रांची-लोकमान्य तिलक एक्सप्रेस ट्रेन प्लेटफॉर्म नं-9 से जाने वाली थी। जौनपुर के रहने वाले इलेक्ट्रिशियन आयाज खान अपनी बेटी फातिमा को लेकर मुंबई जा रहे थे। कुछ महीने पहले हुए एक एक्सीडेंट के बाद फातिमा के दाहिने पैर की एड़ी को काटना पड़ा था। पिता आयाज ने बताया कि व्हील चेयर नहीं मिलने की वजह से वह किसी तरह प्लेटफॉर्म 1 से 9 नंबर तक पहुंचे। इस बीच कंधे के सहारे और गोद में लेकर फातिमा को सीढ़ियों से प्लेटफॉर्म पर उतार लिया। ट्रेन पांच मिनट में छूटने वाली थी। बेटी को गोद में उठाकर आगे बढ़ा तो गिरने लगा। इतने में एक जांबाज जवान आया और बोला, 'बहन को मैं पहुंचा दूंगा आप मेरे साथ आए।' उन्होंने बताया, 'आरपीएफ जवान ने बेटी को आइसक्रीम की ट्रॉली पर बिठाया और व्हिसिल बजाते हुए बोगी के बाहर तक पहुंचा। मेरी बेटी के पैरों में दर्द हो रहा था।
इसके बाद उसे गोद में उठाकर बेंच पर बिठाया। फिर बोगी के अंदर तक फातिमा को ड्रॉप किया ऑल द बेस्ट बोलकर चला गया।' वहीं, फातिमा ने बताया, 'आरपीएफ का जवान मानो मेरा बड़ा भाई था। वह समाज के लिए रियल हीरो है।' वीरभद्र सिंह ने बताया कि लड़की पैरों पर खड़ी नहीं हो पा रही थी और उसके पिता लाचार दिख रहे थे। व्हील चेयर खोजता तो दोनों की ट्रेन छूट जाती। इसके बाद आइसक्रीम ट्राली को व्हील चेयर बना लिया और उसे उसकी सीट तक पहुंचाया। भारतीय रेलवे में सफर करने वाला हर नागरिक हमारे लिए आदरणीय है। उनकी सेवा हमारा कर्तव्य है। अंबेडकर नगर के रहने वाले वीरभद्र को 2007 कैंट स्टेशन के ब्लास्ट में 20 लोगों की जान बचाने के लिए जीएम अवार्ड भी मिला है। वहीं, 2011 में महानगरी एक्सप्रेस से मुंबई जा रही मां और बेटी के गिर कर घायल होने के बाद जान बचाने के लिए आईजी सम्मान भी मिल चुका है। यात्री मोनिका धर ने बताया कि जवान ने रियल हीरो की तरह मदद किया। संजय सिंह ने बताया कि ऐसे मददगारों को बहादुरी का अवार्ड मिलना चाहिए।
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