दीवार का निर्माण करा दिया जाता था। उसी दीवार के ध्वंसावशेष आज रसीदाबाद में दिखाई पड़ रहे हैं। हालांकि अभी यह कह पाना पूरी तरह से संभव नहीं है कि कितनी लम्बी रही होगी। चौड़ाई तकरीबन 12 फीट है। लखौरिया ईट से बनी यह दीवार अब महज 100 या 150 मीटर ही बची है। बाकी लोग गिराकर कब्जा कर रहे हैं। ऊपरी सतह पर गेरू के रंग का प्लास्टर किया हुआ है।
पुरातत्व विद् इसे भले ही महत्वपूर्ण मान रहे हैं लेकिन आम जन के लिए यह दीवार रहस्यमय बनी हुई है। उधर स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले यहां गोमती में बाढ़ बहुत आती थी। पूर्वी क्षेत्र का सम्पर्क जिला मुख्यालय से भंग हो जाता था। इसलिए अंग्रेजों ने इसे बनाया और लोग इस पर होकर आते थे, जबकि पुरातत्व विद् इसे खारिज कर दे रहे हैं।
खुदाई में मिलेंगे तुगलक शासन के तत्व
जौनपुर: बीएचयू के पुरातत्व विद् डा.एके दुबे का कहना है कि उस दीवार की खुदाई करायी जाय तो निश्चित है कि उसमें तत्व मिलेंगे। उनसे यह स्पष्ट होगा कि वहां क्या था और दीवार सुरक्षा की ही दृष्टि से बनायी गयी थी अथवा किसी और कार्य के लिए। डा.दूबे ने कहा कि जिस तरह मादरडीह की खुदाई में कुषाणकालीन अवशेष मिले हैं उसी तरह यहां भी तुगलक कालीन मिलने की संभावना है। उन्होंने बताया कि शीघ्र ही वे अपनी उत्खनन टीम के साथ अवलोकन करेंगे।
पुरातत्व विदों की मानें तो उनका कहना है कि पहले दिल्ली से बंगाल का रास्ता वाया चुनार नहीं था। भौगोलिक दृष्टि से भी वाया जौनपुर बंगाल का रास्ता सरल रहा। तुगलकी सेना जब भी कहीं के लिए कूच करती थी तो उसके साथ हर वर्ग के लोग होते थे। जहां पड़ाव होना होता था वहां पहले से ही अभेद्य दीवार का निर्माण करा दिया जाता था। उसी दीवार के ध्वंसावशेष आज रसीदाबाद में दिखाई पड़ रहे हैं। हालांकि अभी यह कह पाना पूरी तरह से संभव नहीं है कि कितनी लम्बी रही होगी। चौड़ाई तकरीबन 12 फीट है। लखौरिया ईट से बनी यह दीवार अब महज 100 या 150 मीटर ही बची है। बाकी लोग गिराकर कब्जा कर रहे हैं। ऊपरी सतह पर गेरू के रंग का प्लास्टर किया हुआ है।
पुरातत्व विद् इसे भले ही महत्वपूर्ण मान रहे हैं लेकिन आम जन के लिए यह दीवार रहस्यमय बनी हुई है। उधर स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले यहां गोमती में बाढ़ बहुत आती थी। पूर्वी क्षेत्र का सम्पर्क जिला मुख्यालय से भंग हो जाता था। इसलिए अंग्रेजों ने इसे बनाया और लोग इस पर होकर आते थे, जबकि पुरातत्व विद् इसे खारिज कर दे रहे हैं।
खुदाई में मिलेंगे तुगलक शासन के तत्व
जौनपुर: बीएचयू के पुरातत्व विद् डा.एके दुबे का कहना है कि उस दीवार की खुदाई करायी जाय तो निश्चित है कि उसमें तत्व मिलेंगे। उनसे यह स्पष्ट होगा कि वहां क्या था और दीवार सुरक्षा की ही दृष्टि से बनायी गयी थी अथवा किसी और कार्य के लिए। डा.दूबे ने कहा कि जिस तरह मादरडीह की खुदाई में कुषाणकालीन अवशेष मिले हैं उसी तरह यहां भी तुगलक कालीन मिलने की संभावना है। उन्होंने बताया कि शीघ्र ही वे अपनी उत्खनन टीम के साथ अवलोकन करेंगे।
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