खाना ऐ काबा जैसे सीप में 15 सितम्बर 601 में एक मोती जन्मा जिसका नाम था अली (अ.स) जो हजरत मुहम्मद (स.अ.व० ) का चचेरा भाई भी था | हजरत अली (अ.स० ) का पूरा जीवन अल्लाह के दीन को फैलाने और अल्लाह के पैगम्बर हजरत मुहम्मद सव का साथ देने में समर्पित रहा |
आज भी किसी को यह जानना है की सच्चा इस्लाम क्या है उसका सही पैग़ाम क्या है तो उसे हजरत अली (अ.स० ) को समझना होगा |
आज से १४३९ साल पहले एक ऐसा ग़रीब परवर गुजरा है जो रात के अँधेरे में ग़रीबों के घर रोटियाँ देता था और बोरियां भर भर के अनाज ऐसे पहुंचाता था की कोई उसका चेहरा ना देख सके | उसका नाम था हजरत अली (अ.स) जो मुसलमानों के खलीफ़ा और इमाम रहे |
इस बात का पता तब चला जब उनका देहांत आज से १४३९ वर्ष पहले हुआ और ग़रीबों के के यहाँ रोटियाँ नहीं पहुंची तो उनको एहसास हुआ की उन्हें रोटियाँ देने वाला कोई और नहीं मुसलमानों का खलीफ़ा हजरत अली (अ.स) थे जो हजरत मुहम्मद (स.व) के दामाद भी थे |
आज हजरत अली (अ.स) को याद कर के हर मुसलमान दुखी है और उनकी शहादत २१ रमजान पे आज भी १४३९ साल बाद आंसू बहाता है | ऐसा होता है मुसलमान | हम सब को ऐसा ही मुसलमान बनना चाहिए |
जौनपुर शहर में भी पूरी दुनिया की तरह इस मसीहा,ग़रीब परवर, महान विज्ञानिक, महान नेता, महा ज्ञानी की शहादत का गम लोग मनाते हैं |
आज मुसलमानों के खलीफा हजरत अली (अ.स) की शहादत दिवस जौनपुर में मनाया गया | बड़ी मस्जिद में एक मजिलस के बाद जुलूस अलम का निकाला गया जिसमे या अली मौला-हैदर मौला की सदाएं गूंजने लगी | मुसलमानों ने इस दुःख के दिवस मातम किया | इस जुलुस को नवाब युसूफ रोड पे शिया समुदाय के धर्म गुरु जनाब मौलाना सफ़दर साहब ने सम्भोधित करते हुए बताया की हजरत अली (अ.स) जो हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के दामाद भी थे |उन्होंने दीन-दुखियों की भी काफी मदद की तथा उन लोगों पर अली की कृपा और दया की अनेक मिसाले भी हैं जो तंगदस्त थे और जिनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था। हजरत अली (अ0) जो कुछ कमाते थे वह गरीबांे और जरूरतमंद व्यक्तियों पर खर्च कर देते थे और स्वयं तंगी में तथा साधारण जीवन व्यतीत करते थे|
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