कल होली कि खुशियाँ घर घर मैं मानी जाएंगी हम सभी होली की पूर्व संध्या, यानी फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी को होलिकादहन मनाते हैं. हम लोग घर के बाहर सार्वजनिक रूप से होलिकादहन मनाते हैं. इसके पीछे भी एक संदेश छिपा हुआ है कि दुराचारी का साथ जीवन मैं कभी ना दें. कहते हैं कि वर्षो पूर्व पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यपु राज करता था. उसने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की वंदना न करे, बल्कि उसे ही अपना आराध्य माने. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था. उसने अपने पिता की आज्ञा की अवहेलना कर अपनी ईश-भक्ति जारी रखी. इसलिए हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र प्रह्लाद को दंड देने के लिए उसे अपनी बहन होलिका की गोद में को बिठा दिया और उन दोनों को अग्नि के हवाले कर दिया. होलिका को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि कभी नहीं जला पाएगी, लेकिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और सदाचारी प्रह्लाद बच निकले.
होलिका दहन के दिन होली जलाकर होलिका नामक दुर्भावना का अंत करते हुए यह प्रण करें कि दुराचारी का साथ जीवन मैं कभी नहीं देंगे.
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