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    शुक्रवार, 1 मई 2020

    सारनाथ वाराणसी जहां से गौतम बुद्ध ने पहला उपदेश दिया |

    सारनाथ वाराणसी जहां से गौतम बुद्ध ने पहला उपदेश दिया | 




    बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थों में से एक है सारनाथ जिसके दर्शन को आज जा पहुंचा | अन्य तीन लुम्बिनी, बोधगया और कुशीनगर की सैर पहले ही कर चूका हूँ | जौनपुर का इतिहास बौद्ध धर्म से बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है इसलिए भी इन स्थानों को देखने की उत्सुकता मन में बनी रहती है | वैसे तो सारनाथ बहुत बार आया हूँ लेकन आज ऐतिहासिक दृष्टि से इस्पे नज़र डाले का मन बना लिया | सारनाथ में अशोक का चतुर्मुख सिंहस्तम्भ, भगवान बुद्ध का मन्दिर, धामेख स्तूप, चौखन्डी स्तूप, राजकीय संग्राहलय, जैन मन्दिर, चीनी मन्दिर, मूलंगधकुटी और नवीन विहार इत्यादि दर्शनीय हैं। सिंहों की मूर्ति वाला भारत का राजचिह्न सारनाथ के अशोक के स्तंभ के शीर्ष से ही लिया गया है।  

    गौतम बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु  में हुआ बोधगया में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, सारनाथ में उन्होंने अपने शिष्यों को पहला उपदेश प्रदान किया जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन कहा जाता है तथा कुशीनगर में उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ।
    सारनाथ से ही बौद्ध धर्म के प्रचार–प्रसार का आरम्भ माना जाता है। सारनाथ में गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश 533 ई0 पूर्व में दिया था और उसके बाद से कई सौ सालों तक सारनाथ के इतिहास के बारे में कुछ विशेष पता नहीं चलता है। पुनः मौर्य सम्राट अशोक के काल में विभिन्न स्तूपों एवं बौद्ध मठों का निर्माण हुआ जिसकी वजह से आज का सारनाथ प्रसिद्ध है और जिसे देखने तमाम देशी और विदेशी पर्यटक यहां खिंचे चले आते हैं। पहले यहाँ घना वन था और मृग-विहार किया करते थे। 

    सबसे पहले मैं धमेख स्तूप की ओर बढ़ा। यह एक बड़ी चारदीवारी के अन्दर स्थित प्रांगण में स्थापित है। इस चारदीवारी के अन्दर धमेख स्तूप के अतिरिक्त सारनाथ का उत्खनित भाग भी अवस्थित है। यह उत्खनित भाग बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें कई प्राचीन इमारतों के खण्डहर प्राप्त हुए हैं। इनमें मूलगंध कुटी विहार, धर्मराजिका स्तूप, बौद्ध मठ और प्रसिद्ध अशोक स्तम्भ इत्यादि सम्मिलित हैं। अशोक स्तम्भ काफी ऊंचा था लेकिन वर्तमान में इसका टूटा हुआ निचला भाग ही दिखाई देता है।


    इसके बाद थाई मन्दिर देखने निकला  जिसे थाई समुदाय के लाेगों के सहयोग से बनवाया गया है। यह एक नया बना मन्दिर है जिसके परिसर में बुद्ध की लगभग 80 फीट ऊंची विशाल प्रतिमा स्थापित की गयी है| 

    इस मन्दिर से थोड़ा ही आगे बढ़ने पर दाहिने हाथ संग्रहालय दिखता है। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का प्राचीनतम संग्रहालय है। सारनाथ में 1904 में खुदाई आरम्भ हुई थी अतः खुदाई में प्राप्त वस्तुओं के संरक्षण एवं अध्ययन हेतु 1910 में इस संग्रहालय की स्थापना की गयी। 
    चौखण्डी स्तूप सारनाथ से बुद्ध ने  अपने शिष्यों को पहला उपदेश प्रदान किया था, इसलिए स्मारक के रूप में इस स्तूप का निर्माण किया गया था। इस स्तूप में ईंटों के बने हुए चबूतरे हैं जो ऊपर की ओर आकार में घटते हुए एक के ऊपर एक स्थापित हैं और इनकी संख्या 3 है।

    सारनाथ वैसे तो मुख्यतः बौद्ध धर्म से सम्बन्धित है लेकिन इसे जैन एवं हिन्दू धर्म में भी काफी महत्व प्राप्त है| 

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