पूर्व सूचना उप निदेशक रह चुके श्री त्रिपुरारी भास्कर जी से मेरी मुलाक़ात उनके देहांत के लगभग ७-८ महीने पहले उनके लखनऊ के निवास स्थान पे हुयी थी | श्री त्रिपुरारी भास्कर जी को अपने वतन जौनपुर से बहुत प्रेम था और विश्व पटल में जौनपुर को एक पहचान दिलाने की कोशिश पूरे जीवन करते रहे और इसी कोशिश में उन्होंने जौनपुर का इतिहास नामक किताब १९६० में लिखी जिसका परिवर्धित संस्करण २००६ में फिर से लोगों की डिमांड पे निकला ।
उस समय अंतरजाल जैसी तकनीकी न होने के कारण उनकी कोशिश अधिक लोगों तक नहीं पहुँच सकी लेकिन उनकी कोशिश में कोई कमी नहीं आई | मेरी मुलाक़ात पे मुझसे बड़े प्रेम से मिले और
८४ वर्ष की इस उम्र में भी जब त्रिपुरारी जी के सामने जौनपुर का नाम लिया तो उनकी बूढी आँखों में एक चमक सी आ गयी और जब उन्हें पता चला की मैं भी जौनपुर के लिए काम कर रहा हूँ तो उनकी आँखों में मैंने एक आशा की किरण देखी कि जौनपुर को विश्व पटल पे उसका सही स्थान दिलवाने की जो मुहीम उन्होंने चलायी थी शायद वो मेरे ज़रिये पूरी हो जाय और बात चीत के दौरान उन्होंने ये कह ही दिया कोशिश करें की जौनपुर पर्यटक छेत्र घोषित हो जाय और इसकी तरक़्क़ी हो सके ।
त्रिपुरारी जी की आशा को यक़ीनन मैं कोशिश करूँगा की पूरी कर सकूँ और उन्होंने जो दुआएं मुझे दी उनके लिए मैं हमेशा उनका आभारी रहूँगा । श्री त्रिपुरारी भास्कर जी से बात चीत के दौरान उनके पुत्र पवन भास्कर जी से बात चीत हुए और देख के ख़ुशी हुयी की जौनपुर के लिए प्रेम उन्हें विरासत में मिला है ।
मैं आज भी अब जौनपुर के इतिहास पे काम करता हूँ तो मुझे श्री त्रिपुरारी भास्कर जी की आशा भरी निगाहें याद आ जाती हैं जिसे मैंने उनसे अंतिम मुलाक़ात में महसूस किया था |
एस एम् मासूम

Interview with Tripuraari bhaskar
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